CIMS के प्रोफेसर के खिलाफ जारी वसूली आदेश को हाई कोर्ट ने किया निरस्त, किया गया था ये दावा

CIMS Bilaspur : सिम्स बिलासपुर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे डॉ. के.एन. चौधरी को हाई कोर्ट से राहत मिली है. इनके विरुद्ध जारी वसूली आदेश को कोर्ट निरस्त कर दिया. 

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(फाइल फोटो)

CG Today News : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ आयुर्विज्ञान संस्थान (सिम्स), बिलासपुर में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत रहे डॉ. के.एन. चौधरी के खिलाफ जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया है. न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि उनके सेवाकाल के दौरान वेतन नियमन में हुई किसी भी त्रुटि के कारण की गई वसूली को वापस लौटाया जाए.

क्या है मामला?

डॉ. के.एन. चौधरी, जो पारिजात कैसल, रिंग रोड-2, बिलासपुर के निवासी हैं, 30 जून 2023 को 65 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद सिम्स मेडिकल कॉलेज, बिलासपुर से सेवानिवृत्त हुए थे. पांच महीने बाद, बिना कोई पूर्व सूचना या कारण बताओ नोटिस जारी किए, डीन, सिम्स बिलासपुर ने उनके खिलाफ वसूली आदेश जारी कर दिया. आदेश में यह दावा किया गया कि उनके पूर्व सेवाकाल में वेतन नियमन में त्रुटि के कारण उन्हें अधिक वेतन भुगतान हुआ था और अब इसे वसूल किया जाएगा.

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हाई कोर्ट में दी गई चुनौती

इस आदेश से डॉ. चौधरी आहत हुए और उन्होंने हाई कोर्ट अधिवक्ता अभिषेक पांडेय एवं स्वाति सराफ के माध्यम से बिलासपुर उच्च न्यायालय में रिट याचिका (W.P. (S) दायर कर इसे चुनौती दी. याचिका में तर्क दिया गया कि बिना किसी नोटिस या सुनवाई के इस तरह की वसूली अवैध है और माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों के विरुद्ध है.

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हाईकोर्ट का फैसला

बिलासपुर उच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के बाद डॉ. के.एन. चौधरी के विरुद्ध जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया. न्यायालय ने सिम्स प्रशासन को निर्देश दिया कि उनसे वसूली गई पूरी राशि तत्काल वापस की जाए.

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सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का दिया गया हवाला

याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलों को आधार बनाया:

1. मध्यप्रदेश मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन बनाम मध्यप्रदेश शासन (2022)

2. स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015) (व्हाइट वॉशर केस)

इन निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई अधिक वेतन भुगतान किसी भी कर्मचारी को 5 वर्ष या उससे अधिक समय पहले किया गया हो, तो सेवानिवृत्ति के बाद उस वेतन को वापस वसूलने का कोई अधिकार नहीं है. इसके अलावा, वसूली आदेश जारी करने से पहले कारण बताओ नोटिस देना अनिवार्य है, जो कि इस मामले में नहीं दिया गया था.

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