हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी: "छह माह में आदेश का पालन नहीं कर सकते तो इस्तीफा दें"

Madhya Pradesh High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने प्रशासनिक अधिकारी संजय दुबे पर कड़ी नाराजगी जताई है. कोर्ट ने कहा यदि वह छह महीने में भी कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए.

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Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट (जबलपुर) ने प्रशासनिक अधिकारी संजय दुबे पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि यदि वह छह महीने में भी कोर्ट के आदेश का पालन सुनिश्चित नहीं कर सकते, तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति द्वारिकाधीश बंसल ने पुलिस अधिकारी विजय पुंज द्वारा दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए ओपन-कोर्ट में की. कोर्ट ने संजय दुबे, जो गृह विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) और वर्तमान में सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) के एसीएस हैं, को 14 अक्टूबर तक आदेश का पालन करने का अल्टीमेटम दिया. कोर्ट ने कहा कि यदि समय सीमा में पालन नहीं हुआ, तो उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाएगी.

 जानें क्या है मामला

विजय पुंज, जो मध्य प्रदेश पुलिस के एक अधिकारी हैं, ने अपनी पदोन्नति के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. कोर्ट ने मार्च में उनके पक्ष में आदेश पारित किया था, जिसमें राज्य सरकार को पुंज की पदोन्नति का लाभ देने का निर्देश दिया गया था. हालांकि, छह महीने बाद भी सरकार ने इस आदेश का पालन नहीं किया. इस पर पुंज ने कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की.

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राज्य सरकार का रुख

राज्य सरकार की ओर से शासकीय वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि मामले में कैबिनेट से समन्वय की प्रक्रिया के कारण देरी हो रही है. इस तर्क पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि यदि कोई अधिकारी छह महीने के बाद भी कैबिनेट से समन्वय स्थापित नहीं कर पा रहा है, तो उसे पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए.

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कोर्ट की चेतावनी

कोर्ट ने संजय दुबे को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि यदि 14 अक्टूबर तक आदेश का पालन नहीं किया गया, तो उनके खिलाफ अवमानना कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि अधिकारी को आदेश अनुचित लगता है, तो वे इसके खिलाफ अपील कर सकते हैं। मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को निर्धारित की गई.

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याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति

अधिवक्ता मनोज चंसोरिया ने कोर्ट को सूचित किया कि याचिकाकर्ता विजय पुंज इसी वर्ष 31 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. इस पर कोर्ट ने शासकीय वकील से पूछा कि क्यों अब तक पदोन्नति का लिफाफा नहीं खोला गया, जबकि याचिकाकर्ता सेवानिवृत्ति के करीब हैं.

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