Indian Railways News: छत्तीसगढ़ के दुर्ग (Durg) ज़िले में 40-45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने से लोग बेहाल हैं. रेलवे के लोको पायलट 5-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा यानि 50 से 53 डिग्री सेल्सियस की गर्मी में ट्रेन चलाने को मजबूर हैं. इंजन की हालत गर्मियों में किसी बॉयलर से कम नहीं होती. बाहर के तापमान के साथ इंजन की गर्मी से लोको पायलट के केबिन का तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस होता है. इन हालातों में भी खुद को बीमार कर लोको पायलट (loco pilot)यात्रियों को सुरक्षित उनकी मंजिल तक पहुंचा रहे है. वहीं ट्रैक मेंटेनेंस कर्मचारी भी इतनी गर्मी से काम कर रहे हैं. लेकिन विडंबना ये है कि इनकी सुध तक रेल विभाग नहीं ले रहा है.
महज दो लीटर पानी ही दे रहा है रेलवे
रेलवे के लोको पायलट का कहना है कि भयानक गर्मी पड़ रही है. इंजन में 4 से 5 डिग्री और बढ़ जाती है. इंजन का AC भी काम नहीं कर पा रहा है. गर्मी के मौसम में काम का लोड और बढ़ जाता है. कोयला ले जाने का कार्य निरंतर जारी है, इंजन में AC तो लगा है, लेकिन मेंटेनेंस नहीं होने के कारण एसी नहीं चल रहा है. रेलवे को मेंटेनेंस पर ध्यान देना चाहिए. वहीं लगातार धूप में तपने और मशीनें चालू होने के बाद इंजन के अंदर और बाहर के तापमान में 4 से 5 डिग्री तक अंतर बढ़ जाता है. ड्यूटी पर रेलवे महज 2 लीटर पानी देती है, जबकि भीषण गर्मी में गला सूखने पर प्यास ज्यादा लगती है.
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साढ़े 3 घंटे मिले राहत
ट्रैक मेंटेनेंस कर्मचारियों का कहना है कि 55 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम कर रहे हैं, क्योंकि ऊपर का टेंपरेचर 45 है और गिट्टी और पटरी का टेंपरेचर नीचे से गर्मी अधिक देती है इसके चलते हैं और गर्मी बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि परिवार के भरण-पोषण के लिए काम तो करना ही है टेंपरेचर कितना भी हो. लगभग 50 से 60 डिग्री टेंपरेचर में हम लोग काम करते हैं. 10 किलोमीटर पटरी चेक करते हुए जाते हैं और 10 किलोमीटर पट्टी चेक करते हुए वापस आते हैं. यह हमारा रोज का काम है. हम लोग यही चाहते हैं कि 11:30 बजे से 3 बजे तक काम ना कराया जाए.
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