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This Article is From Aug 16, 2023

उम्मीद की नई किरण : नक्सलियों के गढ़ सिलगेर मे फहरा तिरंगा

नक्सल प्रभावित क्षेत्र सिलगेर में लगभग दो दशक बाद लहराया राष्ट्रीय ध्वज,ग्रामीणों ने सीआरपीएफ जवानों के साथ किया ध्वजारोहण. पिछले दो वर्षों से जारी है ग्रामीणों द्वारा सीआरपीएफ कैम्प का विरोध, 2021 में विरोध प्रदर्षण के बीच चली थी गोलियां.

उम्मीद की नई किरण : नक्सलियों के गढ़ सिलगेर मे फहरा तिरंगा

सुकमा (sukma) कुछ तस्वीरें आपका दिन बना देतीं हैं, पूरे देश से 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कई तस्वीरें निकलकर सामने आयी, इसी बीच बस्तर के एक ऐसे इलाके की तस्वीर भी सामने आई है जो आपको सुखद एहसास के साथ साथ बदलाव का संकेत देगी. तस्वीर सुकमा जिले के सिलगेर से आई है, नक्सल प्रभावित इस क्षेत्र में लोगों को जीवन में नया सवेरा देखने को मिला जब 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सीआरपीएफ जवानों ने ग्रामीणों के साथ तिरंगे झंडे को सलामी दी. 2021 में सिलगेर का नाम सामने तब आया जब बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने सीआरपीएफ कैम्प के विरोध में धरना प्रदर्शन शुरू किया हालांकि यह विरोध आज दो वर्ष बीत जाने के बाद भी जारी है पर धीरे धीरे यहां के लोगों में बदलाव की झलक दिखने लगी है. सुरक्षा में तैनात जवानों के लगातार कोशिशों का हीं फल है कि ग्रामीणों की दिलों में धीरे धीरे वे अपनी जगह बनाने में सफल रहे और लगभग दो सौ की संख्या में ग्रामीणों सीआरपीएफ के ध्वजारोहण के कार्यक्रम में शिरकत भी किया.

सिलगेर में तिरंगा फहराना क्यों है खास?

सुकमा जिले के जगरगुंडा को बीजापुर जिले से जोड़ने के लिए जगरगुंडा से बासागुड़ा की एक सड़क हुआ करती थी. धीरे धीरे क्षेत्र में नक्सलियों का प्रभाव बढ़ता गया और उन्होंने इस सड़क को पूरी तरह धवस्त कर दिया. इसी रास्ते पर पड़ने वाले गांव सिलगेर नक्सलियों के कोर इलाकों में से एक बन गया. सरकार ने नक्सलियों के गढ़ को भेदने के लिए बासागुड़ा से जगरगुंडा सड़क का पुन:निर्माण प्रारंभ करवाया और सड़क निर्माण को सुरक्षा देने के लिए कैम्प की स्थापना की गई. इसी कड़ी में 11 मई 2021 को सिलगेर के पास भी कैम्प की स्थापना की गई जिसका बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने विरोध किया. 17 मई 2021 को विरोध इतना उग्र हुआ कि जवानों द्वारा ग्रामीणों पर गोली चला दी गई और इस घटना में मौके पर तीन ग्रामीणों की मौत हो गई. घटना को दो वर्ष से अधिक समय बीत गया है पर आज भी ग्रामीण कैम्प के विरोध में धरना प्रदर्शन लगातार कर रहे हैं ऐसे में स्वतंत्रता दिवस के औसर पर तिरंगे को सलामी देना  सिलगेर में एक शुरुआत की झलक पेश करता है.


हमने ग्रामीणों का दिल भी जीता है- सीआरपीएफ कमांडेंट

स्वतंत्रता दिवस पर पूरे देश मे तिरंगा फहरा कर उसे सम्मान दिया जाता है पर जिस स्थान पर सिलगेर जैसे क्षेत्रों में ध्वजारोहण किया जाना किसी चुनौती से कम नहीं. ध्वजारोहण को लेकर सिलगेर में तैनात सीआरपीएफ 229 बटालियन के कमांडेंट पुष्पेंद्र कुमार ने बताया कि 'यह काम आसान नहीं था, ग्रामीणों के दिलों मे जगह बनाने में पूरे दो साल लग गए.' पुष्पेंद्र कुमार के अनुसार जब इस इलाके में कैम्प की स्थापना की गई थी तो ग्रामीणों ने उनका लगातार विरोध किया, इसके पीछे वे नक्सलियों का दबाव मानते हैं. उनका कहना है कि ग्रामीण भी सारी मूलभूत सुविधाएं चाहते हैं पर नक्सली उन्हें दबाव देकर विरोध करने भेजते हैं. साथ ही नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों के मन मे सीआरपीएफ के प्रति गलत धारणा  भी बना दी गई है. सीआरपीएफ के जवानों को इस इलाके में इसलिए तैनात किया गया कि वे सड़क निर्माण में सुरक्षा दे सकें और नक्सलियों की वजह से पिछड़ चुके इस इलाके को आगे बढ़ाने में मदद कर सकें. कमांडेंट के अनुसार उनकी पूरी टीम ने  नक्सलियों से लोहा लेने के साथ साथ ग्रामीणों से सामंजस्य बनाने पर भी पूरा ध्यान दिया. सीआरपीएफ ने ग्रामीणों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवहन को सुचारू रूप से उपलब्ध करवाने के लिए शासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया.

शुरू में ग्रामीणों के मन मे शंशय था पर धीरे-धीरे उन्हें इस बात पर भरोसा होने लगा है कि यहां सीआरपीएफ उनके लिए तैनात है न कि उनके विरोध में.

पुष्पेंद्र कुमार ने बताया कि यह इलाका नक्सलियों के कब्जे में हुआ करता था और दो दशक पहले यहां स्थित एक आश्रम में ध्वजारोहण किया गया था, जिसे आगे चलकर नक्सलियों ने बम से विस्फोट कर उड़ा दिया.इस लिहाज से देखा जाय तो सिलगेर में यह ध्वजारोहण एक बड़ी सफलता है. 

CM ने किया 600 गावों के नक्सलमुक्त होने का दावा

लगभग चार दशक से बस्तर में नक्सलियों ने अपना कब्जा जमा रखा था और प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर अपने प्रभाव क्षेत्रों में नक्सलियों द्वारा विरोध स्वरूप काले झंडे फहराने का फरमान जारी किया जाता था,  इस वर्ष बस्तर के बहुत से अतिसंवेदनशील क्षेत्रों से भी तिरंगा फहराने की तस्वीर सामने आ रही हैं. राज्य के नाम संदेश में खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने यह जानकारी दी है कि बस्तर में 600 गांव नक्सलमुक्त हो चुके हैं और नक्सलियों द्वारा छतिग्रस्त की गई  300 से अधिक स्कूलों का पुन: निर्माण और संचालन शुरू कर दिया गया है.

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