Mp News: पिता की हार का बदला ले पाएगा बेटा या बेटे से मिली हार का बदला ले पाएंगे BJP प्रत्याशी? सतना सीट की दिलचस्प कहानी

Lok Sabha Election 2024: यहां भाजपा की तरफ से सबसे ज्यादा स्टार प्रचारकों ने सभाएं की हैं, वहीं कांग्रेस और बसपा ने बड़े आयोजनों की जगह गांव की सभाओं में फोकस किया है. फिलहाल किसके प्रचार का तरीका जनता को पसंद आया इस बात का पता तो 4 जून को चल पाएगा.

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Lok Sabha Election: कांग्रेस और बीजेपी में दिख रही है कांटे की टक्कर

Lok Sabha Election 2024: पहले चरण का मतदान संपन्न हो गया. अब 26 अप्रैल को दूसरे चरण का मतदान होना है.  मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में पहले चरण की तरह ही दूसरे चरण में 6 सीटों पर वोटिंग होगी. सतना (Satna) में भी 26 अप्रैल को मतदान होना है. रैली, रोड-शो, सभा और नुक्कड़ सभाओं का क्रम बुधवार की शाम चार बजे से थम जाएगा. इसके बाद सभी प्रत्याशी (Candidate) जनता के बीच डोर-टू-डोर संपर्क कर सकेंगे. यहां से भाजपा (BJP) की तरफ से सांसद गणेश सिंह, कांग्रेस (Congress) की तरफ से विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा और बसपा (BSP) ने पूर्व विधायक नारायण त्रिपाठी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

कौन लेगा किससे बदला

2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह ने सिद्धार्थ के पिता स्वर्गीय सुखलाल कुशवाहा को केवल 4418 वोट से हरा दिया है. अब ये देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि क्या बेटा अपने पिता की हार का बदला ले पाएगा? वहीं चार बार के सांसद गणेश सिंह, सिद्धार्थ कुशवाहा से 2023 के विधानसभा चुनाव में मिली हार का बदला लोकसभा के मैदान में लेने की कोशिश करेंगे. इस सीट से कुल 19 प्रत्याशी मैदान में हैं.

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BJP ने लगाया अपना पूरा जोर

यहां भाजपा की तरफ से सबसे ज्यादा स्टार प्रचारकों ने सभाएं की हैं, वहीं कांग्रेस और बसपा ने बड़े आयोजनों की जगह गांव की सभाओं में फोकस किया है. फिलहाल किसके प्रचार का तरीका जनता को पसंद आया इस बात का पता तो 4 जून 2024 को वोटों की गिनती के बाद पता चलेगा. लेकिन लोग अपने अपने आकंड़े लगा रहे हैं.

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बागी साबित होते रहे हैं गणेश सिंह के लिए फायदेमंद

सतना लोकसभा सीट में अब सांसद गणेश सिंह के सियासी सफर को देखा जाए तो 2019 के लोकसभा के अलावा अधिकांश चुनाव में उन्हें विरोधी खेमें में हुई बगवात का जमकर फायदा मिला था. 2014 में कांग्रेस से बागी हुए नारायण त्रिपाठी की वजह से गणेश सिंह ने कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल को मात दी थी. वहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में राजाराम त्रिपाठी कांग्रेस से बागी होकर चुनाव लड़े जिसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस प्रत्याशी सुधीर सिंह तोमर चौथे स्थान पर चले गए.

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बागियों का फायदा मिला है गणेश सिंह को

यहां राजाराम का मैदान में उतरना भाजपा प्रत्याशी गणेश सिंह के लिए फायदेमंद साबित हुआ. वहीं 2004 में जुगलाल कोल का निर्दलीय और बसपा से नरेन्द्र सिंह का मैदान में उतरना कांग्रेस प्रत्याशी के लिए हार का सबब बन गया. यह गणेश सिंह का पहला लोकसभा चुनाव था जिससें उन्होंने 83590 वोटों से जीत दर्ज की थी. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस, बसपा और सपा से एक दर्जन प्रभावशाली नेताओं ने बगावत कर भाजपा की सदस्यता ले ली. ऐसे में इसका असर नतीजों पर पड़ता है या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा.

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