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Chhattisgarh Rajyotsava 2025: छत्तीसगढ़ नहीं उगाता सबसे ज्यादा चावल, फिर भी क्यों कहलाता ‘धान का कटोरा’?

Chhattisgarh Rajyotsava 2025: छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस 2025 (Chhattisgarh Foundation Day 2025) पर जानिए क्यों कहा जाता है इसे धान का कटोरा (dhan ka katora). भले ही Chhattisgarh Rice Production में सातवें स्थान पर है, लेकिन यहां के 88% क्षेत्र में Paddy की खेती होती है और 20,000 से ज्यादा Rice Varieties मिलती हैं. धान छत्तीसगढ़ की Culture, Economy और Tradition का प्रतीक है. इसलिए यह सही मायने में भारत का असली Rice Bowl of India है.

Chhattisgarh Rajyotsava 2025: छत्तीसगढ़ नहीं उगाता सबसे ज्यादा चावल, फिर भी क्यों कहलाता ‘धान का कटोरा’?

Chhattisgarh Foundation Day 2025: 1 नवंबर 2025 को छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के 25 साल पूरे कर लेगा. यानी राज्य के गौरव का रजत जयंती वर्ष. इस मौके पर पूरे प्रदेश में भव्य Chhattisgarh Rajyotsava 2025 की तैयारियां चल रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अक्टूबर को रायपुर पहुंचकर छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस समारोह में शामिल होंगे. राज्य के कोने-कोने में ‘धान का कटोरा' थीम पर सांस्कृतिक कार्यक्रम, झांकियां और प्रदर्शनियां आयोजित की जा रही हैं. 

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लेकिन क्या आप जानते हैं? छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा' कहा तो जाता है, पर यह भारत में सबसे ज्यादा चावल उगाने वाला राज्य नहीं है. तो आखिर यह उपनाम कैसे मिला और इसका छत्तीसगढ़ की पहचान से क्या रिश्ता है? 

Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora

Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora
Photo Credit: pixabay.com

Chhattisgarh Rice Production: धान उत्पादन में सातवां स्थान

वेबसाइट upag.gov.in के अनुसार, वर्ष 2024-25 में राज्यवार चावल उत्पादन में छत्तीसगढ़ सातवें स्थान पर है. भारत में सबसे ज्यादा चावल उत्तर प्रदेश में उगाया जाता है. दूसरे स्थान पर तेलंगाना, तीसरे पर पश्चिम बंगाल, चौथे पर पंजाब, पांचवें पर ओडिशा, छठे पर मध्य प्रदेश और सातवें पर छत्तीसगढ़ आता है.

साल 2024-25 का चावल उत्पादन (लाख टन और प्रतिशत के अनुसार)

राज्यउत्पादन (लाख टन)राष्ट्रीय प्रतिशत (%)
उत्तर प्रदेश209.3114.40%
तेलंगाना166.711.47%
प. बंगाल160.811.06%
पंजाब140.19.63%
ओडिशा93.86.45%
मध्य प्रदेश89.36.14%
छत्तीसगढ़83.45.73%
बिहार82.45.66%
आंध्र प्रदेश78.35.38%
तमिलनाडु69.74.79%

(स्रोत: upag.gov.in–Rice Production Report 2024-25)

तो फिर क्यों कहा जाता है छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा'?

भले ही उत्पादन में छत्तीसगढ़ आगे न हो, मगर खेती योग्य क्षेत्रफल के 88 प्रतिशत हिस्से में चावल की खेती होती है. यह देश का ऐसा राज्य है, जहां धान की 20,000 से अधिक किस्में पाई जाती हैं, जिनमें पारंपरिक, हाइब्रिड और औषधीय धान की वैराइटीज़ शामिल हैं. 

Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora

Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora
Photo Credit: pixabay.com

छत्तीसगढ़ की प्रमुख धान की पारंपरिक किस्में

  1. जीराफूल: छोटे दाने वाली सुगंधित किस्म
  2. नगरी दुबराज: छत्तीसगढ़ की ‘बासमती'
  3. हल्दीगठी: लाल मोटा दाना, निचला तना काला
  4. जौंदरा धान: लाल रंग का चावल
  5. मछली पोठी: पतला सफेद दाना
  6. आदन छिल्पा: सुगंधित स्थानीय किस्म

आधुनिक और हाइब्रिड किस्में

  1. PAN 2423, Adavanta 837: अधिक पैदावार देने वाली किस्में
  2. Syngenta 7001: उन्नत और रोग प्रतिरोधक
  3. DRR Paddy 100 (कमला): ICAR-IIRR, हैदराबाद द्वारा विकसित, सूखा और लवणता सहिष्णु किस्म
  4. रामेश्वर विष्णुभोग: किसान द्वारा विकसित नई प्रजाति, स्वाद में मिठास अधिक

औषधीय गुणों वाली धान की किस्में

  1. बगड़ी धान (लाल हजारी): एनीमिया से ग्रस्त महिलाओं के लिए लाभकारी
  2. गठुवन धान: जोड़ों के दर्द के लिए उपयोगी
  3. लायचा धान: गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए लाभदायक
  4. महराजी धान: प्रसव के बाद कमजोरी दूर करने में सहायक 
    Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora

    Chhattisgarh Foundation Day 2025 Dhaan Ka Katora
    Photo Credit: pixabay.com

    ‘धान का कटोरा' बनाने में धमतरी की भूमिका

    राजधानी रायपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर धमतरी जिला छत्तीसगढ़ की धान अर्थव्यवस्था का केंद्र है. यहां साल में दो बार धान की खेती होती है. धमतरी का चावल आज देशभर के घरों में पुलाव, बिरयानी, पोहा और खिचड़ी के रूप में पहुंच चुका है. यहां की महिलाएं कृषि की रीढ़ हैं, जो धान की रोपाई, निराई-गुड़ाई और कटाई के हर चरण में सक्रिय भूमिका निभाती हैं.

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति में ‘धान' का धार्मिक महत्व

    छत्तीसगढ़ में धान को देवी लक्ष्मी का प्रतीक और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. पूजा-पाठ में कलश के ऊपर धान रखा जाता है, और दिवाली पर घरों की सजावट में धान की झालरें लगाई जाती हैं. नवाखाई पर्व में नए धान के चावल से बनी खीर और रोटियां खाई जाती हैं, जबकि छेरछेरा पर्व में बच्चे घर-घर जाकर धान मांगते हैं. यह सामाजिक एकता और सहयोग का प्रतीक है. फसल कटाई के बाद किसान पक्षियों के लिए पहला दाना रखते हैं, जिसे “चिरई चुगनी” कहा जाता है. यह प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति सम्मान का प्रतीक है. 

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