Special Olympics Games: स्वीडन में जलवा बिखेरेंगे जबलपुर के फुटबॉलर, जानिए तरुण के संघर्ष की दास्तान

Indian Football Team: तरुण की मां संगीता ठाकुर ने एनडीटीवी को बताया कि जब तरुण 2 वर्ष का हो गया था और वह चल भी नहीं पाता था, सुन और बोल भी नहीं पाता था, इससे परेशान होकर तरुण के पिता ने घर छोड़ दिया. उसके बाद संगीता ठाकुर अकेले ही अपने बेटे को पाल रही हैं. अब तरुण 19 वर्ष का हो गया है, लेकिन मां को उसके दिव्यांग होने से कोई परेशानी नहीं है. दोनों मां-बेटे आराम से एक-दूसरे का ख्याल रखकर जीवन गुजार रहे हैं.

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Special Olympics Indian Football Team: मध्यप्रदेश से स्पेशल ओलिंपिक (Special Olympic) की भारतीय फुटबॉल टीम (Indian Football Team) में जबलपुर (Jabalpur) के तरुण कुमार को चयनित किया गया है. तरुण कुमार 11 जुलाई को कोच प्रभात राही के साथ दिल्ली रवाना होंगे और वहां से 13 जुलाई को स्वीडन में शुरु हो रहे दिव्यांगजनों के विशेष ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. 16 से 19 तक ये विशेष ओलंपिक आयोजित किये जाएंगे. बचपन से ही सुनने और बोलने में तरुण को परेशानी होती रही, 2 वर्ष तक वे चल भी नहीं पाते थे, लेकिन तरुण के हौसले ने आज उन्हें भारतीय टीम तक पहुंचा दिया. आइए जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी...

इस स्कूल के स्टूडेंट हैं तरुण

तरुण जस्टिस तन्खा मेमोरियल स्कूल फ़ॉर स्पेशल चिल्ड्रन के छात्र हैं. यही स्कूल इनका खर्च भी वहन कर रही है. महासचिव बलदीप मैनी ने NDTV को बताया कि मध्यप्रदेश से पहली बार किसी दिव्यांग खिलाड़ी का भारतीय फुटबॉल टीम में चयन हुआ है. तरुण कुमार कक्षा दसवीं के छात्र हैं और पढाई के साथ उसकी खेलकूद में रुचि को देखते हुए उन्हें अच्छे कोच प्रभात राही से ट्रेनिंग दिलाई गई, जिसके कारण तरुण का चयन पहले ग्वालियर और फिर दिल्ली में किए गए शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारतीय फुटबॉल टीम में किया गया.

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Special Olympics: कोच और मां के साथ तरुण

मां का योगदान भी रहा अहम 

तरुण की मां संगीता ठाकुर ने एनडीटीवी को बताया कि जब तरुण 2 वर्ष का हो गया था और वह चल भी नहीं पाता था, सुन और बोल भी नहीं पाता था, इससे परेशान होकर तरुण के पिता ने घर छोड़ दिया. उसके बाद संगीता ठाकुर अकेले ही अपने बेटे को पाल रही हैं. अब तरुण 19 वर्ष का हो गया है, लेकिन मां को उसके दिव्यांग होने से कोई परेशानी नहीं है. दोनों मां-बेटे आराम से एक-दूसरे का ख्याल रखकर जीवन गुजार रहे हैं.

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संगीता ठाकुर ने तरुण का लालन-पालन करने के लिए सिलाई करना शुरू किया. इस कमाई से तरुण की फ़ुटबाल की तमन्ना पूरी की गई.

संगीता ठाकुर बताती हैं कि शुरू से ही तरुण को खेलने का बहुत शौक था, जब भी समय मिलता यह मैदान में खेलने चला जाता था. तरुण के नाना-नानी, मामा-मामी ने उनका पूरा सपोर्ट किया और आज जिस जगह तरुण पहुंचे हैं, उसमें तरुण के ननिहाल का पूरा  सपोर्ट रहा.

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Special Olympics: तरुण कुमार

राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा का सहोग भी रहा

जबलपुर के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा अपने पिता की स्मृति में स्पेशल चिल्ड्रन के लिए एक चैरिटी स्कूल खोला है. जस्टिस तन्खा मेमोरियल रोटरी इंस्टीट्यूट फॉर स्पेशल चिल्ड्रन नामक इस स्कूल की शाखाएं मध्य प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी फैली है. यह स्कूल दिव्यांग बच्चों के लिए बनाया गया है. विवेक तन्खा बताते हैं कि कोच प्रभात ने तरुण की गतिविधियों को देखा और कहा कि यह अच्छा खेल सकता है. तभी हमारे स्कूल ने निर्णय लिया कि तरुण का कैरियर फुटबॉल में ही बनाया जाएगा, इसके लिए जो भी फुटबॉल की शिक्षा और उपकरण की आवश्यकता होगी, वह तन्खा मेमोरियल स्कूल पूरा करेगी. उसी का परिणाम है कि तरुण की लगन, प्रभात की मेहनत और स्कूल का सपोर्ट आज तरुण को स्पेशल ओलंपिक तक पहुंचा रहा है.

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