शासन की ये कैसी नीति..जहां राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र माने जाने वाले बैगा आदिवासी बच्चों का भविष्य एक शिक्षक के भरोसा चलाया जा रहा है. कहने को तो इन जनजाति समुदाय के विकास लिए केंद्र और राज्य सरकार से लाखों करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं, लेकिन वो पैसा कहां खर्च होते हैं वो कहीं नजर नहीं आता?
छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र माने जाने वाले बैगा आदिवासी बच्चे कहने को तो VVIP हैं, लेकिन ये मासूम बच्चे एक स्कूल भवन में, एक सहायक शिक्षक के भरोसे, बिना ड्रेस और बिना किताबों के पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इन बच्चों के नाम पर करोड़ों रुपये सरकारी योजनाओं से खर्च किए जाते हैं, लेकिन फिर भी इनका भविष्य सवालों के घेरे में है.
एक ही कमरा में संचालित हो रहा है पहली से 5वीं तक कक्षा
सहायक शिक्षक हेमंत सिदार कहते हैं कि वर्तमान समय में अतिरिक्त भवन नहीं होने के कारण एक ही क्लासरूम में कक्षा संचालित किया जा रहा है. शाला प्रबंधन समिति और स्थानीय लोगों के द्वारा मांग की गई है, लेकिन अभी तक मांग पूरी नहीं हुई है, जिसके चलते इन बच्चों के शिक्षा में गहरा प्रभाव पड़ रहा है.
शाला प्रबंधन समिति के अध्यक्ष का कहना है कि वर्ष 2003-04 में अतिरिक्त दो कमरे बनाए गए थे, जो भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ गया. कुछ ही साल में दोनों कमरे खंडहर में तब्दील हो चुके हैं. गुणवत्ताहीन निर्माण के कारण ये स्थिति हुई है.
सवालों के घेरे में बच्चों का भविष्य
बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर विकासखंड कोटा "करका" गांव के बैगा आदिवासी बच्चे, जिन्हें देश का सबसे महत्वपूर्ण और सम्मानित वर्ग माना जाता है- 'राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र', लेकिन इन बच्चों का भविष्य सवालों के घेरे में है.
भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ गया दो कमरों का भवन
दरअसल, 15x30 का सीपेज भवन, जो जगह जगह से रिस रहा है. यहां न तो सही बैठने की व्यवस्था है, न ड्रेस और न ही किताबें. वहीं एक अकेले शिक्षक के कंधों पर पहली से पांचवीं तक की सभी कक्षाओं की जिम्मेदारी डाल दी गई है. साल 2003 में यहां दो अतिरिक्त भवन बनाये गए थे, जो भ्रष्टाचार का भेंट चढ़ चुका है. महज कुछ ही सालों में लाखों रुपये के बजट से बनाया गया भवन खंडहर में तब्दील हो चुका है. मजबूरन यहां के 37 बच्चे एक ही क्लास रूम में बैठ कर शिक्षा अध्ययन करने के लिए मजबूर हो रहे हैं. ऐसे में यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चे किस तरह पढ़ाई कर रहे हैं और किस तरह से इनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
सिर्फ कागजों तक सीमित है सरकार की योजनाएं
सरकार आदिवासी शिक्षा पर लाखों करोड़ों खर्च करने का दावा करती है, लेकिन जमींनी हकीकत कुछ और ही कहती है. यह तस्वीर हमें बताती है कि योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं. ज़मीन पर हालात बेहद खराब हैं. इन बैगा बच्चों की यह दुर्दशा केवल उनके भविष्य पर सवाल नहीं उठाती, बल्कि पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल खड़ा करती है?
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