सुभाष चंद्र बोस जयंती: जबलपुर में आम लोगों के लिए खुले जेल के ताले, देखिए किस बैरक में सोते थे नेताजी

Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti: नेताजी का जेल वारंट और नेताजी की शयन पट्टिका को अब एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया है. इस पूरे परिसर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस वार्ड (Netaji Subhash Chandra Bose Ward) नाम दिया गया है. यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा भी लगाई गई है, खास बात यह है कि इस मूर्ति को कैदियों ने बनाया था.

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Parakram Diwas: आज नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती (Netaji Subhas Chandra Bose Jayanti) है. नेताजी का जबलपुर से भी गहरा व पुराना नाता रहा है. यही कारण है कि सुभाष बाबू की याद में नेताजी सुभाष चंद्र केंद्रीय कारागार (Central Jail Jabalpur) के प्रबंधन ने आम लोगों के लिए जेल के दरवाजे खोल दिए थे. लोग यहां बनाए गए सुभाष संग्रहालय (Subhash Museum) का भ्रमण किया और नेताजी से जुड़ी धरोहरों को देखा.

जबलपुर में नेताजी की बैरक

जबलपुर में कैद थे नेताजी

नेताजी सुभाषचंद्र बोस को अंग्रेज हुकूमत ने जबलपुर जेल में वर्ष 1933 और 34 के बीच 2 बार कैद करके रखा था. यहां उनका स्वास्थ्य काफी ज्यादा बिगड़ जाने के बाद उन्हें कोलकाता के घर में नजरबंद किया गया था, जहां से वे फरार होकर सड़क मार्ग से जर्मनी तक जा पहुंचे थे. जबलपुर जेल में उनकी बैरक, लकड़ी से बनी पनडुब्बी, ओखली, बैलगाड़ी के चक्के, ग्रामोफोन समेत अनेक चीजें संग्रहालय में सहेज कर रखी गई हैं.

जबलपुर में बैरक के अंदर यहां पर सोते थे नेताजी

नेताजी का जेल वारंट और नेताजी की शयन पट्टिका को अब एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया है. इस पूरे परिसर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस वार्ड (Netaji Subhash Chandra Bose Ward) नाम दिया गया है. यहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक प्रतिमा भी लगाई गई है, खास बात यह है कि इस मूर्ति को कैदियों ने बनाया था.

जेल प्रबंधन ने सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे तक के लिए जेल आम लोगों के लिए खोला था. जेलर मदन कमलेश ने बताया कि जेल में बंदियों द्वारा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए हैं. शहर वासी नेताजी से जुड़ी धरोहरों को म्यूजियम में देखते हैं.

नेताजी का वारंट

नेताजी की जबलपुर की यादें

नेताजी पहली बार 16 जुलाई 1932 को जबलपुर जेल लाए गए थे. उसके बाद उनको मुंबई (तत्कालीन समय में बम्बई) ट्रांसफर कर दिया गया था. वहीं 18 फरवरी 1933 को नेताजी दूसरी बार जबलपुर जेल लाए गए और 22 फरवरी को यहां से बम्बई होकर यूरोप चले गए. नेताजी तीसरी बार 5 मार्च 1939 को त्रिपुरी कांग्रेस की अध्यक्षता करने आए थे, उस समय वे तेज बुखार में थे, लेकिन स्थितियां ऐसी बनीं कि उनका आना अनिवार्य हो गया था. नेता जी ने जबलपुर की आखिरी यात्रा 4 जुलाई 1939 को राष्ट्रीय नवयुवक मंडल का शुभारंभ करने के लिए की थी.

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