
Shri Leela Samaroh : मध्य प्रदेश के 28 पवित्र आस्था वाले स्थलों में ‘श्रीलीला समारोह' (Shri Leela Samaroh) का आयोजन मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग (Culture Department of Madhya Pradesh) और जिला प्रशासन के सहयोग (District Administration) से किया जा रहा है. श्रीराम कथा (Shri Ram Katha) के विशिष्ठ चरितों यानी किरदारों (Special Characters) पर आधारित 10 दिवसीय श्रीलीला समारोह आज गुरुवार से प्रारंभ हो रहा है. संस्कृति विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) की मंशा अनुसार यह भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है.
पहले जानिए कहां-कहां होगा श्रीलीला समारोह?
प्रदेश के 28 पवित्र आस्था स्थलों गवालियर, दतिया, ओरछा (निवाड़ी), चित्रकूट, रामवन, नागौद (सतना), मऊगंज, देवतालाव (रीवा), मैहर, सलेहा (पन्ना), सलकनपुर (सीहोर), सीहोर, जामसांवली (छिंदवाड़ा), अमरकंटक (अनूपपुर), जबलपुर, खजुराहो (छतरपुर), देवास, इंदौर, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, नलखेड़ा (आगर), कुण्डेश्वर (टीकमगढ़), ओंकारेश्वर (खण्डवा), दमोह, सिंग्रामपुर, नोहटा, तेंदूखेड़ा (दमोह) में श्रीलीला समारोह आयोजित किया जाएगा.
कहां कब-कब होगा ये कार्यक्रम?
श्रीलीला समारोह के दौरान 11 से 13 जनवरी तक उज्जैन, रतलाम एवं मंदसौर, 13 से 15 जनवरी तक नलखेड़ा (आगर-मालवा), 14 से 16 जनवरी, देवास, सीहोर, सलकनपुर (सीहोर), 15 से 17 जनवरी तक जामसांवली (छिंदवाड़ा), जबलपुर, अमरकंटक (अनूपपुर), 16 से 18 जनवरी तक चित्रकूट (सतना), कुण्डेश्वर (टीकमगढ़), खजुराहो (छतरपुर), सलेहा (पन्ना), 17 से 19 जनवरी तक ग्वालियर, दतिया, ओरछा (निवाड़ी) तथा 18 से 20 जनवरी तक रामवन (सतना), देवतालाब (रीवा), मऊगंज, 19 से 21 जनवरी तक मैहर, नागौद (सतना) , सिंग्रामपुर, नोहटा, दमोह, तेंदूखेड़ा (दमोह) में प्रस्तुतियां दी जायेंगी.

MP News : श्रीलीला समारोह उज्जैन में
Photo Credit: मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग
श्रीहनुमान लीला
श्रीहनुमान लीला में भगवान हनुमान (Lord Hanuman) के जीवन के उपाख्यानों को 15 दृश्यों में प्रस्तुत किया गया है. श्रीहनुमान लीला को भक्ति की लीला के रूप में देखना चाहिये. भारतीय पौराणिक आख्यानों में सबसे बड़े भक्त के रूप में श्रीहनुमान जी का वर्णन अलग-अलग संदर्भों में आता है. अपने बाल्यकाल से ही श्रीहनुमान जी एक लीला की संरचना करते हैं, जिसमें वे सूर्य को निगलते हैं और देवता चिंतित हो जाते हैं. तब सभी देवता उपस्थित होकर श्रीहनुमान जी से प्रार्थना करते हैं और अपनी-अपनी शक्तियां श्रीहनुमान जी को आशीष स्वरूप प्रदान करते हैं.
जब भी श्रीहनुमान जी से किसी भी तरह का दुर्व्यवहार आख्यान में आता है, जहां-जहां उनकी परीक्षा लेने और दंडित करने का किसी चरित के द्वारा प्रयत्न किया जाता है. तब देवी ही क्रोधित होकर अपने नाथ की रक्षा के लिये आगे आती हैं. पूंछ देवी और शक्ति का प्रतीक है. इन अर्थों में यह आख्यान, बहु भक्ति की अवधारणा को कितनी सहजता से प्रकट करता है.
मध्यप्रदेश शासन,संस्कृति विभाग द्वारा रामायण में वर्णित वनवासी चरितों क्रमशः निषादराज गुह्य और भक्तिमति शबरी पर लीला नाट्य तैयार कर प्रदेश के सभी जनजातीय विकासखंडों में प्रस्तुतियां कराई गई है। इन प्रस्तुतियों की झलक आपके लिये.... pic.twitter.com/kvos7z7Nej
— MP Tribal Museum (@MPTribalMuseum) April 20, 2023
भक्तिमति शबरी लीला
लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया गया है कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं. तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं. अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं.
आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं. अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे. लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए. भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं. लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं.
निषादराज गुह्य लीला
लीला नाट्य निषादराज गुह्य में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की. भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं. आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है.
लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं. सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है. रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है. लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया.
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