छत्तीसगढ़ में RTE के तहत चौंकाने वाले आंकड़े, तीन साल में 53 हजार स्टूडेंट्स ने छोड़ा स्कूल

RTE in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में शिक्षा का अधिकार के तहत एडमिशन लेने वाले 53 हजार स्टूडेंट्स ने पिछले तीन साल में स्कूल छोड़ दिया है. इसके पीछे की कई वजहें सामने आ रही हैं. फिलहाल सरकार ने स्कूल छोड़ने के पीछे की वजह का पता लगाने और उस पर उचित कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है.

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Right To Education in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के स्कूलों से बहुत ही चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. यहां शिक्षा का अधिकार (Right To Education) के तहत दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों में से सत्र 2020-21 में 10 हजार 427, सत्र 2021-22 में 18 हजार 399 और सत्र 2023-24 में 24 हजार 478 विद्यार्थियों ने स्कूल छोड़ दिया है. इनमें से कई विद्यार्थी ऐसे हैं जिन्होंने बीच सत्र ही पढ़ाई छोड़ दी है. बता दें कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में आरटीई (RTE) के तहत हर साल औसतन 52 हजार विद्यार्थी दाखिला लेते हैं. बताया जा रहा है कि शिक्षा का कानून लागू होने के बाद पहली बार राज्य में ऐसा हुआ है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों ने उस स्कूल को छोड़ दिया, जहां उन्हें मुफ्त में अच्छी शिक्षा देने का दावा किया जाता है. आरटीई के हैरान करने वाले आंकड़े सामने आने के बाद अब छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग (Chhattisgarh School Education Department) इसके पीछे की वजह तलाश रही है.

वहीं इन आंकड़ों को लेकर छत्तीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल (Cabinet Minister Shyam Bihari Jaiswal) का कहना है कि प्रदेश सरकार (Chhattisgarh Government) गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध है. इसके तहत ही आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले बच्चों के स्कूल छोड़ने के पीछे की वजह का पता लगाया जा रहा है. इसके पीछे जो भी वजह सामने आएगी, उसपर उचित कार्रवाई की जाएगी.

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'स्कूलों में नहीं है टीचिंग स्टाफ'

NDTV ने इन आंकड़ों के पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश की. इसके लिए हमारी टीम ने अलग-अलग स्कूलों का दौरा किया. राजधानी रायपुर के चौरसिया कॉलोनी में रहने वाले मोहम्मद हामिद (बदला नाम) ने शिक्षा का अधिकार (RTE) के तहत घर के पास ही एक निजी स्कूल में अपनी बेटी का दाखिला कक्षा पहली में करवाया था. कक्षा दूसरी में उन्होंने स्कूल से बच्ची का नाम कटवा दिया. हामिद ऑन कैमरा वजह बताने से बचते रहे, लेकिन कैमरा बंद करते ही कहते हैं, 'एक कमरे में ही पूरा स्कूल संचालित होता है, टीचिंग स्टाफ और दूसरे संसाधनों की भी कमी है. पढ़ाई अच्छी नहीं थी, इसलिए वहां से नाम कटा कर दूसरे स्कूल में सामान्य की तरह ही दाखिला करवाया हूं.'

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रायपुर के ही गोकुल नगर में रहने वाले कृष्णा साहू और भैरव नगर के रहने वाले हेमंत साहू ने भी आरटीई के तहत ही दाखिला दिलवाने के बाद अपने बच्चों के नाम स्कूल से कटवा लिए. दोनों का ही परिवार रायपुर से दूसरे जिले में पलायन कर लिया, इस वजह से अब शिक्षा का अधिकार का फायदा बच्चों को नहीं मिल रहा है. इनकी तरह ही पिछले तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले करीब 53 हजार विद्यार्थियों ने स्कूल छोड़ दिया है.

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हर साल 220 करोड़ रुपये का भुगतान

छत्तीसगढ़ प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजीव गुप्ता बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में शिक्षा का अधिकार नियम के तहत निजी स्कूलों को हर साल औसतन 220 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाता है. कक्षा पहली से पांचवी तक 7000 रुपये प्रति वर्ष, कक्षा छठवीं से आठवीं तक 11 हजार 500 रुपये प्रति वर्ष और कक्षा नवमी से 12वीं तक 15000 हजार रुपये प्रति विद्यार्थी प्रतिवर्ष का भुगतान किया जाता है.

सामाजिक भेदभाव भी एक वजह

गरियाबंद जिले में नामी निजी स्कूल का संचालन कर रहे राजीव गुप्ता मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में आरटीई वाले बच्चों के स्कूल छोड़ने की कई सारी वजहें हैं. इसमें एक जिले से दूसरे जिले में पलायन सबसे बड़ी वजह है. जिला परिवर्तन होने के बाद बच्चों को इस नियम का लाभ नहीं मिलता है. लेकिन, कई बार सामाजिक और आर्थिक असमानता भी इसकी वजह बनती है. खुद के स्कूल से जुड़ा एक उदाहरण देते हुए राजीव कहते हैं, 'मेरे स्कूल में एक बार जिले में सबसे सम्मानित पदों में से एक का निर्वहन कर रहे महोदय पहुंचे और कहने लगे कि उनके यहां झाड़ू-पोछा व बर्तन साफ करने वाली महिला कर्मचारी का बच्चा भी उनके बच्चे के साथ एक ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ रहा है, उसका दाखिला रद्द कर दीजिए. मैंने कहा कि कर्मचारी के बच्चे का दाखिला रद्द नहीं कर सकता, क्योंकि उसे आरटीई के तहत पढ़ाया जा रहा है. मेरे स्कूल की मान्यता चली जाएगी.' 

स्कूल छोड़ने की ये हैं प्रमुख वजहें

स्कूल शिक्षा में सुधार के लिए लंबे समय से काम कर रहे राजीव बताते हैं कि हमारे पास शिकायत मिलती है कि निजी स्कूलों में आरटीई के तहत दाखिला लेने वाले बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है. लेकिन, ऐसी शिकायतें बहुत कम होती हैं. कई स्कूलों में साधन-संसाधनों की कमी व पढ़ाई का स्तर भी वजह है. शिकायत मिलने पर एक्शन भी होता है. नियम के तहत सरकार ट्यूशन फी का वहन ही करती है, लेकिन स्कूल के ड्रेस और अन्य खर्चों का वहन पालक पर ही होता है, जिसका वहन न कर पाने की वजह से भी पालक बच्चों का नाम कटवा कर शासकीय स्कूलों में दाखिला ले लेते हैं.

राजीव का कहना है कि पिछली सरकार ने राज्य में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोले, जहां सभी को मुफ्त शिक्षा मिलती है. यह भी एक कारण है कि आरटीई में दाखिला लेने वाले कई विद्यार्थी उन स्कूलों में शिफ्ट हो गए. शिक्षा विभाग अगर सभी ड्रॉफ आउट्स का पता लगाए तो यह आंकड़े भी सामने आ जाएंगे कि निजी स्कूल छोड़ने वाले कितने आरटीई स्टूडेंट्स ने स्वामी आत्मानंद स्कूल में एडमिशन लिया. 

क्या गरीब का बच्चा ही लेता है आरटीई के तहत दाखिला?

शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद यह भी एक बड़ा सवाल रहा है कि क्या आरटीई के तहत निजी स्कूलों में आरक्षित 15 प्रतिशत सीटों पर उन्हीं बच्चों का दाखिला होता है, जो इसके सही हकदार हैं? दिलीप कुमार सिन्हा ने गरियाबंद के निजी स्कूल में अपनी एक बेटी का दाखिला आरटीई के तहत सत्र 2011-12 में करवाया था. कक्षा नवमीं में उन्होंने गरियाबंद के स्कूल से नाम कटा कर बेमेतरा जिले की ऐसी स्कूल में सामान्य कोटे में दाखिला करवाया, जहां पढ़ाई का खर्च 50 हजार से 1 लाख 50 हजार रुपये प्रति वर्ष तक है. इस संबंध में पूछने पर दिलीप बातचीत से मना कर देते हैं. राज्य के ही दुर्ग जिले में ही ऐसी कई शिकायतों पर शिक्षा विभाग जांच कर रहा है, जिसमें अवैध तरीके से आरटीई के तहत दाखिला दिलवाया गया है.

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