मांस बिक्री बंद करो... आदिशक्ति की धार्मिक नगरी रतनपुर में फिर उठी मांग, जानिए यहां का महत्व व इतिहास

Chhattisgarh News: रतनपुर धार्मिक, पौराणिक और पुरातात्विक नगरी के नाम से प्रसिद्ध है. साथ ही यह छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश में हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. इसके अलावा यहां पर्यटन स्थल (Tourist Places in Chhattisgarh) के नाम से भी प्रसिद्ध है.

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Mahamaya Temple Ratanpur: धार्मिक (Religious) व पुरातात्विक नगरी (Archaeological City) रतनपुर (Ratanpur) में मांस-मटन की बिक्री पर प्रतिबंध (Ban on Sale of Meat and Mutton) लगाने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है. सर्व हिंदू समाज (Sarv Hindu Samaj) ने प्रशासन को ज्ञापन सौंप कर मांस-मटन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है, साथ ही मांगों पर उचित व ठोस कार्रवाई नहीं होने पर आने वाले समय में उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दी है. रतनपुर नगर के खुले जगहों पर अवैध कब्जा कर मांस-मटन की बिक्री पर प्रतिबंध लगाते हुए सख्त कार्रवाई की मांग उठाई गई है.

आस्था का केंद्र है रतनपुर

रतनपुर धार्मिक, पौराणिक और पुरातात्विक नगरी के नाम से प्रसिद्ध है. साथ ही यह छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश में हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. इसके अलावा यहां पर्यटन स्थल (Tourist Places in Chhattisgarh) के नाम से भी प्रसिद्ध है.

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आदिशक्ति मां महामाया देवी, भैरव बाबा, गिरजबान हनुमान मंदिर सहित अनेक मंदिरों की दर्शन व पूजा-अर्चना के लिए प्रदेश ही नहीं बल्कि देश और विदेश से लोग अपनी मनोकामना लेकर रतनपुर पहुंचते हैं. लेकिन, नगर मे खुलेआम सड़क और चौक-चौराहों पर मांस-मटन को लटका कर  बेचा जा रहा है.

वहीं, मांस-मटन की दुकानों के आसपास गंदगी और बदबू फैलती है, जिससे देवीदर्शन के लिए यहां आने वाले श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. इससे उनकी आस्था को ठेस पहुंचती है.

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कहां है यह स्थान?

बिलासपुर-कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 किमी पर स्थित आदिशक्ति महामया देवी की पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है. त्रिपुरी के कलचुरियों ने रतनपुर को अपनी राजधानी बना कर दीर्घकाल तक छत्तीसगढ़ में राज किया था. इसे चतुर्युगी नगरी भी कहा जाता है. इसका मतलब यह है कि इस नगरी का अस्तित्व चारों युगों में विद्यमान रहा है. राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर के नाम से अपनी राजधानी बसाया थी.

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यहां है आदिशक्ति महामाया देवी का मंदिर

यहां श्री आदिशक्ति माँ महामाया देवी का दिव्य एवं भव्य मंदिर दर्शनीय है. इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में कराया गया था. 1045 ईस्वी में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गाँव में शिकार के लिए आये थे, जहां रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष पर किया. आधी रात में जब राजा की आंखे खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा. यह देखकर वे चमत्कृत हो गए कि वहां आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है. इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे. सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा 1050 ईस्वी में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया.

मंदिर में महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी स्वरुप देवी की प्रतिमाएं विराजमान हैं. मान्यता है कि यह मंदिर में यंत्र-मंत्र का केंद्र रहा होगा. रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था. भगवन शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था. जिसके कारण माँ  के दर्शन से कुंवारी कन्याओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

नवरात्री पर्व पर यहां की छटा दर्शनीय होती है. इस अवसर पर श्रद्धालूओं द्वारा यहाँ हजारों की संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित किये जाते है.

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