Muharram 2024: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के गुना (guna) की स्थानीय बोहरा मस्जिद में भी मुहर्रम (Muharram) की दूसरी तारीख से वाज प्रवचन का सिलसिला जारी है. मंगलवार को दसवीं मुहर्रम पर बोहरा समाज ने यौमे आशूरा मनाया. इस दौरान मुंबई से आए मुर्तजा बिन कैजार ने इमाम हुसैन की शहादत पढ़ी. कैजार ने बताया कि इमाम हुसैन और उनके पूरे परिवार, जिसमे 6 महीने के छोटे बच्चे, नन्ही बच्चियां, महिलाएं आदि शामिल थे. इनके लिए सीरिया के क्रूर शासक यजीद की सेना द्वारा 1400 वर्ष पूर्व सातवीं मुहर्रम को पानी बंद कर दिया गया था. 3 दिन तक हुसैन का पूरा परिवार और उनके साथी भूखे प्यासे तड़पते रहे. 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके बेटे भाइयों सहित 72 साथियों को बेरहमी से प्यासा क़त्ल कर दिया गया था.
"तीन दिन से प्यासे बच्चे मां की गोद में दुबके.."
उन्होंने कहा कि "अब्बास को इमाम हुसैन ने जंग की इजाजत नहीं दी थी. पूरा कुनबा तीन दिन की भूख और प्यास से बेहाल था. छोटे बच्चे मांओं की गोद में दुबके बैठे थे. उनमे इतनी ताकत भी नहीं बची थी की आवाज निकाल सकें. इमाम हुसैन की नन्ही बच्ची सकीना ने तीन दिन की भूख और प्यास से तड़पते हुए छोटी सी मश्की पानी लाने के लिए अपने चचा अब्बास को थमाई. अब्बास ने इमाम हुसैन से पानी लाने की इजाजत मांगी थी. इजाजत मिलते ही वे पानी भरने नहर पहुंचे थे. जहां यजीद की फौज ने दोनों हाथ काटने के बाद उनका बेदर्दी से कत्ल कर दिया था."
"बच्ची को पिता का कटा सिर थमाया"
हुसैन और उनके बेटों, भाइयों, साथियों के दर्दनाक कत्लेआम के पश्चात हुसैन के परिवार की महिलाओं को कर्बला से 900 किलोमीटर दूर शाम ऊंटों पर लादकर ले जाया गया. पुत्र इमाम ज़ेनुलआबेदीन को भी कोड़े मरते हुए पैदल ले जाया गया. वहां, यज़ीद के दरबार में इमाम हुसैन की मासूम बेटी को पिता की याद में रोता देख हुसैन का कटा सिर थमा दिया गया, जिसके कारण दहशत में उस बच्ची ने वहीं, दम तोड़ दिया.
"सब्र की इंतेहा.."
कैजर ने बताया कि "यूं तो मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर में उन चार महीनों में से एक है, जिन्हें हुर्मत वाला कहा जाता है और जिसमें जंग की इजाज़त नहीं है. लेकिन कर्बला के दिलसोज़ हादसे ने मुहर्रम के मायने ही बदल डाले. आज जब भी मुहर्रम का नाम आता है, तसव्वुर में कर्बला की तस्वीर उभर आती है. कर्बला के हादसे ने इंसानियत के दिल पर गहरे निशान छोड़े हैं. एक तरफ़ ज़ुल्म की हद थी, तो दूसरी तरफ़ सब्र की इंतहा. ज़ुल्म की मिसाल तो आज भी मिल जाती है, मगर सब्र की मिसाल कोई न ला सका. हज़रत इमाम हुसैन का ज़िक्र सुनकर किसी भी साहिबे ईमान की आंख नम हो जाना एक फ़ितरी अमल है."
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"हुसैन कुर्बानी न देते तो इंसानियत मिट जाती"
उन्होंने कहा कि "कर्बला का असल पैग़ाम क्या है? हज़रते इमामे हुसैन ने अपनी जान की क़ुर्बानी दे कर ये पैग़ाम दिया है कि इस्लाम क़ीमती है. हुसैन की जान नहीं. भाई-भतीजे,भांजे और बच्चों की जान का नज़राना देकर ये पैग़ाम दिया है कि मेरे लिए घर से ज़्यादा दीन को बचाना ज़रूरी है. यज़ीद के दुराचारी होने के कारण यदि इमाम हुसैन उसकी सत्ता स्वीकार कर लेते तो इस्लाम के सत्य, शांति, सेवा, मानवीय संवेदना, महिला उत्थान के संदेश नष्ट हो जाते और चारो ओर यज़ीद के बर्बरता पूर्ण कार्यों के कारण हाहाकार की स्थिति निर्मित हो जाती."
"हुसैन ने हथियार बंद दुश्मनों की फ़ौज के बीच तीरों की बरसात में नमाज़ अदाकर के ये पैग़ाम दिया कि आज के बाद नमाज़ छोड़ने की तुम्हारी बड़ी से बड़ी वजह भी इस से बहुत छोटी मालूम होगी. इमाम ने भी दीन का पैग़ाम तक़रीरों के ज़रिए नहीं बल्कि अमल के ज़रिए ही दिया है."
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