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This Article is From Nov 04, 2023

Election 2023 : एमपी के 19 सीएम फेस, कब किसके सिर सजा ताज? आज टॉप 6 की चर्चा...

चुनावी माहौल में एक सवाल सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता है, वह यह कि आखिर मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? हर पार्टी के सामने यह सवाल प्रमुखता से रखा जाता है कि आपने किसे मुख्यमंत्री बनाएंगे. कांग्रेस (Congress) हो या भारतीय जनता पार्टी (BJP) हर कोई सीएम फेस (CM Face) के मुद्दे पर फंसा है. ये तो हुई चुनाव से पहले के सीएम फेस की बात. अब आते हैं चुनाव के बाद के मुख्यमंत्री बनने वाले चेहरों पर. मध्यप्रदेश में 1956 से लेकर अब तक 19 लोगों के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सजा है. आज हम उन्हीं 19 में से शीर्ष 6 मुख्यमंत्रियों के बारे में जानेंगे...

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Election 2023 : एमपी के 19 सीएम फेस, कब किसके सिर सजा ताज? आज टॉप 6 की चर्चा...

MP Election 2023 : चुनावी माहौल में एक सवाल सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहता है, वह यह कि आखिर मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा? हर पार्टी के सामने यह सवाल प्रमुखता से रखा जाता है कि आपने किसे मुख्यमंत्री बनाएंगे. कांग्रेस (Congress) हो या भारतीय जनता पार्टी (BJP) हर कोई सीएम फेस (CM Face) के मुद्दे पर फंसा है. 2018 जब कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी तब कलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीएम का चेहरा तलाशा जा रहा था. वहीं इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव में (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) बीजेपी ने जिस तरह से चुनावी बिसात बिछाई उससे एक-दो नहीं बल्कि कई उम्मीदवार सीएम के मुखौटे में नजर आ रहे हैं. इसी को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस तंज भी कस रही है कि सात लोग CM बनने के लिए सूट सिलवाए हैं. ये तो हुई चुनाव से पहले के सीएम फेस की बात. अब आते हैं चुनाव के बाद के मुख्यमंत्री बनने वाले चेहरों पर. मध्यप्रदेश में 1956 से लेकर अब तक 19 लोगों के सिर पर मुख्यमंत्री का ताज सजा है. आज हम उन्हीं 19 में से शीर्ष 6 मुख्यमंत्रियों के बारे में जानेंगे...

पहले जानिए 19 चेहरों के नाम, कब से कब तक सीएम का ताज

मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री (First Chief Minister of Madhya Pradesh) का ताज पं. रविशंकर शुक्ल के सिर पर सजा था, उनका कार्यकाल 1 नवंबर 1956 से 31 दिसंबर 1956 यानी महज दो महीने तक ही रहा. 1 जनवरी 1957 को उनका दिल्ली में निधन हो गया था.

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रविशंकर शुक्ल के बाद भगवंतराव मंडलोई सीएम बने जो 9 जनवरी 1957 से 30 जनवरी 1957 और इसके बाद 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. इसके बाद तीसरा चेहरा कैलाश नाथ काटजू का है, जो 31 जनवरी 1957 से 14 अप्रैल 1957 और 15 अप्रैल 1957 से 11 मार्च 1962 तक सीएम के पद पर रहे. चौथे सीएम फेस पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र (Pandit Dwarka Prasad Mishra) रहे जो 30 सितंबर 1963 से 08 मार्च 1967 और 08 मार्च 1967 से 29 जुलाई 1967 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.

आम तौर पर मुख्यमंत्री ही सदन का नेता होता है. लेकिन चौथी विधान सभा में गोविंद नारायण सिंह के कार्यकाल में राजमाता विजयाराजे सिंधिया सदन की नेता रहीं. विजयाराजे सिंधिया 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक सदन की नेता रही थीं.

अब बात गोविंद नारायण सिंह (CM Govind Narayan Singh) की, ये छठवां चेहरा थें. गोविंद नारायण सिंह का कार्यकाल 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च1969 तक था. उनके बाद प्रदेश की बागडोर राजा नरेशचंद्र सिंह (Raja Naresh Chandra Singh) ने संभाली थी. ये सीएम का सातवां चेहरा थे, इनका कार्यकाल 13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969 तक था. आठवां नाम श्यामाचरण शुक्ल (CM Shyamacharan Shukla) का है, जो कि 26 मार्च 1969 से 28 जनवरी 1972, 23 दिसंबर 1975 से 30 अप्रैल 1977 और 09 दिसंबर 1989 से 01 मार्च 1990 तक प्रदेश के मुखिया रहे थे. 

सेठी, जोशी, सकलेचा और पटवा का दौर

नौवां चेहरा प्रकाश चंद्र सेठी का है जो 29 जनवरी 1972 से 22 मार्च 1972 और 23 मार्च 1972 से 23 दिसंबर 1975 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. दसवां नाम कैलाश जोशी का है, जिन्होंने 24 जून 1977 से 17 जनवरी 1978 तक प्रदेश की सत्ता संभाली थी. 11वें क्रम में हैं वीरेन्द्र कुमार सखलेचा जो 18 जनवरी 1978 से 19 जनवरी 1980 तक सीएम थे, उसके बाद 12वें नंबर पर सुंदरलाल पटवा का नाम आता है, इन्होंने 20 जनवरी 1980 से 17 फरवरी 1980 और 05 मार्च 1990 से 15 मार्च 1992 तक मध्यप्रदेश की बागडोर संभाली थी.
    
अर्जुन, मोतीलाल और दिग्विजय की हुई ताजपोशी

13वां चेहरा अर्जुन सिंह का है, इन्होंने 09 जून 1980 से 10 मार्च 1985, 11/03/1985 से 12/03/1985 और 14/02/1988 से 23/01/1989 तक सत्ता अपने हाथ में रखी थी. उसके बाद 14वां चेहरा मोतीलाल वोरा का है, इन्होंने 13/03/1985 से 13/02/1988 और 25/01/1989 से 09/12/1989 तक सीएम की गद्दी संभाली थी. मोतीलाल के बाद आता है दिग्विजय कार्यकाल. दिग्विजय सिंह 15वें चेहरे हैं, इन्हाेंने 07/12/1993 से 01/12/1998 और 01/12/1998 से 07/12/2003 तक प्रदेश की कमान अपने पास रखी थी. 

उमा के रूप में मिली पहली महिला सीएम, बाबूलाल और शिवराज ही उसी पंचवर्षीय बने मुखिया

मध्य प्रदेश को अपनी पहली और इकलौती महिला मुख्यमंत्री उमा भारती के रूप में मिली, ये CM का 16वां चेहरा बनी. उमा भारती का कार्यकाल 08/12/2003 से 23/08/2004 तक ही था. उसके बाद 17वां चेहरा बाबूलाल गौर के तौर पर देखने को मिला जो 23/08/2004 से 29/11/2005 तक मुख्यमंत्री थे. 

बाबूलाल गौर के बाद बाद एमपी के सबसे सफल मुख्यमंत्री के कार्यकाल का आगाज होता है. 18वां चेहरा शिवराज सिंह बने, ये 29 नवंबर 2005 से 11 दिसंबर 2008, 12 दिसंबर 2008 से 09 दिसंबर 2013, 14 दिसंबर 2013 से 12 दिसंबर 2018 और 23 मार्च 2020 से अब तक प्रदेश को चला रहे हैं.

19वां चेहरा कमलनाथ का है, जिन्होंने 17/12/2018 से 20/03/2020 तक प्रदेश की सरकार चलाई.

अब टॉप 5 सीएम की संक्षिप्त प्रोफाइल 

पं. रविशंकर शुक्ल

2 अगस्त 1877 को सागर में जन्म हुआ था. बीए, एलएलबी की डिग्री हासिल की, इनकी पढ़ाई रायपुर, जबलपुर और नागपुर में हुई थी. शिक्षा पूरी करने के बाद तीन वर्ष तक खैरागढ़ राज्य के हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक तथा बस्तर, कवर्धा एवं खैरागढ़ के राजकुमारों के शिक्षक रहे. 1906 में रायपुर में वकालत प्रारंभ की. महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने पर वकालत छोड़कर राजनीति के क्षेत्र में उतर गए. राज्य पुर्नगठन के बाद नये मध्यप्रदेश का निर्माण 1 नवंबर 1956 को हुआ था, तब प्रदेश के पहले सीएम बनाये गये. लेकिन दो महीने बाद ही 31 दिसंबर 1956 को देहावसान हो गया.


भगवंतराव मंडलोई

15 दिसंबर 1892 को खंडवा में जन्म हुआ था. बीए और एलएलबी की शिक्षा ग्रहण की है. 1919 से 1922 तक खंडवा नगरपालिका के सदस्य थे. 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में जेल यात्रा करनी पड़ी. 1939 से 1945 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी तथा महाकौशल कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे. तत्कालीन सीएम पं रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद से अंतरिम व्यवस्था के तौर पर 9 जवरी से 31 जनवरी, 1957 तक पहली बार सीएम रहे इसके बाद तीसरी विधानसभा के एक बार फिर 12 मार्च 1962 से 29 सितंबर 1963 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. 3 नवंबर 1977 को देहावसान हो गया.

कैलाश नाथ काटजू

31 जनवरी 1956 को तत्कालीन मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल के निधन के बाद भगवंतराव मंडलोई को मध्य प्रदेश का कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया था. 21 दिन की कार्यवाहक सरकार चलाने के बाद कांग्रेस हाईकमान के निर्देश पर भगवंतराव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उसके बाद कैलाश नाथ काटजू मुख्यमंत्री बनाए गए. कश्मीरी मूल के कैलाश नाथ काटजू का जन्म एमपी के जावरा में जिले में 17 जून 1887 को हुआ था. इनके पास एमए, एलएलबी, डी.लिट की डिग्री थी. वे प्रसिद्ध वकील और तेज तर्रार नेता थे. उन्होंने आजाद हिंद फौज के लिए भी वकालत की थी. अंग्रेजों से स्वाधीनता आंदोलन की लड़ाई के दौरान वे दो बार जेल भी गए. काटजू पहली विधानसभा में 31 जनवरी 1957 से 14 अप्रैल 1957 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. इसके बाद दूसरी विधानसभा में 15 अप्रैल 1957 से 11 मार्च 1962 तक मुख्यमंत्री रहे थे. काटजू मध्य प्रदेश के पहले ऐसे सीएम बने थे, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. कांग्रेस पार्टी ने कैलाशनाथ काटजू के नेतृत्व में 1962 का विधानसभा चुनाव लड़ा. हालांकि, कांग्रेस चुनाव तो जीत गयी, लेकिन मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू अपनी ही सीट से चुनाव हार गए थे.


द्व्रारका प्रसाद मिश्र

द्वारका प्रसाद मिश्र का जन्म 1901 में उन्नाव के पड़री गांव में हुआ था. इन्होंने बीए, एलएलबी, डीलिट की पढ़ाई रायपुर, जबलपुर और इलाहाबाद से प्राप्त की थी. 1920 में गांधी जी के आह्वान पर महाविद्यालय छोड़ा और अमृत बाजार पत्रिका, कलकत्ता में कार्य किया. 1921 में असहयोग आंदोलन के सिलसिले में गिरफ्तार हुए. 1922 में जबलपुर से प्रकाशित पत्रिका ‘शारदा' के संपादक रहे. माधवराव सप्रे के सहयोग से जबलपुर के साहित्यिक कार्यकलापों में प्रमुख भाग लिया. 1952 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी और भारतीय संसद मंडल के सदस्य बने, 1956 में सागर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति बने. तीसरी विधानसभा के दौरान 30 सितंबर 1963 से लेकर 8 मार्च 1967 तक और चौथी विधानसभा में 8 मार्च 1967 से 29 जुलाई 1967 तक सीएम पद पर रहे. 87 साल की उम्र में 1988 में द्वारका प्रसाद मिश्रा का निधन हो गया.
दल बदल से गिरी कांग्रेस सरकार और संविद ने करीब 20 माह का दौर देखा. संविद सरकार से गोविन्द नारायण सिंह ने आपसी मतभेदों के चलते 10 मार्च 1969 को इस्तीफा दे दिया था.

राजमाता विजयाराजे सिंधिया

गोविंद नारायण सिंह के कार्यकाल में विजयाराजे सिंधिया 30 जुलाई 1967 से 12 मार्च 1969 तक सदन की नेता रही थीं. राजमाता विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेस की बड़ी नेता हुआ करती थीं, लेकिन उन्होंने तख्तापलट करते हुए कांग्रेस की चुनी हुई सरकार को गिरा दिया था. इसकी कहानी पचमढ़ी से शुरु हुई थी, जहां अर्जुन सिंह ने कांग्रेस का सम्मेलन आयोजित किया था. यहां राजमाता विजयाराजे सिंधिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र भी थे. मिश्र ने सम्मलेन में राजशाही पर जमकर तंज कसा और कई तीखी टिप्पणी की थी. उन्होंने राजशाही को लोकतंत्र का दुश्मन तक कह डाला था. यह बात विजयाराजे सिंधिया को नागवार गुजरी और उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. 
 

पचमढ़ी से जब राजमाता लौटीं तो उन्होंने इस अपमान का बदला लेने का ठान लिया और कांग्रेस सरकार के गिराने का भी. विजयाराजे जनसंघ से जा मिलीं और मिश्र सरकार को गिराने की तैयारियों में जुट गईं. राजमाता ने इसके लिए कांग्रेस के लगभग 35 विधायकों को तोड़ कर अपनी ओर मिला लिया. ये विधायक गोविंदनारायण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस से अलग हुए थे. 

1967 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए. राजमाता गुना सीट से स्वतंत्र उम्मीदवार बनी और चुनाव में जीत हासिल की. इसके अलावा वे शिवपुरी की करैरा सीट से भी जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़ी थीं. इस सीट से भी उन्हें जीत मिली थी. उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया. इसके बाद राजमाता ने देर न करते हुए कांग्रेस का तख्तापलट कर दिया और रातोंरात द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार गिर गई और गोविंद नारायण सिंह प्रदेश के नए सीएम बने.

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