Dhamtari Village Road: छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से एक प्रेरणादायक तस्वीर सामने आई है.नक्सल प्रभावित और टाइगर रिजर्व क्षेत्र के बीच बसे यहां के ग्राम चमेंदा के ग्रामीणों ने वह कर दिखाया है, जिसे करने में सरकारी तंत्र सालों से नाकाम रहा. जर्जर रास्तों और गहरे गड्ढों के कारण 'नर्क' बन चुकी अपनी जिंदगी को बदलने के लिए ग्रामीणों ने किसी सरकारी मदद का इंतजार करने के बजाय खुद जेसीबी को बुलाया...फावड़ा उठाया और श्रमदान के जरिए 10 किलोमीटर लंबी सड़क की सूरत बदल दी.
90 ग्रामीणों का अनूठा श्रमदान
नक्सल प्रभावित चमेंदा गांव के 90 ग्रामीणों ने मिलकर यह कमाल किया है. ग्रामीणों ने आपस में चंदा इकट्ठा कर एक जेसीबी और पांच ट्रैक्टरों की व्यवस्था की. इस पूरे काम में ग्रामीणों ने अपनी जेब से करीब 35 से 40 हजार रुपये की लागत लगाई और कड़ी मेहनत कर करीब 10 किलोमीटर तक सड़क की मरम्मत कर दी.

धमतरी के चमेंदा गांव के ग्रामीणों ने बरसों से बदहाल सड़क को अपने श्रमदान से सुधार दिया है
सिस्टम से नहीं मिली मदद
ग्रामीणों की परेशानी ये थी कि बारिश के दिनों में यह गांव टापू बन जाता है और नदी-नालों के उफान पर होने से आवाजाही पूरी तरह ठप हो जाती है. ग्रामीणों ने सड़क की बदहाली को लेकर कई बार ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित किया और सरपंच से गुहार लगाई. लेकिन हर बार बजट की कमी का हवाला देकर काम टाल दिया गया. इसी परेशानी से तंग आकर ग्रामीणों ने यह कदम उठाया.
नेताओं के वादों से नाराजगी
ग्रामीणों में जनप्रतिनिधियों के प्रति गहरा आक्रोश है. उनका कहना है कि चुनाव के समय प्रत्याशी हाथ जोड़कर वोट मांगने तो आते हैं और बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन जीत के बाद कोई हाल तक पूछने नहीं आता. इसी उपेक्षा के कारण ग्रामीणों ने वन विभाग से चर्चा कर खुद ही सड़क सुधारने का फैसला किया.इस मामले पर जिला कलेक्टर अविनाश मिश्रा का कहना है कि यह इलाका टाइगर रिजर्व और वाइल्ड लाइफ क्षेत्र में आता है. वन कानूनों की वजह से यहां पक्की सड़क निर्माण नहीं किया जा सकता. इसके अलावा नरेगा के कार्यों पर यहां प्रतिबंध है. हालांकि, प्रशासन अब मुरूम रोड के लिए नया प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेज रहा है ताकि ग्रामीणों को राहत मिल सके. कलेक्टर का कहना है कि जहां-जहां जरूरत है वहां पर ब्रिज को छोड़कर के मुरूम की सड़क बनाने की कोशिश की जाएगी बशर्ते की शासन के स्तर पर अप्रूवल मिल जाए.
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