MP Sports Policy: मध्यप्रदेश अपनी खेल नीति में ऐतिहासिक और क्रांतिकारी बदलाव करने जा रहा है. अब ओलिंपिक, एशियन गेम्स और कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को राज्य सरकार सीधे गज़टेड अधिकारी (Gazetted Officer) के पद पर नियुक्त करेगी. NDTV से Exclusive बातचीत में खेल और युवा कल्याण मंत्री विश्वास सारंग ने इस बड़े नीतिगत परिवर्तन की पुष्टि की. यह घोषणा उन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के लिए सम्मान की पुनर्स्थापना है, जिन्होंने वर्षों तक अपने पसीने और संघर्ष से प्रदेश का नाम रोशन किया है.
'गज़टेड अधिकारी' का पद, सम्मान का नया अध्याय
मंत्री विश्वास सारंग ने साफ किया है कि वर्तमान में केवल विक्रम अवॉर्डियों को तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां देने का प्रावधान था, जिसे अक्सर खिलाड़ियों के लिए अपर्याप्त माना जाता था. उन्होंने जोर देकर कहा, "यह कहना गलत है कि हम खिलाड़ियों को चपरासी बना रहे हैं," अब सरकार इस धारणा को भी हमेशा के लिए बदलने जा रही है.
उन्होंने यह भी बताया कि हॉकी खिलाड़ी विवेक सागर प्रसाद को डीएसपी बनाने की प्रक्रिया और मुख्यमंत्री स्तर पर हुई अन्य घोषणाओं को विशेष मामलों में द्वितीय श्रेणी के गज़टेड पद देने की प्रक्रिया चल रही है, जिन्हें जल्द ही कैबिनेट में लाया जाएगा.
पुरानी नीति की मार: ऐश्वर्या तोमर की नाराज़गी बनी सबक
बता दें कि यह नीति परिवर्तन तब आया है जब राज्य की पुरानी खेल नीति की खामियां खुलकर सामने आ चुकी हैं. हाल ही में, मध्यप्रदेश के टॉप शूटर ऐश्वर्या प्रताप सिंह तोमर ने सरकारी वादों पर नाखुशी जताते हुए कहा था कि वह अब मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे. यह सिर्फ एक खिलाड़ी की व्यक्तिगत नाराज़गी नहीं थी, बल्कि यह उस पीड़ा की आवाज़ थी, जिसमें कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी वर्षों से दबे हुए थे. मौजूदा 2005 की नीति केवल विक्रम अवॉर्डियों को नौकरी देती थी, जिससे कई विश्वस्तरीय खिलाड़ी खुद को असुरक्षित महसूस करते थे क्योंकि उनके मुताबिक न सम्मान था न करियर का भरोसा ही.
पलायन का दर्द: पड़ोसी राज्यों से पिछड़ गया था MP
यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 1989 से लेकर 2005 तक कई बार खेल नीति बदली, लेकिन उसके बाद यह अपरिवर्तित रही. इसी दौरान हरियाणा,पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्य अपने खिलाड़ियों को नौकरी की गारंटी देकर आगे निकल गए. मध्यप्रदेश की नीति केवल नकद पुरस्कार (गोल्ड: ₹6 लाख) तक सिमट गई थी. इस नीतिगत कमजोरी का सबसे बड़ा सबूत हाल ही में उत्तराखंड नेशनल गेम्स में सामने आया, जहां मध्यप्रदेश ने 331 खिलाड़ी उतारे, लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि 120 खिलाड़ी MP के थे पर अन्य राज्यों के लिए खेले, जिनमें से 68 ने पदक जीते. जो मेडल मध्यप्रदेश की झोली में आने चाहिए थे, वे नीति की खामियों के कारण दूसरे राज्यों के खाते में चले गए. अब सरकार का यह ऐतिहासिक फैसला इस पलायन को रोकने और खिलाड़ियों को सुरक्षित भविष्य देने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है.
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