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लाल आतंक की ‘रीढ़’ का अंत! माडवी हिड़मा के मारे जाने के क्या हैं मायने?

Madvi Hidma Encounter: नक्सल विरोधी अभियानों में सुरक्षाबलों को एक बड़ी सफलता मिली है. 1 करोड़ रुपये के इनामी, सीपीआई-माओवादी के सबसे खतरनाक कमांडर माडवी हिड़मा को मंगलवार को आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के ट्राय-जंक्शन पर हुई मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया है. बटालियन नंबर वन के इस मास्टरमाइंड का मारा जाना मार्च 2026 तक नक्सलवाद के खात्मे के लक्ष्य की दिशा में एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है.

लाल आतंक की ‘रीढ़’ का अंत! माडवी हिड़मा के मारे जाने के क्या हैं मायने?

Naxal commander Hidma killed: इसी साल मई महीने में जब गर्मियां चरम पर थी तब सीपीआई-माओवादी के महासचिव बसवराजू को सुरक्षाबलों ने एक मुठभेड़ में मार गिराया. बसवराजू को नक्सल आंदोलन की रीढ़ माना जाता था. उसके एनकाउंटर का ऐलान खुद केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया लेकिन तब भी ये सवाल पूछा गया था वो तो ठीक है लेकिन ये बताइए कि माडवी हिड़मा कब मारा जाएगा. या फिर वो सरेंडर कब करेगा. जाहिर है इससे आप हिड़मा के होने का मतलब समझ सकते हैं. दरअसल मार्च 2026 तक नक्सलियों के खात्मे के लक्ष्य की राह में सबसे बड़ा रोड़ा था माडवी हिड़मा.अब चूंकि वो मारा जा चुका है तो ये बहुत जरूरी हो जाता है कि ये समझा जाए कि हिड़मा के नई होने के मायने क्या हैं? 

ये एक निर्णायक मोड़ है

मंगलवार यानि 18 नवंबर को देश के सबसे खतरनाक, 1 करोड़ रुपये के इनामी नक्सली कमांडर माडवी हिड़मा को सुरक्षाबलों ने एक संयुक्त ऑपरेशन में ढेर कर दिया है.आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के ट्राय-जंक्शन के पास मारेदुमिल्ली के घने जंगलों में हुई इस मुठभेड़ में हिड़मा के साथ उसकी पत्नी राजे (राजक्का) समेत छह अन्य नक्सली भी मारे गए हैं. हिड़मा का मारा जाना ‘लाल आतंक' के ख़ात्मे की दिशा में एक अत्यंत निर्णायक मोड़ माना जा रहा है.

क्यों खास था माडवी हिड़मा?

हिड़मा (असली नाम: संतोष) मात्र 43 वर्ष की उम्र में सीपीआई (माओवादी) की सेंट्रल कमेटी का सबसे युवा सदस्य बन गया था और बस्तर क्षेत्र से सेंट्रल कमेटी में शामिल होने वाला इकलौता आदिवासी था.बसवराजू के जिंदा रहते नक्सलियों की सबसे खतरनाक और घातक विंग, पीपल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर वन की कमान हिड़मा के ही हाथ में थी.

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क्या है बटालियन नंबर वन?

दरअसल बटालियन नंबर वन का गठन साल 2004-05 में सलवा जुड़ुम अभियान के आसपास हुआ था. सलवा जुडुम के समय बस्तर के आदिवासी दो भागों में बंट गए थे. एक भाग सरकार के अभियान में शामिल हो गया था जबकि दूसरा भाग नक्सलियों के साथ जुड़ गया था. बाद में  बटालियन नंबर 1 ही माओवादियों का अटैकिंग यूनिट बन गया.बटालियन के लड़ाकों को जंगलों की जानकारी के साथ ही इस तरह से प्रशिक्षित किया जाता है कि वो जंगलों में सुरक्षाबलों के चार जवानों पर भारी पड़ सकें. इसी विंग के पास लूटे गए सारे हथियार और कारतूस रखे जाते थे. इसी वजह से नक्सलियों के हर बड़े हमले के पीछे बटालियन नंबर वन का हाथ होता था. हिड़मा इसी का मुख्य कमांडर था. हर वक्त उसके साथ करीब 200 से अधिक लड़ाके मौजूद रहते थे. इसी ताकत के बल पर हिड़मा ने कई बड़े हमलों को अंजाम दिया.

हिड़मा के मारे जाने के मायने

बसवराजू और अब हिड़मा, दोनों नक्सलियों की सैन्य और वैचारिक रीढ़ माने जाते थे. हिड़मा का मारा जाना बटालियन नंबर वन के सैन्य नेतृत्व को पंगु बना देगा. अब बटालियन का महत्वपूर्ण नेतृत्व खत्म हो गया है और संगठन में देवजी और पतिराम जैसे नेताओं को कमान संभालने के लिए आगे आना होगा, जिनकी क्षमता हिड़मा जैसी नहीं मानी जाती है.

ये माओवादियों के मनोबल पर भी गंभीर चोट है. हिड़मा बस्तर का आदिवासी चेहरा था, जो स्थानीय लड़ाकों को संगठन से जोड़े रखने में अहम भूमिका निभाता था. उसके मारे जाने से नक्सलियों में यह संदेश जाएगा कि जब सबसे खूंखार और मोस्ट वांटेड कमांडर हिड़मा मारा जा सकता है, तो फिर कोई भी सुरक्षित नहीं है.

अब उसकी मौत से नक्सल-विरोधी अभियानों को और तेज़ी मिलेगी और सुरक्षाबल बस्तर के दूरदराज इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत कर पाएंगे. इससे आत्मसमर्पण (Surrender) की दर में तेज़ी आ सकती है.हालांकि इस जीत को तब ही अंतिम माना जाएगा जब बटालियन नंबर 1 के बाकी लड़ाके आत्मसमर्पण करेंगे.फिलहाल हिड़मा के खात्मे से यह साफ है कि सुरक्षाबलों की इंटेलिजेंस और ऑपरेशनल क्षमता में जबरदस्त सुधार आया है. छत्तीसगढ़,आंध्र प्रदेश और तेलंगाना पुलिस के संयुक्त प्रयास से मिली यह सफलता'नक्सल मुक्त भारत' अभियान में एक मील का पत्थर है.

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