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CG Election: आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा में क्यों खिसकी कांग्रेस की जमीन? जानिए पूरा समीकरण

Chhattisgarh Election Results 2023: छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने बहुमत प्राप्त कर सत्ता में वापसी की है. इसका सबसे बड़ा कारण आदिवासी बहुत बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी वोटर्स हैं. जिन्होंने कांग्रेस से नाराजगी के चलते बीजेपी को चुना.

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CG Election: आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा में क्यों खिसकी कांग्रेस की जमीन? जानिए पूरा समीकरण
फाइल फोटो

Chhattisgarh Assembly Election 2023 Results: छत्तीसगढ़ में यह एक बार फिर साबित हो गया कि सत्ता की चाबी आदिवासियों (Tribals) के साथ से ही मिलती है. राज्य में जिसके साथ आदिवासी मतदाता (Tribal Votes) होते हैं उसकी सरकार बन जाती है. 2018 में आदिवासी बहुल बस्तर (Bastar) और सरगुजा (Surguja) ने कांग्रेस का साथ दिया था, बस्तर की 12 और सरगुजा की सभी 14 सीट कांग्रेस ने जीती थी. जिसके बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी. लेकिन, कांग्रेस सत्ता (Bhupesh Government) में रहते हुए आदिवासियों के दर्द और भावनाओं को समझने में असफल रही. जिसका नतीजा यह रहा कि इस बार आदिवासियों ने सरगुजा की सभी 14 सीट और बस्तर की 8 सीट बीजेपी की झोली में डाल दी. आइए समझते हैं कैसे आदिवासी बहुल बस्तर और सरगुजा संभाग ने छत्तीसगढ़ का सियासी समीकरण बदल दिया.

बीजेपी ने बनाया धर्मांतरण को बनाया मुद्दा 

भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान आदिवासियों के धर्मांतरण (Religious Conversion) को बड़ा मुद्दा बनाया और धर्मांतरित आदिवासी को डिलिस्टिंग करने को लेकर आंदोलन भी किया. जिसकी वजह से आदिवासी दो वर्ग में बंट गए और बस्तर में ईसाई आदिवासी और गैर ईसाई आदिवासियों के बीच में संघर्ष शुरू हो गया. इस दौरान क्षेत्र के अंदरूनी गांव में मारपीट और झगड़े आम हो गए. 

ये झगड़े इतने बढ़ गए कि ईसाई आदिवासी के मृतकों के शव को दफनाने नहीं दिया गया. जिसका असर ये हुआ कि ईसाई आदिवासी कांग्रेस से नाराज हो गए और मूल आदिवासी बीजेपी के साथ हो गए. ईसाई आदिवासी और मूल आदिवासियों के बीच बढ़ते झगड़ों के चलते ईसाई आदिवासी भी बीजेपी के साथ आ गए, क्योंकि 15 साल की रमन सरकार के दौरान ईसाई आदिवासी और मूल आदिवासी के बीच कोई संघर्ष नहीं हुआ था. ये झगड़ें कांग्रेस सरकार के दौरान बढ़ते गए. जिसका नतीजा ये हुआ कि सरगुजा की 14 और बस्तर की 8 सीट बीजेपी जीत गई.

बस्तर में धर्मांतरण का मुद्दा इतना हावी रहा कि 5 साल में 2 से ज्यादा घटनाएं हुई. लेकिन, सरकार में बैठे लोग इस समस्या को राजनीतिक समस्या समझते रहे और इसे बीजेपी का प्रोपेगेंडा बताते रहे. जिसकी वजह से पीड़ित आदिवासी वर्ग की नाराजगी कांग्रेस सरकार से बढ़ती गई. 

मंत्री, विधायकों की ठसक रही हार की वजह

भूपेश बघेल सरकार में सरगुजा से 3 मंत्री बनाए गए थे. इसके अलावा आखिरी समय में टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया. लेकिन, पांच साल तक सरगुजा क्षेत्र में विधायक और मंत्री ये कहते रहे कि सरकार में उनकी चलती नहीं है. इसके साथ ही मंत्रियों और विधायकों ने जनता के कामों पर ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई. वहीं मंत्रियों के साथ चलने वाला स्टाफ भी जनता से बदतमीजी करने लगा. जिसकी असर ये हुआ कि धीरे-धीरे लोगों का झुकाव कांग्रेस से कम होता गया.

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कांग्रेस ने आंदोलन खत्म करने कोई पहल नहीं की

बस्तर के सिलगेर में कैंप के विरोध में आंदोलन कर रहे 3 आदिवासी युवकों की मौत हो गई थी. जिसको लेकर लंबे समय से आदिवासी धरने पर बैठे हैं, लेकिन उनका आंदोलन खत्म करने की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई. इससे आदिवासी वर्ग नाराज होता चला गया.

आदिवासियों की नाराजगी दूर करने के लिए कांग्रेस ने आदिवासी समुदाय के दीपक बैज को चुनाव से पहले पीसीसी अध्यक्ष बनाया. लेकिन नाराजगी इतनी ज्यादा थी कि आदिवासियों ने दीपक बैज को भी सबक सिखा दिया. बस्तर से पूर्व पीसीसी अध्यक्ष और मंत्री मोहन मरकाम भी हार गए. सरगुजा से उप मुख्यमंत्री टीएस सिंह देव और अमरजीत भगत को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.

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