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Budget: बजट क्या है? यह कितने प्रकार का होता है, क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण? क्यों बनता है हर साल

Budget 2025: भारतीय संविधान में बजट शब्द का उल्लेख नहीं है, बल्कि भारतीय संविधान में ‘ वार्षिक वित्तीय विवरण’ नाम से केंद्रीय बजट दर्ज है. बजट किसी भी वित्तीय वर्ष में होने वाले आय और व्यय का दस्तावेज हैं.

Budget: बजट क्या है? यह कितने प्रकार का होता है, क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण? क्यों बनता है हर साल

What is Budget: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी 2025 को आम बजट (Budget 2025) पेश करेंगी. इसकी तैयारियां पूरी हो चुकी है. बजट से पहले 24 जनवरी को पारंपरिक हलवा सेरेमनी आयोजित की गई, जिसके बाद बजट दस्तावेजों को सील कर दिया गया. लोकसभा में हर साल बजट पेश किया जाता है. भारत में बजट का इतिहास लगभग 163 साल पुराना है.

हालांकि कई बार बजट पेश करने के तौर-तरीके में बदलाव आए. ऐसे में आज जानते हैं क्या होता है बजट, यह कितने प्रकार का होता है. क्यों हर साल बजट बनता है. इसके अलावा इसके महत्व को भी जानते हैं. 

क्या है बजट (What is Budget)

बजट (Budget) का सीधा अर्थ है खर्च और कमाई का पूरा गुणा-गणित. साधारण भाषा में कहें तो लेखा-जोखा. जो केंद्र सरकार पेश करती है, इसे हम यूनियन बजट, आम बजट या केंद्रीय बजट कहते हैं.  यह बजट पूरे देश को लेकर बनाया जाता है. 

जैसे हम लोग अपने घर का बजट बनाते हैं, ठीक उसी तरह सरकारें भी बजट बनाती हैं. वित्तीय वर्ष में कितनी आमदनी होगी, कितना खर्च (व्यय) होगा और कितनी बचत होगी, ये सब बजट में शामिल रहता है. आम शब्दों में कहे तो बजट में आमदनी और खर्च का हिसाब रखा जाता है. 

भारतीय संविधान में नहीं उल्लेख है बजट शब्द

भारतीय संविधान में बजट शब्द का उल्लेख नहीं है, बल्कि भारतीय संविधान में ‘ वार्षिक वित्तीय विवरण' नाम से केंद्रीय बजट दर्ज है. बजट किसी भी वित्तीय वर्ष में होने वाले आय और व्यय का दस्तावेज हैं. भारत में बजट पिछले साल के खर्च का विवरण और आने वाले वित्तीय वर्ष के खर्च की व्यवस्था सुनिश्चित करता है.

क्यों हर साल बनता है बजट?

घर हो या संस्था या फिर सरकार का राजकीय कोष, जहां बजट होता है, जो आय और व्यय की एक योजना होती है. भारत में बजट केंद्र सरकार की ओर से हर साल वित्त मंत्री की पहल से की जाती है. इस बजट में सरकार उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य, विनिर्माण, परिवहन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए अपेक्षित व्यय का अनुमान लगाती है, जिसमें सरकार ये तय करती है कि किन वस्तुओं पर कितना खर्च किया जाएगा. इन खर्चों के लिए धन की व्यवस्था कैसे की जाएगी? आय और व्यय के विवरण को बजट के रुप में जाना जाता है. प्रत्येक बजट को एक निश्चित अवधि यानी एक वर्ष के लिए बनाया जाता है.

बजट को हम कई कैटगरी में बांट सकते हैं. जैसे संतुलित बजट (Balanced budget), असंतुलित बजट, सरप्लस बजट (Surplus Budget) और डेफिसिट बजट (Deficit Budget). इसे अंतरिम बजट और पूर्ण बजट में भी विभाजित किया जाता हैं.

क्या होता संतुलित बजट (What is Balanced budget)

किसी एक वित्त वर्ष में सरकार की आमदनी और खर्च के आंकड़े बराबर हों तो उसको संतुलित बजट कहा जाता है. इस स्थिति में न तो बजट में घाटा होता है और न ही अधिशेष. संतुलित बजट राजकोषीय (Fiscal) अनुशासन यानी फिसकल डिसिप्लिन को बढ़ावा देता है और आर्थिक संतुलन बनाए रखने पर फोकस करता है. 

संतुलित बजट के फायदे और नुकसान (Balanced Budget Advantages and Disadvantages)

संतुलित बजट का फायदा-  इससे देश में आर्थिक स्थिरता बनी रहती है और सरकार बेवजह के खर्च यानी से बचती है.

संतुलित बजट के नुकसान- आर्थिक सुस्ती के समय बेअसर साबित होती है. बेरोजगारी जैसी समस्या के समाधान में मदद नहीं मिल पाती है. विकासशील देशों में आर्थिक ग्रोथ में असर डालती है.

क्या है सरप्लस बजट (What is Surplus Budget) 

किसी बजट को अधिशेष या सरप्लस बजट तब कहा जाता है, जब किसी वित्तीय वर्ष में इनकम आय अनुमानित आय से अधिक होती है. साधारण शब्दों में कहे तो वित्तीय वर्ष में जब सरकार के खर्च से ज्यादा उसकी आमदनी होती है तो उसे सरप्लस बजट कहते हैं. किसी एक वित्त वर्ष में सरकार के पास अतिरिक्त रकम बचना सरप्लस बजट कहलाता है. इसका मतलब ये है कि किसी वित्त वर्ष में सरकार जितनी रकम खर्च करेगी, टैक्स और अन्य स्रोत से उसकी कमाई अधिक होगी.

डेफिसिट बजट या बजट घाटा (Deficit Budget) क्या है?

डेफिसिट बजट यानी बजट घाटा तब होता है जब व्यय (Expenditure),राजस्व (Revenue) से अधिक होता है, जिसे आमतौर पर एक ही वित्तीय वर्ष में मापा जाता है. यह किसी देश के वित्तीय स्वास्थ्य को इंगित करता है. डेफिसिट बजट का मुख्य खतरा महंगाई दर है, जो कीमतों के स्तरों में निरंतर बढ़ोतरी है.

डेफिसिट बजट का नुकसान

1. बजट घाटा किसी देश के केंद्रीय बैंक को अर्थव्यवस्था में अधिक धन जारी करने को बाध्य करता है, जिससे महंगाई दर को बढ़ावा मिलता है.

2. अर्थव्यवस्था में मंदी आती है.

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