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बघेल के सहारे कांग्रेस

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Diwakar Muktibodh
  • विचार,
  • Updated:
    November 16, 2023 12:16 pm IST
    • Published On November 16, 2023 12:16 IST
    • Last Updated On November 16, 2023 12:16 IST

महादेव एप, ईडी के छापे ,धर्मांतरण व भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे तथा चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह द्वारा कांग्रेस सरकार के खिलाफ आरोपों की बौछार का  छत्तीसगढ़ विधानसभा की शेष 70 सीटों पर क्या कोई असर पड़ रहा हैं जहां 17 नवंबर को मतदान है ? यह सवाल इसलिए क्योंकि भाजपा ने भ्रष्टाचार के आरोपों के जरिए हवा का रूख बदलने की कोशिश की है और जिस तरह कांग्रेस सरकार व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर निरंतन हमले किए गए , उससे वह आश्वस्त है कि इसका मतदाताओं पर अवश्य प्रभाव पडे़गा. लेकिन जो आम चर्चाएं चल रही हैं, उससे भाजपा का यह स्वप्न दिवास्वप्न ही लगता है. अलबत्ता वह ऐनकेनप्रकारेण मतदाताओं को रिझाने का प्रयास जरूर कर रही है, माहौल बना रही है.

छत्तीसगढ़ का यह पांचवां  विधानसभा चुनाव अनेक दृष्टि से पूर्व के मुकाबले भिन्न है. 2018 के चुनाव के दौरान भाजपा सरकार में थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था. लेकिन चेहरा प्रधानमंत्री मोदी का ही था पर चुनाव की कमान अमित शाह के हाथ में थी जिन्होंने 65 से अधिक सीटें जीतने का दावा किया था पर चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा 15 पर सिमट गई. उस दौर में प्रधानमंत्री के दौरे व जन-सभाएं भी अपेक्षाकृत कम हुई थीं. लेकिन इस दफे पिछले दो महीनों में आधा दर्जन से अधिक बार प्रधानमंत्री व गृहमंत्री की चुनावी सभाएं हो चुकी हैं.

2018 में भाजपा सरकार के खिलाफ जबरदस्त जनमत था. लेकिन भूपेश बघेल की सरकार के प्रति सत्ता विरोधी लहर नहीं के बराबर है. उस समय भाजपा ने विकास के मुद्दे पर चुनाव लडा़ था जबकि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के मुद्दे के साथ ही अपने घोषणा पत्र के वायदों पर जोर दिया था. अब कांग्रेस के पास विकास का मुद्दा है तो भाजपा ने उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का  मुद्दा जोर-शोर से उठाया हैं. यानि प्रत्येक चुनाव में मुख्यतः दो ही मुद्दों पर जोर चला है - विकास व भ्रष्टाचार.

इस बार भी ऐसा ही है किंतु कांग्रेस के ग्रामीण क्षेत्रों में विकासपरक कामकाज की वजह से छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार का मुद्दा गौण हैं तथा मुख्यमंत्री की शुद्ध छत्तीसगढ़िया छवि अधिक महत्वपूर्ण हो गई है. हालांकि भाजपा ने उसे ध्वस्त करने महादेव एप में 502 करोड़ की कमीशनखोरी, हजारों करोड़ का खनिज परिवहन घोटाला, धान घोटाला, शराब घोटाला तथा गोबर खरीदी में व्यापक भ्रष्टाचार को अपना प्रमुख हथियार बना रखा है.

महज 90 सीटों की विधानसभा के इस चुनाव में मोदी-शाह सहित भाजपा के शीर्ष नेताओं ने जन-सभाओं में जैसी आक्रामकता दिखाई है उससे यह सहज प्रतीत होता है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है वरना गृहमंत्री अमित शाह को अपने कुछ प्रत्याशियों के लिए वोट मांगते समय यह कहने की जरूरत नहीं पड़ती कि वे उनके जीतने पर उन्हें बडा़ आदमी बना देंगे. रायगढ़ की जनसभा में भाजपा प्रत्याशी ओ पी चौधरी व कुनकुरी प्रत्याशी विष्णु देव साय के पक्ष में मतदाताओं से उन्होंने यही अपील की थी. उनकी अपील का कितना प्रभाव पड़ेगा या वह सिरे से खारिज कर दी जाएगी , यह तो तीन दिसंबर को स्पष्ट हो जाएगा किंतु शाह के बयान का एक अर्थ यह भी है कि दोनों प्रत्याशी अभी 'बड़े आदमी ' नहीं है.  बड़े तब बनाए जाएंगे जब वे चुनाव जीतेंगे.  तब उन्हें बड़े पद से नवाज़ा जाएगा. ओपी चौधरी तो नहीं पर विष्णु देव साय पूर्व से ही बड़े हैं. वे भाजपा का बड़ा आदिवासी चेहरा है.साय  विधायक,लोकसभा सदस्य व केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री रहने के अलावा प्रदेश अध्यक्ष जैसे बड़े पदों पर रह चुके हैं. वे और कितने बड़े बनाए जाएंगे यह भाजपा की अगली पालिटिक्स पर निर्भर है.

बहरहाल यह साफ दिखाई देता है कि छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ प्रदेश भाजपा नहीं, मोदी-शाह चुनाव लड़ रहे हैं. भूपेश बघेल को घेरने की हर मुमकिन कोशिश करते हुए उन्होंने कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार को प्रमुख मुद्दा बना रखा है. राजनीतिक हल्को में यह भी सवाल पूछा जा रहा है कि आखिरकार  छत्तीसगढ़ में मोदी-शाह की इतनी अधिक दिलचस्पी का सबब क्या है ?

क्या प्रदेश पार्टी की खस्ता हालत व कमजोर नेतृत्व को देखते हुए या अडानी समूह की वजह से जिसके हित इस राज्य से जुड़े हुए हैं ? वरना अगले लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भी सिर्फ़ 11 सीटों का लेकिन अकूत खनिज संपदा से परिपूर्ण यह प्रांत इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है ? बहरहाल तार किसके किससे जुड़े हुए हैं इसे अभी ठीक-ठीक समझना मुश्किल है पर यह तथ्य स्वप्रमाणित है कि आरोपों के जरिए मतदाता को भ्रमित करने की हरचंद कोशिश की जा रही है.

यहां एक और तथ्य महत्वपूर्ण है कि भाजपा का आक्रमण और उसके जवाबी हमले कांग्रेस की तुलना में अधिक गहरे हैं. प्रथम चरण के मतदान के बाद बचे हुए दस दिन के दौरान भाजपा ने जो तेजी दिखाई वह विस्मयकारी है. उसने कांग्रेस को भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने के अलावा साम्प्रदायिकता का कार्ड भी चलाने की कोशिश की. खासकर कवर्धा और साजा में. किंतु इसका प्रभाव समूचे छत्तीसगढ़ में पडेगा, ऐसा नहीं है. कवर्धा व साजा भी इससे मुक्त रहेंगे क्योंकि इस राज्य की ऐसी तासीर नहीं है. मतदाताओं का जो भी फैसला होगा वह विशुद्ध रूप से सामाजिक सद्भाव के साथ प्रत्याशी व पार्टी को देखकर होगा.

चुनाव का गणित यह कहता है कि भाजपा की सीटें तो निश्चित बढेंगी. यद्यपि जो चुनावी स्थितियां पिछले चुनाव में थीं, वे इस चुनाव में भी यथावत है.  दोनों पार्टियों में बागी उम्मीदवार हैं जिनकी वजह से कहीं कहीं त्रिकोणीय व कहीं चतुष्कोणीय संघर्ष है.

2018 के चुनाव में जोगी की छत्तीसगढ़ जनता पार्टी ने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसने पांच सीटें जीतीं व तीन में दूसरे तथा नौ में तीसरे स्थान पर रही थी. तब कांग्रेस से अधिक उसने भाजपा को नुकसान पहुंचाया था. इस बार भी ऐसा ही कुछ नज़र आता है पर सीटें जीतने के मामले में जोगी कांग्रेस की संभावना न्यूनतम नज़र आती है. इसके अलावा चुनाव समर में मौजूद बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, आम आदमी पार्टी व हमर समाज पार्टी व अन्य दलों की उपस्थिति वोट शेयर करने तक सीमित है विशेषकर बिलासपुर संभाग में. हालांकि राज्य के प्रत्येक चुनाव में बसपा विधानसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज करती रही है.कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख दांव पर लगाकर भाजपा ने स्वयं की स्थिति जरूर मजबूत की है.  

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