
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक लंबे वैवाहिक विवाद पर फैसला सुनाते हुए 47 साल पुराने रिश्ते को खत्म करने पर अंतिम मुहर लगा दी है. कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को सही ठहराते हुए पति हीरालाल वर्मा को पत्नी लीला वर्मा को एकमुश्त 10 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने के निर्देश दिए हैं.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला मध्य प्रदेश के रीवा जिले की मऊगंज तहसील का है. 47 साल पहले 20 अप्रैल 1978 को हीरालाल वर्मा और लीला वर्मा की शादी हिंदू रीति से हुई थी. बाद में हीरालाल को छत्तीसगढ़ के भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी मिली और दंपती मध्य प्रदेश के रीवा से आकर सेक्टर-5 भिलाई में आकर बस गया.
इनके तीन बच्चे हुए. इस जोड़े के बीच समय के साथ मतभेद बढ़ते गए. पति ने पत्नी पर लगातार झगड़ा करने, गाली देने और घर का काम न करने के आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि साल 2010 से दोनों एक ही घर में अलग-अलग कमरों में रह रहे हैं. साल 2017 में पत्नी ने उन्हें घर से निकाल दिया.
पत्नी ने कहा-झूठे आरोप लगाए गए
पत्नी लीला वर्मा ने अदालत में कहा कि असल में वही उत्पीड़न की शिकार रही हैं. उनके मुताबिक पति मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता था. खाने-पीने तक रोक देता था. अलग कमरा बनवाकर उन्हें बंद कर देता था. उन्होंने कहा कि भरण-पोषण भी बंद कर दिया गया और अब पति झूठे आरोप लगाकर बचने की कोशिश कर रहा है.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने पाया कि दोनों 2010 से अलग रह रहे हैं. अब साथ रहना संभव नहीं है. कोर्ट ने माना कि इतने वर्षों तक अलग रहना और लगातार विवाद रहना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है. इसी आधार पर हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि पति द्वारा दिया जाने वाला 10 लाख रुपये का एकमुश्त भरण-पोषण भत्ता पत्नी के भविष्य के लिए पर्याप्त होगा.
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