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CM साहब ! छिंदवाड़ा में 8 का कत्ल करने वाले का नहीं, सिस्टम का दिमाग 'करेक्ट' करिए

छिंदवाड़ा में बीती रात यानी 28 मई को मानसिक तौर पर परेशान आदिवासी समाज के एक युवक को सनक आई और उसने एक के बाद एक कुल्हाड़ी से माता,पिता,भाई,पत्नी और बच्चों समेत आठ लोगों का कत्ल कर दिया.NDTV ने जब घटना की परतें उधेड़ीं तो पता चला कि युवक की दिमागी हालत खराब थी और उसका परिवार इलाज के लिए मात्र झाड़-फूंक का सहारा ले रहा था. सवाल ये है कि उनके पास आयुष्मान कार्ड क्यों नहीं था?

CM साहब ! छिंदवाड़ा में 8 का कत्ल करने वाले का नहीं, सिस्टम का दिमाग 'करेक्ट' करिए

Chhindwara Mass Murder: छिंदवाड़ा में बीती रात यानी 28 मई को मानसिक तौर पर परेशान आदिवासी समाज के एक युवक को सनक आई और उसने एक के बाद एक कुल्हाड़ी से माता,पिता,भाई,पत्नी और बच्चों समेत आठ लोगों का कत्ल कर दिया. सुबह जब खबर फैली तो छिंदवाड़ा से लेकर भोपाल तक हर कोई सन्न रह गया. NDTV ने जब घटना की परतें उधेड़ीं तो पता चला कि युवक की दिमागी हालत खराब थी और उसका परिवार इलाज के लिए मात्र झाड़-फूंक का सहारा ले रहा था. युवक की सात दिन पहले ही शादी भी हुई थी.परिवार को लग रहा था कि झाड़-फूंक से मामला पटरी पर आ जाएगा.

हमारी पड़ताल में ये भी सामने आया कि परिवार गरीब था इसलिए वो इलाज कराने डॉक्टर के पास नहीं गया. ऐसे में सवाल ये है कि आखिर आयुष्मान भारत जैसी योजना किस काम की है? सरकार और उसका अमला तो यही बताता है न ये योजना गरीबों के लिए है तो सवाल उठता है कि फिर छिंदवाड़ा में 8 लोगों का कत्ल करने वाले युवक और उसके परिवार तक इस योजना का लाभ क्यों नहीं पहुंचा? हम ऐसा क्यों कह रहे हैं ये आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले ये जान लीजिए कि MP में आयुष्मान कार्ड का हिसाब किताब क्या है? MP में कुल 3.8 करोड़ आयुष्मान कार्ड बने हैं जो यूपी के बाद देश में सबसे ज्यादा है. यूपी में 4.8 करोड़ आयुष्मान कार्ड बने हैं.   

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 अब छिंदवाड़ा के सामूहिक कत्ल की वारदात को समझने की कोशिश करते हैं. NDTV ने बोदल कछार गांव में जाकर हत्याकांड के आरोपी मानसिक विक्षिप्त दिनेश उर्फ भूरा गोंड के चाचा कल्लू सिंह  से इस घटना पर बात की.

कल्लू सिंह ने हमें बताया वारदात के कुछ दिन पहले से भूरा गोंड का दिमाग 'करेक्ट' हो गया था. वो रात में कुल्हाड़ी लेकर घूमने लगा था. दो दिन पहले जब वो आंगन में सो रहे थे तब भी भूरा करीब दो बजे रात को कुल्हाड़ी लेकर घूम रहा था. उसे देखकर कुत्ता भौंका तो कल्लू की नींद खुद गई. कल्लू ने भूरा को कहा- तू कुल्हाड़ी लेकर क्यों घूम रहा है तो उसने कुछ भी जवाब नहीं दिया.

इसके बाद सुबह कल्लू ने सारी बात भूरा के बड़े भाई को बताई. जिसके बाद दोनों भूरा को लेकर एक पंडा के पास गए. कल्लू के मुताबिक वहां झाड़-फूंक के बाद भूरा का दिमाग कुछ ठीक हो गया. लेकिन दो दिन बाद ही उसने रात को ही अपने माता-पिता,भाई, भाभी और बच्चों को एक-एक करके कुल्हाड़ी से काट दिया और खुद भी फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली.

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जब हमने कल्लू सिंह से पूछा- आप भूरा को डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले गए तो उनका जवाब था- साहब हम गरीब लोग हैं कहां डॉक्टर का खर्च उठा पाएंगे. भूरा गोंड की मानसिक स्थिति एक साल से खराब थी. कल्लू सिंह और उनके परिवार के पास आयुष्मान कार्ड है या नहीं ये तो अभी साफ नहीं हुआ है लेकिन सवाल ये है कि आखिर इस अच्छी योजना की जानकारी कल्लू और उन जैसे गरीब परिवार को पास क्यों नहीं है? जब भारत मंगल ग्रह तक पहुंच चुका है तो तब भी छिंदवाड़ा और दूसरे आदिवासी इलाके झाड़-फूंक के भरोसे क्यों हैं? क्यों वे आधुनिक चिकित्सा पद्धति से दूर हैं?

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