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किसानों को लेकर विभाग लापरवाह! करोड़ों खर्च के बावजूद MP में शो-पीस बनकर रह गई मिट्टी परीक्षण केंद्र

Soil testing labs were locked: सरकार मिट्टी परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं तो बना दी और उपकरण भी खरीद लिए, लेकिन परीक्षण के लिए स्टाफ की भर्ती करना भूल गए. ऐसे में किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए जिला मुख्यालय की ओर रुख करना पड़ रहा है. हालत ये है कि इन किसानों को रिपोर्ट के लिए बार-बार जिला मुख्यालय का भी चक्कर लगाना पड़ता है.

किसानों को लेकर विभाग लापरवाह! करोड़ों खर्च के बावजूद MP में शो-पीस बनकर रह गई मिट्टी परीक्षण केंद्र

Soil testing labs turned into ruins: सरकारें किसानों को आधुनिक और उन्नत खेती (Modern and Advanced Farming) करने की सलाह देती हैं. अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का परीक्षण करवाकर (Soil testing) फसल की बुवाई की सलाह भी देती हैं, लेकिन सरकार खुद इन मामलों में संजीदा नहीं है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश के सीहोर में 1.20 करोड़ रुपये की लागत से बनी मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला किसानों के उपयोग में नहीं आ रही है. सहीं टेक्नीशियन नहीं हैं तो कहीं-कहीं इन प्रयोगशाला में ताला लगा हुआ है.

मिट्टी परीक्षण के लिए जिला मुख्यालय की ओर क्यों रुख करने को मजबूर किसान?

दरअसल, करीब 7 साल पहले पूरे मध्य प्रदेश में 265 विकासखंड में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला स्थापित की गई थी. बाकायदा प्रयोगशाला का भवन बनाया गया और उपकरण भी खरीदे गए, लेकिन आज तक प्रयोगशालाएं शुरू नहीं हो सकीं और अब ये खंडहर में भी तब्दील होने लगी है. इतना ही नहीं सीहोर जिले के पांच लैब में सिर्फ जिला मुख्यालय स्थित मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में ही मिट्टी की जांच हो पा रही है. ऐसे में मजबूरी में ब्लॉक के किसानों को निजी लैब की ओर रुख करना पड़ रहा है.

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ब्लॉक स्तर पर लैब होने के बावजूद क्यों निजी लैब की ओर रुख कर रहे किसान?

निजी लैब से कराई मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट सही है या गलत, यह भी साफ नहीं हो पाता है, क्योंकि खाद-बीज वाले दुकानदार ही भोपाल या अन्य महानगरों में मिट्टी के नमूने जांच के लिए भेजते हैं. फिर ये दुकानदार ही किसान को मिट्टी की रिपोर्ट देते हैं. ये हाल सिर्फ सीहोर जिले के ही नहीं हैं, बल्कि पूरे प्रदेश के हैं.

जिले के इछावर, आष्टा, भैरूंदा और बुदनी के मंडी प्रांगण में छह साल पहले मिट्टी प्रयोगशाला का निर्माण हुआ था. इन्हें विभाग को हैंडओवर भी कर दिया गया, लेकिन स्टाफ की नियुक्ति न होने के कारण ये मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला सिर्फ शो-पीस बनकर रह गई.

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किसानों को इन प्रयोगशाला का लाभ ही नहीं मिला पा रहा है. मिट्टी प्रयोगशाला में अभी तक स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई है. कई महत्वपूर्ण उपकरण भी अब तक प्रयोगशाला में नहीं है. इस कारण किसानों को मिट्टी का परीक्षण कराने के लिए परेशान होना पड़ रह है. मजबूरी में कई किसान बिना परीक्षण कराए ही अपनी फसल की बुवाई कर रहे हैं, जिसके कारण किसानों को अधिक उत्पादन नहीं होने के साथ-साथ आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ रहा है. बता दें कि सीहोरवासियों के लिए मिट्टी का परीक्षण के लिए सिर्फ जिला मुख्यालय ही है.

जिला मुख्यालय पर सालभर में 12750 नमूनों का हो रहा टेस्ट

जिला मुख्यालय स्थिति कृषि विभाग के कार्यालय में मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में हर साल जून महीने तक 12 हजार 750 मिट्टी के सैंपल लेने का लक्ष्य तय किया गया है. यानी कि 12 हजार 750 सैंपलों की जांच यहां की जाती है. इनमें 7500 सैंपल ऐसे होते हैं जो सीधे जिला मुख्यालय तक आते हैं, जबकि प्रत्येक बलॉक से एक-एक हजार सैंपल एकत्रित कर यहां जांच के लिए भिजवाए जाते हैं, लेकिन किसानों को अब कृषि विभाग की जांच पर भरोसा ही नहीं है.

किसानों का कहना है कि वहां सैंपल जाने के कई दिनों बाद तक रिपोर्ट नहीं मिल पाता है. सैंपल देने के बाद जांच के लिए महीनों चक्कर काटना पड़ते हैं. ऐसे में हम निजी लैब पर जांच करवा लेते हैं, जहां से रिपोर्ट की पीडीएफ मोबाइल पर मिल जाती है. 

अम्लीय और क्षारीय परत बनती जा रही है सीहोर की जमीन

किसानों द्वारा अधिक उत्पादन लेने के चक्कर में बाजारों से बिना गुणवत्ता के रासायनिक खादों और पेस्टीसाइड का उपयोग कर रहा है, जिससे किसानों को पैदावार के साथ आमदनी तो हो रही है, लेकिन इस आमदनी को बढ़ाने के चक्कर में वो अपनी जमीन को बंजर करते जा रहे हैं. रासायनिक खादों के प्रयोग से जमीन के ऊपरी भाग की मिट्टी में अब उर्वरा शक्ति के स्थान पर अब अम्लीय व क्षारीय परत बनती जा रहा है और ये किसानों के भविष्य के लिए सबसे बड़ा नुकसान है.

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हर प्रयोगशाला में 10 स्टाफ की है जरूरत

लैब को शुरु करने के लिए प्रत्येक प्रयोगशाला में कम से कम 10 लोगों का स्टाफ जरूरी है, लेकिन अब तक इन प्रयोगशालाओं के लिए लैब टेक्नीशियन की भी नियुक्ति नहीं हो पाई है. लैब शुरु न होने के कारण कई जगह तो प्रयोगशाला के भवन खंडहर हो रहे हैं.

सीहोर के चार ब्लॉक की ये है स्थिति 

1. भैरूंदा: साल 2017 में यहां मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन अब तक इस प्रयोगशाला के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति नहीं हो पाई है. ऐसे में किसानों को मिट्टी का परीक्षण करवाने के लिए परेशान होना पड़ रहा है. देखरेख के अभाव में प्रयोगशाला का भवन भी खंडहर होते जा रहा है.

2. इछावर: यहां भी करीब 8 साल पहले मृदा परीक्षण प्रयोगशाला बनकर तैयार हो गई थी, लेकिन स्टाफ की नियुक्ति नहीं होने से लैब का संचालन शुरु नहीं हो पाया. कृषि उपज मंडी प्रांगण में बनी इस प्रयोगशाला भवन में अब कृषि विभाग का दफ्तर संचालित होता है. ऐसे में किसान मिट्टी के परीक्षण के लिए परेशान हो रहे हैं. 

3. आष्टा: यहां भी कृषि उपज मंडी समिति परिसर में मृदा जांच परीक्षण केंद्र बनकर तैयार है, लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इस परीक्षण केंद्र के अब तक ताले ही नहीं खुले हैं, क्योंकि मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला के लिए भर्ती नहीं हो पाई है. कृषि विभाग के पास खुद ही पर्याप्त स्टॉफ नहीं है, जिसके कारण अब भी यहां मिट्टी की जांच नहीं हो पा रही है.

4. बुदनी: बुदनी में भी करीब 30 लाख की लागत से बनी मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला का लाभ स्टाफ नहीं होने के कारण किसानों को नहीं मिल पा रहा है. मजबूरी में किसान या तो सीहोर सैंपल भेजते हैं या फिर निजी लैब पर. कृषि विभाग के ब्लॉक कार्यालय पर किसानों के जो सैंपल एकत्रित किए जाते हैं वे भी कई दिन बाद जिला मुख्यालय पहुंच पाते हैं.

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प्रदेश सरकार ने बनाई थीं 265 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं 

फसल का उत्पादन अच्छा हो इसके लिए साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरु की थी, ताकि किसानों को उनकी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पहचान करने में सहायता हो सके. उस समय प्रदेश सरकार ने 53 जिलों के 313 विकास खंडों में 265 मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं बनवाईं, जिनकी अनुमानित लागत 130 करोड़ रुपये से ज़्यादा थी. हालांकि सरकार से सबसे बड़ी भूल ये हुई कि इन प्रयोगशालाओं के लिए कर्मचारियों की भर्ती करना भूल गई. नतीजतन, इनमें से ज़्यादातर प्रयोगशालाएं, जिन्हें शुरू में बहुत धूमधाम से बनाया गया था, लेकिन अब अधिकांश पर ताले लगे हुए हैं.

हर ब्लॉक में 30 लाख की लागत से बनी थी लैब

प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला बनाने का निर्णय लिया था, जिले के आष्टा, इछावर, बुदनी और भैरूंदा में 30-30 लाख रुपये खर्च कर प्रयोगशाला तो बना दी, लेकिन प्रयोगशाला में मिट्टी का परीक्षण अब तक शुरु नहीं हो पाया है. प्रत्येक प्रयोगशाला में तीन-तीन लैब टेक्नीशियन की भर्ती होनी थी, लेकिन अब तक इनकी पोस्टिंग नहीं हो पाई है. ऐसे में कई किसान अपने खेत की मिट्टी का परीक्षण करने के लिए जिला मुख्यालय पर आते हैं तो कई किसान निजी लैब की ओर रुख कर जाते हैं.

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