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Indian Railway: पहली बार मिली दंतेवाड़ा जिले के इस इलाके में रेल लाइन की सौगात, सर्वे होते ही विरोध में उतरे लोग, जानें वजह

Rail line in bastar: सरकार ने किरंदुल से कोत्तागुड़म 160 किलोमीटर रेललाइन की मंजूरी दी है. जिसमें से 138 किलोमीटर की रेललाइन छतीसगढ़ में बिचेगी, बाकी तेलंगाना में बननी है. यह रेल लाइन किरंदुल से बीजापुर और सुकमा जिले के अंदरूनी इलाकों से होते हुए कोट्टागुडेम तक बिछाने की योजना है. लेकिन इसे शुरू होने से पहले ही लोगों ने विरोद करना शुरू कर दिया है. जानें क्या है इसकी वजह.

Indian Railway: पहली बार मिली दंतेवाड़ा जिले के इस इलाके में रेल लाइन की सौगात, सर्वे होते ही विरोध में उतरे लोग, जानें वजह

New Rail Line in Bastar: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के दंतेवाड़ा (Dantewada) जिले में किरंदुल से कोत्तागुड़म तक आजादी के बाद पहली बार रेल लाइन की सौगात मिली है. आम तौर पर इस तरह की सौगात मिलने पर इलाके के लोग खुश नजर आते हैं, पर यहां उल्टा नजारा देखने को मिल रहा है. दरअसल, यहां रेल लाइन बिछने से पहले होने वाले सर्वे का विरोध हो रहा है. प्रभावित गांवों के सरपंच बस्तरिया राज मोर्चा के संस्थापक मनीष कुंजाम की अगुआई में कलेक्ट्रेट पहुंचे. यहां कलेक्टर से मुलाकात कर ज्ञापन भी सौंपा है.

बता दें कि सरकार ने किरंदुल से कोत्तागुड़म 160 किलोमीटर रेललाइन की मंजूरी दी है. जिसमें से 138 किलोमीटर की रेललाइन छतीसगढ़ में बिचेगी, बाकी तेलंगाना में बननी है. यह रेल लाइन किरंदुल से बीजापुर और सुकमा जिले के अंदरूनी इलाकों से होते हुए कोट्टागुडेम तक बिछाने की योजना है. इससे पूर्व में दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा में एक मात्र रेललाइन किरंदुल से विशाखापटनम तक है. यहां के लोगों के लिए बस यही एक पैसेंजर ट्रेन की सुविधा है. इसके आलावा यहां मालवाहक ट्रेनें दौड़ रही हैं. ऐसे में अगर किरंदुल से कोत्तागुडेम रेललाइन जुड़ती है, तो बस्तर के ग्रामीणों को दूसरे राज्य में पहुंचने के लिए बड़ी सौगात होगी. बावजूद इसके ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है पहले भी तो सौगात मिली है, लेकिन आज भी आयरन हिल के नीचे बसे दर्जनों गांव मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. उनका कहना है कि इस रेल लाइन के बिछने से पर्यावरण को भी भारी क्षति पहुंचेगी.

इसलिए हो रहा विरोध

कलेक्ट्रेट पहुंचे आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने एक मांगपत्र दंतेवाड़ा कलेक्टर कुणाल दुदावत को दिया. इस पत्र के जरिए इन लोगों ने मांग की है कि यहां बिछने वाली रेल लाइन के सर्वे कार्य पर प्रभावित ग्राम पंचायतों की अनुमति नहीं ली जा रही है. साथ ही छतीसगढ़ पेशा कानून 2022 के नियम का उलंघन भी किया जा रहा है. वन अधिकार मान्यता अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रभावितों के अधिकारों का भी मामलों का अभी तक निपटारा नहीं हुआ है. बस्तरिया राज मोर्चा के संस्थापक मनीष कुंजाम के नेतृत्व में इस मांगपत्र को कलेक्टर को सौंपा गया.

'सरकार को है किरंदुल से लौह अयस्क परिवहन की चिंता'

वहीं, उन्होंने मीडिया से कहा कि सर्वे का कार्य बिना ग्राम सभा अनुमति के नहीं होना चाहिए. सरकार किरंदुल से लौह अयस्क परिवहन की चिंता में इतनी परेशान हैं कि ग्रामीणों की चिंता नहीं कर रही है. इसके साथ ही उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि आजतक किरंदुल विशाखापटनम रेल लाइन से ग्रामीणों को क्या फायदा मिला. वहीं, जिला पंचायत सदस्य सोमारू कड़ती ने कहा कि फोर्स के दम पर रेललाइन बिछाई जा रही है. जिनको सुविधा देनी है, उन्हीं ग्रामीणों को पता नहीं है कि ये लाइन किस-किस तरफ से गुजरेगी. इन लोगों ने मांग की है कि पहले ग्रामीणों को विश्वास में लिया जाए, फिर काम आगे बढ़ाया जाए. इन लोगों ने आरोप लगाया कि इस रेल लाइन विस्तार से दर्जनों पंचायत के ग्रामीण प्रभावित हो रहे हैं. किरंदुल, समलवार, गुनियापाल, बड़े कमेली जैसी लगभग एक दर्जन से अधिक ग्राम पंचायतों से ग्रामीण जनप्रतिनिधि पहुंचे थे.

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 1967 में पहली बार बस्तर आई रेल

बता दें कि बस्तर में पहली रेल लाइन किरंदुल विशाखापटनम 1967 में शुरू हुई थी, तब बैलाडीला की खदानों से निकलने वाले लौह अयस्क की ढुलाई के साथ ही यात्रियों के लिए भी पैसेंजर ट्रेन चलाई गई. अब यह दूसरी लाइन की मंजूरी मिली है. अगर यह लाइन बिछती है, तो बस्तर वासियों को तेलंगाना और देशभर की रेल यात्राओं को करने में बड़ी ही आसानी होगी. 

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