Dhudmaras Village: छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में घने जंगलों के बीच बसा है धुड़मारास गांव...नक्सल प्रभावित होने की वजह से दुनिया इस जगह की खूबसूरती से वाकिफ नहीं थी,लेकिन बस्तर से जैसे-जैसे नक्सलवाद का नासूर ख़त्म हो रहा है बस्तर की खूबसूरती से देश दुनिया के लोग रूबरू हो रहे हैं. पिछले महीने ही UN यानी संयुक्त राष्ट्र टूरिज्म ने बेस्ट टूरिज्म विलेज के लिए दुनिया के 55 गांवों का चयन किया. इसके बाद इसी के तहत एक और कैटेगरी उन्नयन लिस्ट में 20 गांवों को चुना गया. इसी लिस्ट में शामिल है बस्तर का धुड़मारास. ये इसलिए भी बड़ी बात है क्योंकि UN की लिस्ट शामिल भारत से ये इकलौता गांव है. आप इस उपलब्धि पर गर्व कर सकते हैं लेकिन गजब ये है कि धुड़मारास गांव अभी तक छत्तीसगढ़ के सरकारी रिकॉर्ड में गांव के तौर पर दर्ज ही नहीं है. क्या है ये पूरा मामला पढ़िए इस रिपोर्ट में.
बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से करीब 40 किमी दूर कोटमसर पंचायत का धुड़मारास आश्रित गांव है.यहां लगभग 40 से 45 घर हैं और आबादी 240 से 250 के करीब है ... आज गाँव के लगभग सभी परिवारों के युवाओं को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मिला है. जिससे उनको सीजन में 15 से 20 हजार की कमाई हो जाती है. स्थानीय लोग अपने घरों को पर्यटकों के लिए उपलब्ध करवा रहे हैं, वो पर्यटकों को आसपास के इलाकों की सैर भी कराते हैं. स्थानीय खानपान के तहत पर्यटकों को बस्तर के पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं.
मानसिंह ने सबसे पहले देखा आपदा में अवसर
धुड़मारास की तस्वीर को बदलने में धुरवा जनजाति के युवा मानसिंह जैसे लोग अहम हैं. मानसिंह ने इसी गांव में पांचवीं तक पढ़ाई की है. इसके बाद आगे की पढ़ाई जगदलपुर से की. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे मुंबई चले गये. वहां उन्हें एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में नौकरी मिल गई. साल 2020 में कोरोना की वजह से लॉकडाउन लगा और उन्हें गांव लौटना पड़ा. गांव में रहने के दौरान ही उनके मन में कुछ अपना काम करने की चाहत पैदा हुई. इसी दौरान उन्होंने अपने ही गांव में होम स्टे की सुविधा शुरू की. कुछ लोग वहां ठहरने आए तो पूछा कि यहां देखने लायक क्या है? इसी सवाल ने मानसिंह की जिंदगी पलट दी. उन्होंने पर्यटकों को अपना गांव घुमाने की ठानी. इसी के मद्देनजर उन्होंने पहले बांस की नाव बनाई और बम्बू रॉफ्टिंग शुरू कर दी.
गांव का हर युवा कमाता है 15-20 हजार रुपये
मानसिंह बताते हैं कि उन्होंने होम स्टे की सुविधा जब शुरू की थी तो वे अकेले थे. अपनी सहायता के लिए उन्होंने एक आदमी को रखा था. धीरे-धीरे जब पर्यटन बढ़ने लगा तो उन्होंने गांव के लोगों को भी जोड़ना शुरु कर दिया. किसी को गाइड तो किसी को राफ्टिंग और किसी को बर्ड वाचिंग में लगाया गया. धीरे-धीरे काम और बढ़ा तो गांव के हर परिवार से एक सदस्य को पर्यटन के काम में जोड़ लिया गया. अब आलम ये है कि बीते दो साल से गांव से किसी का भी पलायन नहीं हुआ. टूरिज्म के सीजन में यहां एक आदमी को 15 से ₹20000 की कमाई हो जाती है. अहम ये है कि इससे इनकम होता है उसे पूरा डिवाइड नहीं करते है. इनकम का 60% लोगों में बांट लेते हैं और 40% गांव के डेवलपमेंट और दूसरे खर्च के लिए रख लेते हैं.
धुड़मारास गांव दुनिया के नक्शे पर आ गया है तो यहां दूर दूर से पर्यटक भी पहुंचने लगे हैं. NDTV ने यहां आए कई पर्यटकों से भी बात की. एक पर्यटक हरिहरण ने बताया कि वे सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम करते हैं. इस जगह के बारे में उनके दोस्तों ने उन्हें बताया था. उनके मुताबिक ये जगह नेचर के बेहद करीब है. उन्हें यहां आकर काफी अच्छा लगा है और वे कहते हैं कि उनका सारा स्ट्रेस ही दूर हो गया. इसी तरह से एक्स बैंकर रही श्रीविद्या भी धुड़मारास की तारीफ करते हुए नहीं थकती हैं. उन्हें यहां की बंबू राफ्टिंग ने काफी इंप्रेस किया है. वे कहती हैं कि शुगर बीपी सब भूल के 20 मिनट के लिए बंबू राफ्टिंग करो सब बढ़िया लगेगा. हेल्थ पूरी तरह से ठीक हो जाएगा.
बस बारिश के 3 महीने नहीं आते पर्यटक
बता दें कि कुछ सालों पहले तक जिस गांव को बस्तर तक में बेहद कम लोग जानते थे, आज वहां न सिर्फ देश-दुनिया से लोग पहुंच रहे हैं बल्कि बस्तर के लोग भी अब धुड़मारास को ढूंढने लगे हैं. पिछले करीब डेढ़ साल में बारिश के 3 महीने को छोड़कर हर महीने लगभग 2 हजार से 2500 पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं.सरकार का कहना है बस्तर में कई ऐसे गांव हैं जिनके बारे में दुनिया को नहीं पता लेकिन उनकी खूबसूरती ऐसी जो किसी को खींच ले. राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप का कहना है कि बस्तर को प्रकृति की बड़ी सौगात मिली है धुडमारास को UNWTO ने 20 साहसिक पर्यटन village में शामिल किया है ये हर्ष का विषय है .
वन गांव या राजस्व गांव के तौर मान्यता नहीं
हालांकि यूएनडब्ल्यूटीओ यानी संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन की तरफ से सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव उन्नयन कार्यक्रम में अपनी असाधारण क्षमता के लिए मान्यता दिए जाने के बावजूद, धुडमारास गांव को अब तक आधिकारिक तौर पर वन गांव या राजस्व गांव के रूप में वर्गीकृत तक नहीं किया गया है.
गांव वालों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने जितना एरिया जिसका-जिसका बताया था उसी के हिसाब से हम लोग अपना काम चलाते हैं. 250 लोगों की आबादी वाले इस गांव में एक प्राथमिक स्कूल तो चलता है कि लेकिन उसकी इमारत भी जर्जर हो गई है. स्कूल की सहायक शिक्षिका मोनी सिंह बताती हैं कि उनके स्कूल में 24 बच्चे पढ़ते हैं. सभी को मध्यान भोजन भी कराया जाता है.
राज्य सरकार का कहना है कि आने वाले दिनों में हालात बदलेंगे. वन मंत्री केदार कश्यप का कहना है कि अगले एक साल में गांव की तस्वीर बदलने की कोशिश में सरकार जुटी है. यहां विलेज टूरिज्म को डेवलप करने की कोशिश की जाएगी. इसके लिए स्थानीय लोगों का भी सहयोग लिया जाएगा. हम इसे ग्लोबल विलेज में बदल देना चाहते हैं. सारा कार्यक्रम बना कर डिस्ट्रकिट एडमिनिस्ट्रेशन को काम पर लगा दिया जाएगा. वैसे सरकार जब मदद करेगी तब करेगी लेकिन धुड़मारास उदाहरण हैं कैसे लोग खुद गांव की तस्वीर और अपनी तकदीर बदल रहे हैं. इस गांव में लोगों ने खुद ग्रामसभा में सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति का गठन किया है.गांव के लगभग हर घर से एक-एक सदस्य को उसमें शामिल किया.सारे लोग तैराकी में माहिर हैं. इन लोगों ने बैंबू राफ्टिंग पहले खुद की फिर सोशल मीडिया के जरिए इसका प्रचार किया. धुड़मारास के लोगों अपने पारंपरिक ज्ञान और संसाधनों को संरक्षित रखते हुए गांव को आकर्षक पर्यटक स्थल में बदल दिया है, जिसकी पहचान अब देश ही नहीं दुनिया में भी है.
ये भी पढ़ें: Mahakaleshwar: हे महाकाल! आपके ही दर पर लूटा जा रहा है भक्तों को, मंदिर सफाई और दर्शन व्यवस्था प्रभारी गिरफ्तार