Holika Dahan: एक ओर जब पूरा देश 13 मार्च को होलिका दहन के बाद होली के रंगों में सराबोर होने की तैयारी में जुटा है, लेकिन छ्त्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के एक गांव में होलिका दहन और होली को लेकर मातम का माहौल है, जहां फाग के गीत नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में हूक उठ रहे हैं. लोग 25 साल पहले हुए रक्तरंजित संघर्ष को याद कर आज भी सिहर जाते हैं,
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खूनी संघर्ष में बदल गया था होलिका दहन अनुष्ठान
दरअसल, 25 साल पहले गोंडपेड़ी गांव में होलिका दहन के दिन एक ऐसा खूनी संघर्ष हुआ था, जिसकी दहशत आज भी गांव वालों के दिलों को झकझोर जाती है. यहां 25 साल पूर्व होलिका दहन के समय पांरपरिक अनुष्ठान दौरान उपजे विवाद देखते-देखते खूनी संघर्ष में बदल गया था, जिसके बाद से गांव न होलिका जली और न होली मनाई गई.
होली के त्योहार में रंगों की जगह बहे खून
रिपोर्ट के मुताबिक करीब 25 साल पहले होलिका दहन के दिन हुए मामूली विवाद के बाद हुए खूनी संघर्ष को याद कर गांव के बुजुर्ग आज भी सहम जाते हैं. गांव के तालाब के पास होलिका दहन के समय पुरानी परंपरा निभाई जा रही थी, जिसमें होलिका डालने वाले की गाली दी जाती है, लेकिन होलिका डालने वाली की आपत्ति से माहौल को बेकाबू हो गया.
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50 से 70 ग्रामीणों के खिलाफ दर्ज किए गए मामले
बड़ी बात यह थी कि होलिका दहन के दौरान हुए उपद्रव के समय पाटन थाना के पुलिस अधिकारी भी मौजूद थे, लेकिन वह हिंसक भीड़ के सामने बेबस नजर आए. युद्ध के मैदान में तब्दील हुए गांव में घंटों चले खूनी संघर्ष में 2 दर्जन से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए और पुलिस ने 50 से 70 ग्रामीणों के खिलाफ मामले दर्ज किए.
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23 साल तक कोर्ट में चला खूनी संघर्ष का केस
पोड़गेड़ी गांव में होलिका दहन के दिन हुए खूनी संघर्ष का केस कोर्ट में कुल 23 साल तक चला, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकाल, अंततः आपसी सहमति से दोनों गुटों के बीच समझौता तो हो गया, लेकिन तब से अब तक गांव में न होलिका दहन किया गया और न ही होली मनाई जाती है. हालांकि युवा चाहते हैं कि गोंड़पेंड्री गांव फिर से होली के रंगों में सराबोर हो.
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