RSS और PM मोदी के 'अभद्र' कार्टून बनाने वाले कार्टूनिस्ट को नहीं मिली अग्रिम जमानत, जानिए पूरा मामला

Case Against Cartoonist: अधिकारियों के मुताबिक प्राथमिकी में मालवीय के कार्टूनों को ‘अभद्र', ‘आपत्तिजनक' और ‘अमर्यादित' बताते हुए आरोप लगाया गया है कि इन्हें हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि धूमिल करने के इरादे से सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया.

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Case Against Cartoonist: कार्टूनिस्ट को नहीं मिली अग्रिम जमानत

Cartoonist Hemant Malviya: मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य लोगों के अभद्र व्यंग्य चित्र बनाकर इन्हें सोशल मीडिया पर डालने के आरोप का सामना कर रहे एक कार्टूनिस्ट को अग्रिम जमानत का लाभ देने से इनकार कर दिया है. अदालत ने कहा है कि आरोपी ने पहली नजर में भाषण और अभिव्यक्ति की संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता का सरासर दुरुपयोग किया है और उसे हिरासत में लेकर पूछताछ किया जाना आवश्यक है. वहीं कार्टूनिस्ट के वकील ने अग्रिम जमानत याचिका पर बहस के दौरान कहा कि उसके मुवक्किल ने 'केवल व्यंग्यात्मक कार्य के लिए' कार्टून बनाए और इन्हें उसके उस फेसबुक पेज पर प्रकाशित किया गया था जिसे हर व्यक्ति देख सकता है.

क्या है मामला?

अधिकारियों ने बताया कि सोशल मीडिया पर सक्रिय कार्टूनिस्ट हेमंत मालवीय के खिलाफ शहर के वकील और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता विनय जोशी की शिकायत पर लसूड़िया पुलिस थाने में मई के दौरान प्राथमिकी दर्ज की गई थी. अधिकारियों के मुताबिक प्राथमिकी में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री डालकर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अलग-अलग समुदायों के आपसी सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के आरोप हैं.

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उन्होंने बताया कि प्राथमिकी में मालवीय के फेसबुक पेज पर डाली गई अलग-अलग आपत्तिजनक सामग्री का जिक्र है जिसमें भगवान शिव को लेकर कथित तौर पर अनुचित टिप्पणी के साथ ही संघ के कार्यकर्ताओं, प्रधानमंत्री मोदी और अन्य लोगों के कथित कार्टून, वीडियो, फोटो और कमेंट्री शामिल हैं.

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उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर के बाद मालवीय की अग्रिम जमानत याचिका तीन जुलाई को खारिज कर दी.

एकल पीठ ने भगवान शिव, संघ और प्रधानमंत्री से जुड़ी विवादास्पद सामग्री का उल्लेख करते हुए अपने आदेश में कहा कि पहली नजर में न्यायालय की सुविचारित राय है कि याचिकाकर्ता का आचरण कुछ और नहीं, बल्कि भाषण और अभिव्यक्ति की संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता का सरासर दुरुपयोग है.

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कोर्ट ने यह भी कहा

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को विवादास्पद व्यंग्यचित्र बनाते समय अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था. एकल पीठ ने टिप्पणी की,‘‘याचिकाकर्ता ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दहलीज साफ तौर पर लांघ दी है और लगता है कि वह अपनी सीमाओं को नहीं जानता. ऐसे में न्यायालय का सुविचारित मत है कि उसे हिरासत में लेकर पूछताछ आवश्यक होगी.''

मालवीय के वकील ने अपने मुवक्किल के बचाव में उच्च न्यायालय में दलील दी कि याचिकाकर्ता को झूठे मामले में फंसाया गया है.

अधिकारियों के मुताबिक प्राथमिकी में मालवीय के कार्टूनों को ‘अभद्र', ‘आपत्तिजनक' और ‘अमर्यादित' बताते हुए आरोप लगाया गया है कि इन्हें हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि धूमिल करने के इरादे से सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया.

अधिकारियों ने बताया कि कार्टूनिस्ट के खिलाफ जिन प्रावधानों में मामला दर्ज किया गया, उनमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (अलग-अलग समुदायों के आपसी सद्भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला कृत्य), धारा 299 (धार्मिक भावनाओं को जान-बूझकर ठेस पहुंचाना) और धारा 352 (शांति भंग करने के इरादे से जान-बूझकर अपमान) के साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67-ए (यौन क्रिया से जुड़ी सामग्री का इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में प्रकाशन या प्रसारण) शामिल हैं.
 

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