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This Article is From Aug 16, 2023

दंतेवाड़ा : पहले जहां नजर आता था काला झंडा, अब वहां शान से लहरा रहा है तिरंगा

पहले जहां दंतेवाड़ा में विरोध में काला झंड़ा लगाया जाता था वहीं अब सरकार और पुलिस के प्रयास से अब दंतेवाड़ा में हर जगह शान से तिरंगा लहराया जा रहा है. माओवाद की चपेट से अब दंतेवाड़ा को मुक्ति मिल चुकी है.

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दंतेवाड़ा : पहले जहां नजर आता था काला झंडा, अब वहां शान से लहरा रहा है तिरंगा
दंतेवाड़ा में 15 अगस्त का कार्यक्रम
दंतेवाड़ा:

छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा क्षेत्र दशकों से नक्सलवाद से पीड़ित रहा है. वैसे छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा, बस्तर क्षेत्र में आता है, जो कि पांचवी अनसूची का क्षेत्र है. संविधान की पांचवी अनुसूची में कई राज्यों केआदिवासी हितों की रक्षा होती है, इसमें मुख्य रूप से असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्य आते हैं.
दंतेवाड़ा की बदहाली के लिए यहां वामपंथ के पनपने को जिम्मेदार माना जाता है. नक्सली या माओवादी आंदोलन 1967 से शुरू होता है जब सशस्त्र किसानें ने नक्सलबाड़ी में विद्रोह किया था इसके बाद सीपीआई(माओवादी) के कैडरों ने आदिवासी और स्थानीय लोगों के आर्थिक, सामाजिक अधिकारों के लिए आंदोलन किया था. इस आंदोलन से इस क्षेत्र को और यहां के रहने वाले लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि बड़ा नुकसान हुआ.  नक्सल यहां एक बहुत बड़ी समस्या बन गई. नक्सल के कारण ही यहां विकास बिल्कुल रूक ही गया. लेकिन अब सरकार इसके लिए लगातार कई ठोस कदम उठा रही है, जिससे नक्सलवाद की कमर तो टूटी ही है साथ में विकास की शुरूआत भी हो रही है.

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पहले दंतेवाड़ा जिले के कटेकल्याण ब्लॉक की सूरनार, टेटम और मारजुम पंचायतों को लालआतंक का गढ़ माना जाता था. सलवा जुडूम के बाद तो यहां जनताना सरकार का बोलबोला रहा रहता था, यहां प्रशासन की पहुंच नहीं थी. दशकों तक इस क्षेत्र में स्वतंत्रता दिवस पर काला झंडा फहरा कर विरोध किया जाता था. लेकिन अब पुलिस की कड़ी तपस्या, सरकार के कड़े संकल्प ने इन पंचायतों को मुख्यधारा से जोड़ दिया है. अब यहां भारत का तिरंगा शान से लहरा रहा है. 

सरकार के संकल्प के कारण माओवाद के गढ़ में काला झंडे को ग्रामीणों ने दरकिनार कर दिया है. लाल आतंक का लोग खुल कर विरोध कर रहे हैं. गांव के लोग क्षेत्र में सड़क बनने से काफी खुश हैं. वहीं इन पांच-छह वर्षो में दर्जनों माओवादियों ने सरेंडर किया है साथ ही कई माओवादिओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इतना ही नहीं इन तीनों पंचायतें में कई मुठभेड़ हुई हैं, यहां पुलिस को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पुलिस की शहादतों के बाद यहां लोकतंत्र बहाल हुआ है

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15 अगस्त को बच्चों ने सूरनार में रष्ट्रगान किया. ग्रमीणों ने भी देश के सबसे बड़े पर्व में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है. सूरनार, टेटम और मारजूम अब पूरी तरह से बदल चुका है. लोग हाथों में तिरंगा लेकर विकास पथ पर आगे बढ़ रहे हैं. कुछ इसी तरह अबूझमाड़ क्षेत्र में इस बार पुलिस के साथ ग्रामीणों ने तिरंगा फहराया.  इंद्रावती नदी पार भी नक्सलवाद को ग्रामीणों ने नकार दिया है. तुमरीगुंडा,चेरपाल,पहुंरनार, काउरगांव और बडकरका जैसे अदरूनी इलाके के गांव में बड़ी शान से तिरंगा फहराया गया. 
हमारे संवाददाता ने यहां के स्थानीय निवासी चिकपाल से बात कि तो चिकपाल ने बताया कि "गांव में कैंप खुलने के बाद काफी बदलाव आया है. अब गांव में राशन की दुकान खुलने से बहुत फायदा है पहले दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था और अब बिल्कुल नहीं."

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चिकपाल में तैनात नर्स रोशनी मंडावी बताती हैं कि वह 23 वर्षो से इस इलाके में हैं. ''पहले लोग इलाज के लिए नहीं आते थे. लेकिन अब ग्रामीण जागरूक हो गए हैं और वे खुद इलाज के लिए केंद्र में आते हैं."
यहां के  पुलिस कप्तान गौरव राय कहते है कि अंदरूनी इलाकों में माओवादियों के अब पैर पूरी तरह से उखड़ चुके हैं. 
दंतेवाडा पुलिस अधीक्षक गौरव राय का कहना है कि विश्वास विकास सुरक्षा के साथ सभी कार्यों को आगे बढ़ाया जा रहा है और अंतिम छोर तक विकास पहुंचा जा रहा है. 

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जिला कलेक्टर विनीत नदनवार का कहना है कि क्षेत्र में इंद्रावती नदी पर पुल का निर्माण, पोटाली और बर्गम जैसे दूरदराज के इलाकों में बिजली पहुंचाना, अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत दुकानें खोलना जैसी परियोजनाओं के साथ ही कई गांवों को जोड़ने वाली बारसूर पल्ली सड़क का निर्माण भी विकास का प्रतीक है. जिला कलेक्टर ने कहा कि यह पर्यटक नगरी को बढ़ावा देने के साथ बुनियादी सुविधाएं भी बड़ाई जा रही हैं.

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