MP News: CM चौहान 21 को करेंगे आदि शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण

आठवीं शताब्दी के दार्शनिक व हिंदू धर्म में प्रतिष्ठित शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा का नाम एकात्मता की प्रतिमा रखा गया है. यह विशाल प्रतिमा नर्मदा नदी के किनारे सुरम्य मांधाता पहाड़ी के ऊपर स्थित है.

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खंडवा जिले में नर्मदा नदी किनारे स्थित ओंकारेश्वर मंदिरों का शहर है
भोपाल:

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 21 सितंबर को ओंकारेश्वर में हिंदू संत आदि शंकराचार्य की एक भव्य प्रतिमा का अनावरण करेंगे. खंडवा जिले में नर्मदा नदी किनारे स्थित ओंकारेश्वर मंदिरों का शहर है. भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर में स्थित है.

18 सितंबर को होना था अनावरण 

आठवीं शताब्दी के दार्शनिक व हिंदू धर्म में प्रतिष्ठित शंकराचार्य की 108 फुट ऊंची प्रतिमा का नाम एकात्मता की प्रतिमा रखा गया है. यह विशाल प्रतिमा नर्मदा नदी के किनारे सुरम्य मांधाता पहाड़ी के ऊपर स्थित है. अधिकारी ने बताया कि चौहान को 18 सितंबर को भव्य प्रतिमा का अनावरण करना था, लेकिन क्षेत्र में भारी बारिश के कारण कार्यक्रम को 21 सितंबर को पुनर्निर्धारित किया गया है.

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उन्होंने कहा कि आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास और मध्य प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (एमपीएसटीडीसी) के मार्गदर्शन में प्रतिमा को तैयार किया गया है और एकात्मता की प्रतिमा आदि शंकराचार्य की विरासत और उनकी गहन शिक्षाओं को प्रदर्शित करती है.

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अधिकारी ने कहा, ‘‘ यह सांस्कृतिक परियोजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुप्रतीक्षित दृष्टिकोण - 'वसुधैव कुटुंबकम (दुनिया एक परिवार है) को पूरा करेगी. इस 108 फुट ऊंची प्रतिमा के साथ, मध्य प्रदेश सभी धर्मों के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करेगा.''

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मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने पहले 2,141.85 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी थी, जिसके तहत ओंकारेश्वर में एक संग्रहालय के साथ आदि शंकराचार्य की मूर्ति बनाई जानी थी.

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चार साल तक ओंकारेश्वर में रहे शंकराचार्य

माना जाता है कि केरल में जन्मे शंकराचार्य बाल्यावस्था में संन्यास लेने के बाद ओंकारेश्वर पहुंचे थे जहां उन्हें उनके गुरु गोविंद भगवत्पाद मिले थे और उन्होंने इस धार्मिक नगरी में चार वर्ष रहकर विद्या प्राप्त की थी. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत दर्शन को लोगों तक पहुंचाने के लिए ओंकारेश्वर से 12 वर्ष की आयु में देश के अन्य हिस्सों के लिए प्रस्थान किया था. 

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