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उपराष्ट्रपति ने फिर चेताया, बोले- 'समान नागरिक संहिता कानून ही है एकमात्र समाधान'

रायपुर में IIT, IIM और NIT के छात्रो को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में तेजी से हो 'जनसांख्य़िकीय बदलाव' पर चिंता व्यक्ति किया और कहा कि यह गंभीर विषय है, जिसका एकजुट होकर समाधान करने की जरूरत है. इससे राष्ट्रवाद के लिए खतरे उभर रहे हैं.

उपराष्ट्रपति ने फिर चेताया, बोले- 'समान नागरिक संहिता कानून ही है एकमात्र समाधान'
Jagdeep Dhankar Vice President of India
रायपुर:

Vice President Jagdeep Dhankar: छ्त्तीसगढ़ दौरे पर पहुंचे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को राजधानी रायपुर में 'जनसांख्यिकीय बदलाव' को लेकर चिंता व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकीय बदलाव राष्ट्रवाद के लिए गंभीर खतरा बन रहा है. उन्होंने प्रलोभन के माध्यम से 'नैसर्गिक जनसांख्यिकी' को बदलने के प्रयासों के खिलाफ एकजुट प्रयास करने का आह्वान किया है.

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रायपुर में IIT, IIM और NIT के छात्रो को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में तेजी से हो 'जनसांख्य़िकीय बदलाव' पर चिंता व्यक्ति किया और कहा कि यह गंभीर विषय है, जिसका एकजुट होकर समाधान करने की जरूरत है. इससे राष्ट्रवाद के लिए खतरे उभर रहे हैं.

उपराष्ट्रपति ने अवैध प्रवासन की समस्या से निपटने की आवश्यकता पर भी जोर दिया

उपराष्ट्रपति धनखड़ शहर के पंडित दीनदयाल उपाध्याय सभागार में आयोजित 'बेहतर भारत बनाने के विचार' विषय पर छात्रों के साथ संवाद करते हुए यह चिंता जाहिर की. उपराष्ट्रपति ने अवैध प्रवासन की समस्या से निपटने की आवश्यकता पर भी जोर दिया. इस कार्यक्रम में एनआईटी रायपुर, आईआईएम रायपुर और आईआईटी भिलाई के छात्र मौजूद थे. इस अवसर पर राज्यपाल रमेन डेका और मुख्यमंत्री विष्णु देव साय भी कार्यक्रम में मौजूद रहे.

जनसांख्यिकीय विस्फोट केवल लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए होता है

उपराष्ट्रपति ने कहा कि, नैसर्गिक जनसांख्यिकीय विकास सुखदायक, सामंजस्यपूर्ण है, लेकिन यदि जनसांख्यिकीय विस्फोट केवल लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए होता है तो यह चिंता का विषय है. इस दौरान उपराष्ट्रपति धनखड़ ने घुसपैठ के मुद्दे को भी उठाया और देश में इसके प्रभाव को रेखांकित किया.

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उपराष्ट्रपति ने कहा कि, नैसर्गिक जनसांख्यिकीय विकास सुखदायक, सामंजस्यपूर्ण है, लेकिन यदि जनसांख्यिकीय विस्फोट केवल लोकतंत्र को अस्थिर करने के लिए होता है तो यह चिंता का विषय है. उपराष्ट्रपति ने घुसपैठ के मुद्दे को उठाया और देश में इसके प्रभाव को रेखांकित किया.

जनसांख्यिकी बदलने की मंशा राष्ट्र की नैसर्गिक जनसांख्यिकी  के लिए चिंता का विषय

बकौल उपराष्ट्रपति, अपने लिए निर्णय लेना हर किसी का सर्वोच्च अधिकार है, लेकिन अगर वह निर्णय प्रलोभन द्वारा प्रेरित है और राष्ट्र की नैसर्गिक जनसांख्यिकी को बदलने की मंशा से है तो यह एक चिंता का विषय है जिस पर हम सभी को ध्यान देना चाहिए और इसका समाधान करना चाहिए.

राष्ट्र की सेवा करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रत्येक संस्था - विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपनी सुपरिभाषित भूमिकाओं में काम करें. उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे सोशल मीडिया और अन्य मंचों के माध्यम से जनप्रतिनिधियों पर दबाव बनाएं ताकि वे अपना कर्तव्य निभाएं.

जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति

देश में घुसपैठ की समस्या ने अप्रबंधनीय आयाम को हासिल कर लिया है

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने देश में हो रहे घुसपैठ पर चिंता जताई और कहा कि, हम करोड़ों की आबादी वाले इस देश में घुसपैठ का सामना कर रहे हैं. अगर हम संख्या गिनें तो, दिमाग चकरा जाता है, लेकिन ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि सांकेतिक प्रतिरोध भी नहीं होता. उन्होंने कहा कि, यह एक ऐसी समस्या है, जिसने अप्रबंधनीय आयाम को हासिल कर लिया है.

लाखों अवैध प्रवासी हमारे चुनावी तंत्र को अस्थिर करने की क्षमता रखते हैं

धनखड़ ने कहा, लाखों अवैध प्रवासी हमारे चुनावी तंत्र को अस्थिर करने की क्षमता रखते हैं, जहां लोग क्षुद्र राजनीतिक हित के बारे में सोचते हैं और उन्हें आसान समर्थक मिल जाते हैं, हमें हमेशा राष्ट्र को पहले रखना चाहिए और हमारे देश में एक अवैध प्रवासी का कोई औचित्य नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर यह लाखों में है, तो अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को देखें.

उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र की सेवा करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि हर संस्था अपनी सुपरिभाषित भूमिका में काम करे. उन्होंने कहा कि, चिंता का एक और क्षेत्र यह है कि एक फैशन बन गया है कि हर संस्थागत व्यक्ति दूसरे संस्थान को सलाह देगा कि वह अपने मामलों को कैसे संभाले, यह संविधान के काम करने की योजना नहीं है.

अवैध प्रवासियों से संसाधनों, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों पर प्रभावों को उकेरा

अवैध प्रवासियों से भारत के संसाधनों, रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों पर प्रभाव को उकेरते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि, लाखों की संख्या में मौजूद अवैध प्रवासियों की विकराल समस्या के लिए और इंतजार नहीं किया जा सकता, क्योंकि हर गुजरते दिन के साथ मुद्दा और अधिक जटिल हो जाता है, इसलिए इसके तुरत समाधान की जरूरत है.

संविधान ने हर संस्था के लिए एक भूमिका निर्धारित की है, एक क्षेत्र दूसरे का सम्मान करें

उपराष्ट्रपति ने कहा, संविधान में हर संस्था के लिए एक भूमिका निर्धारित हैं.  विधायिका में बैठे लोग न्यायपालिका को यह सलाह नहीं दे सकते कि फैसले कैसे लिखे जाएं. इसी तरह, कोई भी संस्था विधायिका को यह सलाह नहीं दे सकती कि वह अपने मामलों का संचालन कैसे करें.समझदारी यह है कि हम एक-दूसरे के क्षेत्र का सम्मान करें.

बातचीत के दौरान एक छात्र के सवाल का जवाब देते हुए धनखड़ ने कहा कि देश को गुणवत्ता वाले राजनेताओं की जरूरत है और इस देश के युवाओं को चिंतित होना चाहिए जब जनप्रतिनिधि अपना काम नहीं कर रहे हैं और संवाद व विचार-विमर्श के बजाय अशांति व व्यवधान में लगे हुए हैं. 

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, यूसीसी नीति निर्देशक सिद्धांतों में है समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता के संवैधानिक दायित्व का विरोध करने वालों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए धनखड़ ने कहा, ''आप में से जो लोग संवैधानिक प्रावधानों से अवगत हैं, यूसीसी नीति निर्देशक सिद्धांतों में है. शासन पर कानून बनाने, समान नागरिक संहिता बनाने का दायित्व डाला गया है. एक राज्य, उत्तराखंड ने यह किया है. आप उस चीज़ पर कैसे आपत्ति कर सकते हैं जो हमारे संविधान में लिखी गई है? जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा है.'

जैसे-जैसे लोकतंत्र परिपक्व होता है, हम आगे बढ़ते हैं, समान नागरिक संहिता उनमें एक है

उन्होंने कहा कि, संविधान के निर्माता बहुत बुद्धिमान थे, बहुत केंद्रित थे. उन्होंने हमें कुछ बुनियादी बातें दीं, लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि जैसे-जैसे लोकतंत्र परिपक्व होता है, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमें अपने लोगों के लिए कुछ लक्ष्यों को भी महसूस करना चाहिए, उनमें से एक समान नागरिक संहिता है.

सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देने वालों पर प्रतिक्रिया देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, हम इस तरह के उपद्रवियों और तत्वों को कैसे अनदेखा और बर्दाश्त कर सकते हैं? इनसे बहुत सख्ती से और अनुकरणीय तरीके से निपटा जाना चाहिए. 

सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देने वालों पर दी प्रतिक्रिया

सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देने को लेकर उपराष्ट्रपति ने कहा कि, 140 करोड़ की आबादी वाले इस देश में, जहां हमारे पास जिस तरह की सभ्यता है, वहां ऐसे लोग कैसे हो सकते हैं, जो सार्वजनिक व्यवस्था को चुनौती देते हैं? जो लोग सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करते हैं? आपके राज्य में भी, वंदे-भारत पर हमला किया गया था.

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(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a press release)

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