मध्यप्रदेश में 10 दिनों से मंडियां बंद हैं. कारोबारी हड़ताल पर हैं. वैसेतो मंडी शुल्क कम करने से लेकर उनकी तमाम तरह की मांगें हैं लेकिन एक मांग सुर्खियों में है. कारोबारी चाहते हैं कि निराश्रित शुल्क बंद हो.ये शुल्क 52 साल पहले 1971 में लगाया गया था, जब बांग्लादेश आजाद हुआ था और वहां से शरणार्थी भारत पहुंचे थे. तब से ही उन निराश्रितों के नाम पर ये टैक्स वसूला जाता है.
दरअसल मध्यप्रदेश की 230 मंडियों में बीते 4 सितंबर से ही काम काज बंद है. किसानों का उत्पाद खरीदा नहीं जा रहा है, रोज़ करोड़ों का नुकसान हो रहा है.इसकी एक बड़ी वजह है 1971 की लड़ाई और बांग्लादेश का बनना.चौंकिये नहीं हम आपको बताते हैं पूरी बात.हुआ यूं था कि 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान बांग्लादेश से जो शरणार्थी आए थे उनके भरण-पोषण के लिए समाज कल्याण बोर्ड ने शुल्क लगाया था. ये शुल्क 20 पैसे था. इसे निराश्रित शुल्क नाम दिया गया. करीब 25 सालों से कारोबारी इस शुल्क का विरोध कर रहे हैं लेकन कोई सरकार इस पर ध्यान ही नहीं देती. मंडी बोर्ड कहता है कि ये तो समाज कल्याण बोर्ड लेता है तो वे इसे कैसे खत्म कर सकते हैं. कारोबारियों का कहना है कि प्रदेश में हर साल 175 करोड़ रु निराश्रित शुल्क की वसूली होती है.
देखा जाए तो कारोबारियों की परेशानी यही नहीं है. उन्होंने प्रशासन के सामने अपनी 11 सूत्री मांग रखी है. जिसमें मंडी रेंट और लीज रेंट कम करने जैसी मांगे भी हैं.
देखा जाए तो अकेले भोपाल की करौंद मंडी में रोज 1 से डेढ़ करोड़ का व्यापार होता है, जो 10 दिनों से बंद हैं. इससे आप पूरे प्रदेश में हालात का अंदाजा लगा सकते हैं. सरकारों पर अनदेखी का आरोप यदि कारोबारी लगा रहे हैं तो वो सही भी लगता है. मसलन- 5 साल पहले निराश्रित पेंशन को 300 से बढ़ाकर 600 किया गया, व्यापारी कहते हैं 2020 में निराश्रित शुल्क खत्म करने का ऐलान हुआ था लेकिन 3 साल बाद भी अमल नहीं हुआ. कारोबारियों को लगता है कि चुनावी मौसम में शायद सरकार उनकी बात मान ले.