
एमसीबी (मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर) जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जनकपुर में सलाइन ड्रिप (Saline Drip) लगाने के बाद मरीजों में कंपकंपी की शिकायतें सामने आई हैं. मरीज अस्पताल में भर्ती थे, लेकिन ड्रिप लगने के तुरंत बाद उनके शरीर में ठिठुरन और कंपन शुरू हो गया. प्रारंभिक जानकारी में सामने आया है कि यह समस्या छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) द्वारा भेजी गई एक बैच की सलाइन के इस्तेमाल से हुई है.
मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने सतर्कता बरती और प्रदेश में इस बैच की सलाइन के इस्तेमाल पर अस्थायी रोक लगा दी है. जनकपुर से सलाइन के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं. जिला अस्पताल बैकुंठपुर में भी इसी तरह की स्थिति देखने को मिली है, जहां से लगभग तीन हजार सलाइन की बोतलें वापस भेजी गई हैं.
मरीजों में ठिठुरन और अस्वस्थता
जानकारी के अनुसार, 27 जुलाई से 7 अगस्त के बीच अस्पताल में आरएल सलाइन की कुछ बोतलों का उपयोग किया गया था, जिसके बाद मरीजों में हल्की ठिठुरन और अस्वस्थता के लक्षण दिखे. इस गंभीर मामले की जानकारी मिलते ही भरतपुर-सोनहत विधानसभा के पूर्व विधायक गुलाब कमरो सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जनकपुर पहुंचे. उन्होंने मरीजों से मुलाकात की और अस्पताल प्रबंधन से पूरी जानकारी ली.
मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़
कमरो ने आरोप लगाया कि मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि दवाइयों और सलाइन की गुणवत्ता को लेकर लापरवाही बरतना सीधा-सीधा लोगों की जान से खेलना है. वहीं, इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने कहा कि सीजीएमएससी में अब तक जो भी गड़बड़ियां सामने आई हैं, वे कांग्रेस शासनकाल की देन हैं.
अस्पताल से हटाई जा रहीं बोतले
हमारे कार्यकाल में अगर किसी भी प्रकार की गड़बड़ी पाई जाती है तो उसकी निष्पक्ष जांच कराई जाएगी और जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी. फिलहाल स्वास्थ्य विभाग इस पूरे मामले की जांच में जुटा है. सलाइन के सैंपल की रिपोर्ट आने के बाद ही यह स्पष्ट होगा कि कंपकंपी की वजह वास्तव में सलाइन की गुणवत्ता में कमी थी या फिर कोई अन्य कारण. तब तक संबंधित बैच की सभी बोतलें अस्पतालों से वापस मंगाई जा रही हैं.
इस घटना ने स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और मेडिकल सप्लाई चेन की निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर पहले से ही संसाधनों की कमी का दबाव है. ऐसे में दवाओं और सलाइन की गुणवत्ता पर लापरवाही मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है.