Holi Special: रंगों के त्योहार को खास तरीके से मनाता है सिंधी समाज, इस मिठाई के बिना अधूरी है इनकी होली

Sindhi Special Gheehar: होली पर सिंधी समाज की परंपरा है कि वो घीहर मिठाई के बिना इस त्योहार को अधूरा मानते हैं. ये परंपरा लंबे समय से ऐसे ही चली आ रही है.

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इस मीठाई के बिना सिंधी लोगों की होली है अधूरी

Khandawa Holi 2024: पूरा देश होली के उत्साह में डूब चुका है. लोग अपनी-अपनी परम्पराओं के मुताबिक इस पर्व को मना रहे हैं. निमाड़ में आदिवासी समाज (Tribal Society) के लोग जहां भगोरिया पर्व मना रहे हैं, तो वहीं देश भर में कहीं बरसाने की होली (Barsana Holi 2024), तो कहीं लट्ठ मार होली (Lath Maar Holi 2024), तो कहीं अबीर गुलाल के माध्यम से होली मनाई जा रही है. खंडवा (Khandwa) जिले में सिंधी समाज (Sindhi Society) के लोग घीहर (Gheehar) के बिना अपनी होली को अधूरी मानते हैं.

दरअसल, घीहर एक विशेष तरह की मिठाई है, जिसे होली के अवसर पर ही बनाया जाता है. सिंधी समाज में यह परंपरा अविभाजित भारत के समय से ही चली आ रही है और आज भी लोग होली पर एक-दूसरे को होली की शुभकामनायें देने के लिए घीहर की मिठाई तोहफे में भेंट करते हैं.

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सिंधी लोगों की घीहर के बिना होली है अधूरी

ऐसे बनाया जाता है घीहर

घीहर यूं तो जलेबी का ही एक रूप होता है, लेकिन इसके बनावट में अंतर होता है. जलेबी छोटी होती है और घीहर का घेरा बड़ा होता है. इसे शुद्ध देसी घी में बनाया जाता है. इस पकवान में केसर और ड्राई फ्रूट भी डाले जाते हैं जो कि इसे ज्यादा समय तक ताजा और स्वादिष्ट बनाए रखते हैं.

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घीहर के बिना अधूरी है होली

सिंधी समाज के लोगों की मानें तो जिस तरह से दिवाली पर गिफ्ट और मिठाई देने का रिवाज हर समाज में है, ठीक उसी तरह सिंधी समाज में होली पर घीहर शगुन के रूप में बहन-बेटियों और रिश्तेदारों को भेजे जाने की परंपरा है. इसके बिना सिंधी समाज की होली अधूरी मानी जाती है. सिंधी समाज में घीहर होली पर्व के शगुन की मिठाई के रूप में भी प्रचलित है जिसका उपयोग होली पर परिजनों का मुंह मीठा कराने में किया जाता है. होली के 15 दिन पहले से ही घीहर बनाने की शुरुआत हो जाती है. कई लोग इसे ऑर्डर देकर भी बनवाते हैं.

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अविभाजित भारत से चली आ रही है परंपरा

रंगों के पर्व होली पर सिंधी समाज में घीहर मिठाई बनाने और शगुन के तौर पर बहन-बेटियों और रिश्तेदारों को भेजने की परंपरा है. ये परंपरा सिंध नदी के पास बसे सिंध से शुरू हुई जो आज तक चली आ रही है. भले ही यह हिस्सा आज पाकिस्तान में चला गया हो, लेकिन भारत के सिंधी समाज लोग आज भी इस परंपरा का पालन करते हैं.

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