
Assemblyelection2023 : मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) अब जोर पकड़ने लगा है, हर जगह चुनावी शोर भी सुनाई देने लगा है. बात अगर मध्यप्रदेश की सत्ता की करें तो इसकी किस्मत पांच अंचलों के मतदाताओं (Voters) द्वारा लिखी जाती है और यहीं से सत्ता का ताला खुलता है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और (Congress) के अपने-अपने गढ़ हैं. इन गढ़ों को जो भेद लेता है, वहीं चुनावी सिकंदर कहलता है. 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के कुछ किलों में सेंध लगाई थी, जिसके बदौलत कमलनाथ (Kamal Nath) के सिर पर सत्ता का ताज सजा था. 2018 में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल का किला भेदा था. आज हम मध्यप्रदेश के इन्हीं दो अंचलों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएंगे और देखेंगे कि कहां कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिलीं.
पहले जानते हैं सत्ता दिलाने वाले पांच अंचल कौन हैं?
मध्यप्रदेश को अगर भौगोलिक रूप बांटते हुए देखा जाए तो प्रदेश से पांच प्रमुख अंचल निकलते हैं, जो इस प्रकार हैं. महाकौशल, निमाड़-मालवा, ग्वालियर-चंबल, मध्य भारत, विंध्य और बुंदेलखंड. इन्हीं अंचलों की सभी सीटों को मिलाकर प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों का गणित बनता है.

2018 में ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में बीजेपी को हुआ नुकसान
पिछले चुनावों यानी 2018 के परिणाम की बात करें तो भारतीय जनता पार्टी (BJP) को सबसे ज्यादा नुकसान ग्वालियर-चंबल और मालवा-निमाड़ में झेलना पड़ा था.
पहले बात मालवा-निमाड़ क्षेत्र की
मालवा-निमाड़ यानी उज्जैन-इंदौर संभाग की बात करें तो यहां से 66 सीटों का भाग्य तय होता है. पिछले बार के चुनाव में यहां पर कांग्रेस-बीजेपी (BJP-Congress) दोनों में ही टक्कर देखनी मिली थी, लेकिन बाजी कांग्रेस के पक्ष में गई थी. इस क्षेत्र में 22 सीटें एसटी उम्मीदवारों (ST Candidate) के लिए रिजर्व हैं.
2013 के आंकड़ों को देखें तो 66 सीटों में से BJP ने इस अंचल की 57 सीटें अपने नाम की थीं, जबकि कांग्रेस को महज नौ सीटों पर संतोष करना पड़ा था. 2018 में यहां से तीन सीटें निर्दलीय उमीदवारों के खाते में गई थीं. यहां आदिवासी मतदाताओं (Tribal Voters) की संख्या भी ठीक-ठाक है. 2018 के चुनाव में इस क्षेत्र की 22 ST सीटों पर कांग्रेस ने 14 जबकि बीजेपी ने 7 सीटों पर परचम लहराया था.
अब बात ग्वालियर-चंबल अंचल की
ग्वालियर-चंबल अंचल ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के प्रभाव वाला क्षेत्र है. सिंधिया राजघराने का यहां दबदबा है. इलाके से 34 सीटों का भाग्य तय होता है. 2018 में ग्वालियर-चंबल संभाग में सर्वाधिक सीटें कांग्रेस को मिली थीं.
2018 में 34 सीटों में से कांग्रेस को शहरी क्षेत्र में 7 और ग्रामीण क्षेत्रों में 8 सीटों का फायदा हुआ था. बता दें कि 2020 में सिंधिया के बीजेपी में जाने से इन्हीं दो अंचल के कारण कमलनाथ सरकार गिर गई थी. 2013 के आंकड़ों पर गौर करें तो यहां बीजेपी को 20 और कांग्रेस का 12 सीटें मिली थीं जबकि 2 सीटें अन्य के खाते में गई थीं. पिछले चुनाव यानी 2018 में सिंधिया कांग्रेस के पक्ष में थे, लेकिन अब उनका हाथ बीजेपी के साथ है.
इस बार इन दोनों क्षेत्राें से क्या परिणाम आता है इसके लिए 3 दिसंबर तक इंतजार करना होगा, लेकिन चुनावी लड़ाई रोचक चल रही है.
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