
Anti Naxal Operation in Gariaband: राजाडेरा मटाल पहाड़ियों में चला संयुक्त ऑपरेशन छत्तीसगढ़ पुलिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. ई.30 एसटीएफ, सीएएफ और कोबरा 207 बटालियन की कार्रवाई में 10 नक्सली ढेर हुए. इनमें केंद्रीय समिति (सीसी) का सदस्य मोडेम बालकृष्णन उर्फ मनोज भी शामिल था, जिस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था.राजधानी रायपुर के लगे गरियाबंद जिले में छत्तीसगढ़ पुलिस के नक्सल विरोधी अभियान की बड़ी सफलता पर रविवार को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अरुण देव गौतम खुद गरियाबंद पुलिस लाइन पहुंचे. उन्होंने जवानों को बधाई दी और उनके साथ भोजन कर मनोबल बढ़ाया. डीजीपी ने कहा कि गरियाबंद के जवानों ने जो साहस और धैर्य दिखाया है, वह पूरे राज्य के लिए प्रेरणा है. यह जीत सिर्फ नक्सलियों पर ही नहीं, बल्कि जनता के विश्वास पर भी है.
दरअसल, 10 से 12 सितंबर तक मैनपुर थाना क्षेत्र के राजाडेरा मटाल पहाड़ियों में चला संयुक्त ऑपरेशन छत्तीसगढ़ पुलिस के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ. ई.30 एसटीएफ, सीएएफ और कोबरा 207 बटालियन की कार्रवाई में 10 नक्सली ढेर हुए. इनमें केंद्रीय समिति (सीसी) का सदस्य मोडेम बालकृष्णन उर्फ मनोज भी शामिल था, जिस पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था.
गरियाबंद में मारे गए दो-दो सीसी मेंबर नक्सली
यह उपलब्धि इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि आठ महीनों के भीतर गरियाबंद में दो-दो सीसी मेंबर नक्सली मारे गए. इससे पहले 21 जनवरी को कुल्हाड़ी घाट के जंगलों में हुई मुठभेड़ में सीसी मेंबर चलपती (इनामी 1 करोड़) समेत 16 नक्सली मारे गए थे. इस तरह गरियाबंद छत्तीसगढ़ का पहला जिला बन गया है, जहां इतने कम समय में दो शीर्ष नक्सली नेताओं का खात्मा हुआ. जिले की इस सफलता के पीछे मौजूदा पुलिस अधीक्षक निखिल कुमार राखेचा की रणनीति को अहम माना जा रहा है. जिले को बने करीब 13 साल हो चुके हैं और इस दौरान कई एसपी आए, मगर राखेचा को अब तक का सबसे सफल कप्तान कहा जा रहा है.
फिल्मी स्क्रिप्ट जैसी है बालकृष्णन की कहानी
बालकृष्णन की कहानी भी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसी है. 1983 में उसने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ी और माओवादी विचारधारा से प्रभावित होकर संगठन से जुड़ गया. 90 के दशक में टीडीपी विधायक मंडावा वेंकटेश्वर राव के अपहरण से वह सुर्खियों में आया. संगठन विस्तार की जिम्मेदारी मिलने के बाद उसने बड़े हमलों की योजना बनाई और अलग-अलग राज्यों में उस पर डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक का इनाम रखा गया. परिजन का कहना है कि उन्होंने उसे आखिरी बार 1999 में देखा था और अब 25 साल बाद उसका शव लेने आए हैं.
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इस बीच, मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों के शव 12 सितंबर को जिला अस्पताल लाए गए थे. दो दिनों में आठ शव परिजनों को सौंप दिए गए हैं. इनमें बालकृष्णन, प्रमोद और विमल जैसे बड़े नाम शामिल हैं. अब अस्पताल में केवल दो शव शेष हैं, जिनका इंतजार प्रशासन कर रहा.
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