बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व प्रख्यात समाजवादी नेता स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को उनके सौंवे जन्मदिन पर भारत-रत्न से सम्मानित करने का निर्णय एक बहुप्रतीक्षित निर्णय है जो लोकसभा चुनाव के कुछ ही समय पूर्व घोषित हुआ है. हालाँकि विलंब से ही सही पर केन्द्र की मोदी सरकार के इस फैसले से देश के विभिन्न वर्गों विशेषकर बिहार के दलितों, पिछड़ी जातियों व वंचितों जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी से सामाजिक भेदभाव के शिकार हैं, के लिए संतोष व प्रसन्नता की बात है. इस फैसले से उन लोकतांत्रिक शक्तियों को बल मिलेगा जो अपने-अपने स्तर पर सामाजिक न्याय के लिए निरन्तर संघर्ष कर रहे हैं. इसलिए सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में आज से 35 वर्ष पूर्व दिवंगत हुए बिहार के इस अति पिछड़े वर्ग के जन-नेता को भारत-रत्न से अलंकृत करना सर्वथा उचित व अभिनंदनीय है.
हालाँकि कल राष्ट्रपति कार्यालय से इस आशय से जारी हुई अधिसूचना चौंकानेवाली नहीं थी. बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार सहित देश के समाजवादी नेता काफी समय से कर्पूरी ठाकुर को राष्ट्र के सर्वोच्च अलंकरण से विभूषित करने की माँग कर रहे थे. यह मांग अब पूरी हुई. लेकिन इसके लिए जो समय तय किया गया उसे राजनीति से प्रेरित कहा जाना चाहिए. यह निर्णय ऐसे समय आया है जब लोकसभा चुनाव के लिए महज़ तीन माह शेष रह गए हैं. एप्रिल -मई में चुनाव की तिथियां हो सकती हैं. लिहाजा बिहार के सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से अति कमजोर तबके को प्रसन्न करने के लिए केन्द्र की भाजपा सरकार ने जो रणनीति बनाई है उसमें इस फ़ैसले को भी शामिल मानना चाहिए.
वह सिर्फ दो सीटें जीत पाई थी. भाजपा की समूची रणनीति 400 पार के लक्ष्य के इर्दगिर्द चल रही है. चाहे 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान राम की प्रतिमा की प्राणप्रतिषठा के राष्ट्रीय उत्सव का मामला हो या 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने का , संकल्प स्पष्ट है. इसके जरिए लोकसभा चुनाव में हर वर्ग के मतदाताओं को प्रभावित करना . अयोध्या के ज़रिये यदि समूचे देश के लोगों को भक्ति के रस मे चुनाव तक डुबाए रखना है तो कर्पूरी ठाकुर को अलंकृत कर बिहार के पिछड़े वर्ग को भाजपा के पक्ष में लाना है. लगभग 13 करोड आबादी वाले इस राज्य में अति पिछड़ा वर्ग 27.02 प्रतिशत, अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36.01 प्रतिशत ,अनुसूचित जाति 19.65 ,अनुसूचित जनजाति 01.68 तथा अनारक्षित 15.52 प्रतिशत है. भाजपा एक हद तक पहले ही इनके बीच अपनी पैठ जमा चुकी है. बिहार से लोकसभा की कुल सीटेँ हैं 40 जिनमें से 2019 के चुनाव में भाजपा ने 17 , जनता दल युनाइटेड 16 तथा लोक जनशक्ति पार्टी ने 06 सीटें जीतीं थीं. यानी इस गठंधन ने 40 में से 39 सीटों पर क़ब्ज़ा किया था. लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतिश कुमार की जेडीयू इस गठबंधन का हिस्सा नहीं है. राज्य में उनकी सरकार का राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठजोड़ है. हालांकि आने वाले दिनों में इसमें भी कुछ 'खेला' देखने को मिल सकता है.
कर्पूरी ठाकुर के नाम पर जो कार्ड खेला गया है, उसका मक़सद दबे कुचले व सामाजिक न्याय से वंचित लोगों का भावनात्मक रूप से शोषण करना है ताकि इन पिछड़ी जातियों के मतदाताओं को यक़ीन हो जाए कि भारतीय जनता पार्टी ही उनकी सच्ची हितैषी पार्टी है.
इस तरह सच्चे अर्थों में जननायक कर्पूरी ठाकुर जो दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे , को राष्ट्रीय सम्मान से विभूषित करके भाजपा ने वाहवाही लूटने के साथ ही अपने राजनीतिक मक़सद की ओर एक क़दम आगे बढ़ाया है. मौक़े का फ़ायदा उठाने उसकी टाइमिंग परफ़ेक्ट है. 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की सौंवी जयंती यानी एक ऐसा एतिहासिक अवसर जिस पर बिहार सहित पूरा देश गर्व करे , राष्ट्रीय सम्मान भारत रत्न से कम क्या हो सकता था ? सो घोषणा हो गई. अब बिहार में कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी को उत्सव की तरह मनाया जाएगा. भाजपा को लोकसभा चुनाव मैं इसका कितना लाभ मिलेगा, कहना मुश्किल है लेकिन इससे राजद -जेडीयू गठबंधन को परेशानी ज़रूर होगी. इस संदर्भ में लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रघु ठाकुर की नजर में केन्द्र की भाजपा सरकार का यह निर्णय आम चुनाव को देखते हुए स्पष्टत: राजनीतिक है और इसका लाभ भी उसे मिलेगा पर निर्णय स्वागत योग्य है. पिछड़ों के उत्थान के लिए आजीवन संघर्षरत रहे कर्पूरी ठाकुर इस अलंकरण के लिए सर्वथा योग्य हैं.उन्हें काफी पहले भारत-रत्न मिल जाना चाहिए था लेकिन खैर देर आयाद दुरुस्त आयद.
दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते है.
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