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भारत की जीवंत आत्मा के उपासक पंडित दीनदयाल उपाध्याय

धर्मेंद्र सिंह लोधी
  • विचार,
  • Updated:
    सितंबर 25, 2025 14:04 pm IST
    • Published On सितंबर 25, 2025 14:04 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 25, 2025 14:04 pm IST
भारत की जीवंत आत्मा के उपासक पंडित दीनदयाल उपाध्याय

Pandit Deendayal Upadhyaya Jayanti: भारत वर्ष की महान और गौरवशाली संस्कृति को समय-समय पर अनेक महापुरूषों ने अपने चिंतन एवं दर्शन से समृद्ध किया है. ऐसे ही एक महान और आदर्श व्यक्तित्व हैं, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा, समाज सेवा और राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया. पंडित दीनदयाल उपाध्याय आधुनिक भारत के एक संत तुल्य व्यक्तित्व थे. उनका सामाजिक, आर्थिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक और राजनैतिक चिंतन, राष्ट्रवाद और सामाजिक समानता पर आधारित था. वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर आधारित उनका एकात्म मानववाद का दर्शन आधुनिक संदर्भ में आज भी मानव जाति के लिए पथ प्रदर्शक है.

पंडित दीनदयाल जी का एकात्म मानववाद भारतीय जन-जीवन की आवश्यकताओं और चेतना के अनुरूप एक समग्र और संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है. उनका मानना था कि पूँजीवाद और साम्यवाद जैसी पाश्चात्य विचारधाराएँ भारतीय समाज के अनुरूप नहीं हैं, क्योंकि इन विचारधाराओं में या तो व्यक्तिवाद को सर्वोपरि रखा गया है या फिर व्यक्ति को राज्य का उपकरण मान लिया गया है. वास्तव में व्यक्ति, समाज, प्रकृति और ईश्वर के बीच एकात्मता और समन्वय होना चाहिए. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत है और शरीर मन, बुद्धि और आत्मा के संतुलित विकास का मार्ग प्रशस्त करता है.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक कुशल राजनीतिज्ञ, दार्शनिक और चिंतक थे. राजा राम मोहन राय, स्वामी विवकेकानंद और स्वामी दयानंद सरस्वती जैसे दार्शनिकों ने भारतीय पुनर्जागरण का जो पुनीत कार्य प्रारंभ किया था, उसका अंतिम पड़ाव कदाचित पंडित दीनदयाल ही थे. गांधी जी के सर्वोदय की दार्शनिक अवधारणा के अनुक्रम में पंडित दीनदयाल ने एक सर्वगामी मानव दर्शन प्रस्तुत किया, जो मानव के मानव होने की सार्थकता को निरूपित करता है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतक थे और राष्ट्र की एकता और अखंडता के पक्षधर थे. उन्होंने राष्ट्र को केवल भूमि, जनसंख्या और शासन की इकाई नहीं माना. उनका मानना था कि राष्ट्र एक जीवंत आत्मा है और भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में निहित है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक चिंतन भारतीयता की आत्मा से जुड़ा हुआ था. उन्होंने राजनीति को नैतिकता, सांस्कृतिक चेतना और सेवा भावना से जोड़ने का प्रयास किया. उनका चिंतन भारतीय राजनीति को दिशा, दृष्टि और दर्शन प्रदान करता है. आज भी उनके विचार न केवल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा भी देते हैं. उन्होंने राजनीति में नैतिकता और राष्ट्रधर्म को प्राथमिकता दी. उनके अनुसार राजनीति का चरित्र सेवा, त्याग और सदाचार पर आधारित होना चाहिए. आज जब भारत "विकसित राष्ट्र" की दिशा में अग्रसर है और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को बल मिल रहा है, तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय का राजनीतिक चिंतन और अधिक प्रासंगिक बन गया है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन का आधार भारतीय संस्कृति, व्यक्ति और समाज, राजनीति, अर्थनीति और मानववाद था. उनके सिद्धांतों का आधार संपूर्ण मानव का ज्ञान है. मानवता उनके दर्शन का आधारभूत पक्ष है. उनका चिंतन बिना किसी भेद-भाव के समग्र मानव समुदाय के लिये कल्याण की भावना के रूप में रहा है. उनका मानना था कि हम स्वार्थी न बनकर मानवता के कल्याण और विश्व की प्रगति में सहयोगी बने. यदि हमारे पास कोई वस्तु है, जिससे विश्व को लाभ होगा तो हमें वह देने में कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए. हमें विश्व पर बोझ बनकर नहीं, बल्कि उसकी समस्याओं के समाधान में सहयोगी होना चाहिए. वे कहते थे कि हमारी संस्कृति और परम्परा विश्व को क्या दे सकती है हमें हमेशा इस पर विचार करना चाहिए. इस तरह पंडित दीनदयाल उपाध्याय 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना के पोषक थे.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का सामाजिक चिंतन समरसता पर आधारित था. वे समाज में वर्ग, जाति, भाषा, लिंग या धर्म के आधार पर भेदभाव के कट्टर विरोधी थे. उन्होंने भारतीय समाज को केवल आर्थिक या भौतिक दृष्टि से नहीं देखा, बल्कि उसे संस्कृति, नैतिकता और धर्म के आलोक में पारिभाषित किया. उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति की आत्मा सनातन मूल्य और सेवाधर्म भारतीय समाज के सामाजिक चिंतन का मूल आधार हैं. उन्होंने कहा कि जिस समाज में सेवा की भावना नहीं है, वह समाज आत्महीन हो जाता है. इसलिये उन्होंने 'सेवा ही धर्म है' को अपना जीवन मंत्र बनाया.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत की महान संस्कृति के अधिष्ठान पर ही राष्ट्रवाद को गढ़ना चाहते थे. वे विश्व ज्ञान और आज तक की परम्परा के आधार पर ऐसे भारतवर्ष का निर्माण करना चाहते थे, जो हमारे पूर्वजों से भी अधिक गौरवशाली हो. वे चाहते थे कि भारत वर्ष में जन्मा प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास करता हुआ संपूर्ण मानवता ही नहीं, अपितु सृष्टि के साथ एकात्मकता का साक्षात्कार कर नर से नारायण बनने में समर्थ हो सके.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दार्शनिक चिंतन एक ऐसा प्रकाश स्तंभ है, जो भारतीय समाज को अपनी जड़ों से जोड़ते हुए विकास की ओर अग्रसर करता है. उनका 'एकात्म मानववाद' न केवल वैचारिक दृष्टि से समृद्ध है, बल्कि व्यावहारिक जीवन में भी संतुलन और समरसता की भावना को प्रेरित करता है. यह भारतीयता की आत्मा को समझने और उसे सामाजिक संरचना में उतारने का एक सशक्त माध्यम है.

आज जब भारत यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आत्मनिर्भर बनने और विकसित राष्ट्र बनने की दिशा की ओर अग्रसर है, वोकल फॉर लोकल' की बात हो रही है, तब पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन और अधिक प्रासंगिक हो जाता है. एकात्म मानववाद केवल एक राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मार्गदर्शन भी है.

वास्तव में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दर्शन मानव जीवन तथा संपूर्ण प्रकृति के एकात्म संबंधों का दर्शन है. भारत की दार्शनिक और आध्यात्मिक परम्परा में वे आधुनिक भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं. उनका एकात्म मानव दर्शन भारत की भावी पीढ़ियों के लिए एक पथ प्रदर्शक है, जिसका अनुसरण कर भारतवर्ष में सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्कृष्टता एवं प्रगतिशीलता का प्रसंग स्थापित किये जाने का पुनीत कार्य संभव हो सकेगा.

-धर्मेन्द्र सिंह लोधी, लेखक मध्य प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं. इनके पास संस्कृति, पर्यटन, धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं.

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