​​​​​​​Gandhi Jayanti 2025: जहां महात्मा गांधी ने किया था विश्राम, आज खंडहर में तब्दील हो गया सागर का वो नजरबाग पैलेस

​​​​​​​Gandhi Jayanti: 2 दिसंबर 1933 की सुबह महात्मा गांधी दमोह पहुंचे थे. वहां से वे सागर शहर के ऐतिहासिक नजरबाग पैलेस पहुंचे. उस समय इस पैलेस का इस्तेमाल आरामगाह के रूप में होता था. गांधीजी ने यहां करीब एक घंटे तक विश्राम किया था.

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Gandhi Jayanti 2025: सागर शहर का ऐतिहासिक नजरबाग पैलेस, जहां कभी महात्मा गांधी ने विश्राम किया था, आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. 2 अक्टूबर को जब पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मना रहा है, ऐसे समय पर नजरबाग पैलेस की जर्जर हालत हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक धरोहरों को सहेज पा रहे हैं?

दरअसल, महात्मा गांधी 2 दिसंबर 1933 की सुबह दमोह पहुंचे थे. वहां से वे दोपहर करीब तीन बजे सागर के टाउनहॉल आए. यहां से वे शहर के ऐतिहासिक नजरबाग पैलेस पहुंचे. उस समय इस पैलेस का इस्तेमाल एक आरामगाह के रूप में होता था. गांधीजी ने यहां करीब एक घंटे तक विश्राम किया. इसके बाद आगे रवाना हो गए. मराठा काल में निर्मित नजरबाग पैलेस की भव्य इमारत सागर तालाब के किनारे स्थित थी. एक समय में यह अपने कलात्मक दरवाजों, रंगीन कांच की खिड़कियों और भित्तिचित्रों के लिए जानी जाती थी. गांधीजी के ठहरने के बाद इसका महत्व और भी ऐतिहासिक का हो गया था.

मालगुजार से अफसरों तक का सफर

नजरबाग पैलेस कभी मालगुजार गया प्रसाद दुबे के भाई का निवास स्थान था. बाद में यह पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज के अफसरों के निवास के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा. लेकिन देखरेख के अभाव में अब यह इमारत खंडहर में तब्दील हो गई है.

स्मार्ट सिटी का प्रयास, बरती लापरवाही

हाल ही में सागर स्मार्ट सिटी द्वारा नजरबाग पैलेस के सामने एक पार्क का निर्माण कराया गया. उद्देश्य था कि इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए. लेकिन पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था न होने के कारण पार्क की लाइट चोरी हो गई, बाउंड्री तोड़ दी गई और फव्वारे धूल खा रहे हैं. यह लापरवाही साफ बताती है कि प्रशासन की इच्छाशक्ति केवल कागजों तक सीमित है.

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इतिहास की गवाही देता है पैलेस

गांधीजी के दौरे ने सागर को ऐतिहासिक रूप से समृद्ध बनाया. नजरबाग पैलेस न केवल एक भवन है बल्कि गांधीजी के विचारों और उनके योगदान की गवाही का प्रतीक भी है. आज जब यह पैलेस खंडहर में बदल चुका है, तो सवाल उठता है कि क्या हमारी आने वाली पीढ़ियां इस धरोहर को पहचान भी पाएगी.

संरक्षण की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर नजरबाग पैलेस का सही तरीके से पुनर्निर्माण और संरक्षण किया जाए तो यह न सिर्फ सागर की शान बन सकता है, बल्कि शहर के पर्यटन मानचित्र को भी नई पहचान दे सकता है. गांधी जयंती पर यही संकल्प होना चाहिए कि हम महात्मा गांधी के विचारों के साथ-साथ उनकी स्मृतियों को भी संजोकर रखें, ताकि यह धरोहर आने वाले समय में गर्व का कारण बन सके.

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