MP Anganwadi Supervisor Result 2025: मध्यप्रदेश में सात साल बाद महिला पर्यवेक्षक भर्ती का नोटिफिकेशन निकला. लाखों युवाओं ने उम्मीद की मशाल जलाई, लेकिन नतीजे आए तो लगा जैसे सरकार ने उसी मशाल से उनकी उम्मीदों को जला दिया हो. कम पद, विवादित रिजल्ट और वर्षों की मेहनत पर पानी. आइए जानते हैं उन चेहरों की कहानी, जिनकी रातें किताबों के पन्नों में और सुबहें रिजल्ट की मायूसी में कटीं. कहते हैं, लोकतंत्र में जनता की आवाज़ सबसे ऊपर होती है. लेकिन मध्यप्रदेश में ये आवाज़ इतनी ऊपर पहुँच गई है कि शायद सरकार के कानों तक पहुँच ही नहीं पा रही. यहाँ विरोध करना मतलब सरकारी दीवारों से टकरान और फिर खुद की ही चोट गिनते रह जाना. ऐसा लगता है मध्यप्रदेश की कोई भी परीक्षा अब बिना विवाद के पास हो ही नहीं सकती.
उम्मीदवारों ने उठाए ये सवाल
रतलाम की रहने वाली निकिता बौरासी. पिछले 12 साल से सरकारी परीक्षाओं की गंगा में गोते लगा रही हैं. उम्र अब 40 के पार जा चुकी है, पर दिल में उम्मीद का सूरज अभी भी चमकता रहता है. शादी के बाद भी किताबें छोड़ने का मन नहीं किया. सोच लिया था कि इस बार तो नौकरी पक्की. लेकिन रिजल्ट ऐसा आया कि लगा — ‘नौकरी की जगह कोई और ही सपना देख लिया. वे कहती हैं बहुत संघर्ष और मेहनत करके परीक्षा दी. 181 नंबर भी आए लेकिन उसके बाद भी सिलेक्शन नहीं हुआ.
दूसरी ओर वंदना मालवीय उज्जैन से हैं, इंदौर में रहकर पढ़ाई की. बच्चे से दूर रहीं. सोचिए, मां का दिल कितना पत्थर बना होगा जब उसने कहा — "बेटा, मम्मी पढ़ने जा रही है, तू थोड़ा इंतज़ार कर." पर नतीजे आए तो मालूम पड़ा कि यहां तो इंतज़ार की कोई एक्सपायरी डेट ही नहीं है.
- 7 साल बाद नोटिफिकेशन… फिर भी अधूरी उम्मीदें!
- लाखों ने फॉर्म भरा, पर नतीजों में खेल!
- 12 साल की मेहनत… एक रिजल्ट ने तोड़ी कमर!
- 99.64 पर्सेंटाइल… फिर भी बाहर!
- कम पद, लंबा इंतजार… और भरोसा सबसे कम!
- “धीरे-धीरे पद भरेंगे”… पर उम्र कब तक रुकेगी?
- उम्मीदवार ओवरएज… सरकार ओवरकॉन्फिडेंट!
- किताबों में रातें… रिजल्ट में मायूसी!
- भर्ती में भरोसा नहीं… बस ‘आशीर्वाद'!
- सरकारी भर्तियां: अनुभव पक्का, नौकरी अनिश्चित!
ये सरकारी परीक्षाएं अब वैसी ही हो गई हैं जैसे रेलवे का प्लेटफॉर्म टिकट. जब तक ट्रेन आएगी, तब तक उम्र प्लेटफॉर्म पर ही बीत जाएगी. युवाओं के लिये काम करने वाले संगठनों का आरोप है - सरकार की भर्तियों में अब नया फार्मूला है: ‘कम पद, ज्यादा इंतज़ार, और सबसे कम भरोसा.' कुल 1200 पर थे, सरकार ने वैसे भी आधे जारी किये ... सवाल पूछा तो सरकार कहती है — “धीरे-धीरे पद भरेंगे.” पर तब तक अभ्यर्थियों की उम्र भी धीरे-धीरे ओवरएज हो जाती है और उम्मीद दम तोड़ देती है.
कहते हैं, उम्मीद पर दुनिया कायम है. लेकिन इन अभ्यर्थियों की उम्मीद अब सरकारी नोटिफिकेशन जितनी अनिश्चित और अस्थायी हो गई है. शायद अगली भर्ती में पदों की जगह 'आशीर्वाद' दे दिए जाएं — "बेटा, खूब पढ़ो, खूब तैयारी करो… नौकरी मिले न मिले, अनुभव ज़रूर मिलेगा.
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