Madhya Pradesh Police News:ऐसा सुना और सुनाया जाता है कि कानून सभी के लिए समान है लेकिन मध्य प्रदेश में, ऐसा लगता है कि आम जनता और पुलिस के लिए अलग-अलग नियम हैं. जहां,नागरिकों को मामूली उल्लंघनों पर भारी जुर्माना देना पड़ता है, वहीं पुलिस वाहन बिना बीमा, पंजीकरण, या फिटनेस प्रमाणपत्र के चलते रहते हैं ...चौंकिए नहीं ये सच है. हद तो ये है कि इसको लेकर नियम भी पूरी तरह से साफ नहीं है. परेशानी की बात ये भी है कि खुद पुलिस की गाड़ियां खस्ताहाल हैं और कई तो बिना नंबर के ही सड़कों पर फर्राटा भर रही है. NDTV ने इसी पर ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है.
MP Police: भोपाल में मध्य प्रदेश पुलिस की गाड़ियां बिना बीमा, बिना नंबर प्लेट के धड़ल्ले से दौड़ रही हैं.
अगर आप बिना बीमा या हेलमेट के दोपहिया वाहन चला रहे हैं या फिर बिना वैध दस्तावेजों के चार पहिया वाहन चला रहे हैं तो आप पर जुर्माना लगना तय है. ये राशि 500 से लेकर 5000 रुपए तक हो सकती है. पुलिस वाले आपसे बीमा, प्रदूषण सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस, हेलमेट, नंबर प्लेट सब पर जुर्माना वसूलते हैं. लेकिन अगर हम आपको बताएं कि वही पुलिस जो चौक-चाराहों पर मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों को लागू करवाने के लिए कमर कसके तैयार रहती है
वो खुद बिना फिटनेस, बिना बीमा और कई बार तो बगैर नंबर प्लेट के गाड़ियां चला रही हैं. अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए दौरान हमने कई पुलिसकर्मियों और अधिकारियों से भी बात की..हम उनकी कहानी आपको उन्हीं की जुबानी बताएंगे लेकिन आगे बढ़ने से पहले जान लीजिए आखिर मोटर व्हीकल एक्ट कहता क्या है? यहां हम आपको बता दें कि सरकारी फाइलों में मोटर व्हीकल एक्ट में सरकारी गाड़ियों के बीमा को लेकर मतभेद हैं.
सबसे पहले हमारी मुलाकात हुई किशोर कुमार से. वे 38 साल से पुलिस में हैं और गाड़ी चला रहे हैं. वे बताते हैं कि उनके अधिकारी उनसे बोलते हैं कि पुलिस की गाड़ियों का बीमा नहीं होता. बकौल किशोर गाड़ी ज्यादा चलती है लिहाजा फिटनेस खराब होती है और समय पर मेंटनेंस नहीं होता. हालांकि वे ये भी कहते हैं कि इन गाड़ियों का भी बीमा होना चाहिए. अब हम आगे बढ़े तो दिखाई दी पुलिस की वज्र वाहन. इसका कामम दंगे-फसाद के संभालने के दौरान ड्यूटी देना है. लेकिन इसकी हालत भी हमें बेहद खराब दिखी. इसकी सीटें बेतरतीब मिलीं. डैश बोर्ड भी कंडम मिली...बस गाड़ी किसी तरह से चल रही है. यहीं हमें ASI राम प्रसाद मिले. उन्होंने बताया कि इन गाड़ियों का बीमा नहीं होता. कोई दुर्घटना होती है और मुआवजा की बात आती है तो वह फिर पुलिस मुख्यालय भेजा जाता है जहां से मुआवजा मिलता है. फिटनेस के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस पर काम चल रहा है.
MP पुलिस का वज्र वाहन: जिन पर जनता की सुरक्षा का जिम्मा वो खुद ही जर्जर हालत में!
टाटा सूमो तो 2019 में बंद हुई पर पुलिस इसे अब भी दौड़ा रही
इसके बाद हम पहुंचे पुलिस कंट्रोल रुम. यहां हमें दिखी टाटा सूमो. बता दें कि टाटा मोटर्स ने इसे साल 2019 में ही बनाना बंद कर दिया था. ये कार करीब 25 सालों तक भारत की सड़कों पर दौड़ी. अब कंपनी इसी को नए सिरे से लॉन्च करने की सोच रही है लेकिन भोपाल में पुरानी टाटा सूमो वो भी पुलिस सेवा में धड़ल्ले से दौड़ रही है. यहां जब हमने पुलिसकर्मी रमाकांत से सवाल किया तो उन्होंने बस इतना कहा- वरिष्ठ अधिकारी बताएंगे और गाड़ी आगे दौड़ा दी.
टाटा सूमो: दुकान में नहीं दिखेगी पर भोपाल में पुलिस में इसे जमकर दौड़ा रही है.
पुलिस की क्रेन के पास तो खुद का ही पेपर नहीं
आगे बढ़ने पर हमें दिनभर यातायात नियमों के तहत कार्रवाई करने वाली इस पुलिस की क्रेन मिली.इसकी खिड़की मुश्किल से खुलती है, दरवाजा बंद नहीं होता .इसमें न बीमा है और न ही जरुरी कागजात. जब इसे चला रहे कॉन्स्टेबल शिवकुमार से हमने सवाल किया तो उन्होंने साफगोई से कहा- गाड़ी के पेपर और फिटनेस की जानकारी मुझे नहीं है.बीमा नहीं हे. बिना फिटनेस के काम चलाना पड़ता है. गाड़ी का कोई पेपर ही नहीं है.
इतनी सारी अनियमितताएं मिलने पर हमने सीधे पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्र से बात की. उन्होंने बताया कि अलग-अलग स्तर पर पुलिस के वाहनों का बीमा नहीं कराया जाता है.किसी खास केस में जो भी व्यक्तिगत मामले होते हैं उसमें न्यायालय के आदेश पर मुआवजा दिया जाता है. जो भी बीमा की राशि होती है वो दी जाती है. हम गाड़ी की फिटनेस पर कोई समझौता नहीं करते.
खर्च बचाने के लिए नहीं होता सरकारी वाहनों का बीमा
सरकार पुलिस वाहनों का बीमा न कराने के पीछे खर्च बचाने का तर्क देती है, इसलिये वो केवल दुर्घटना होने पर ही मुआवजा देती है लेकिन सवाल है क्या ये नीति पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा करती है? इस सवाल के साथ हम पहुंचे सरकारी वकील राजेन्द्र उपाध्याय के पास उनका कहना है कि मोटरयान अधिनियम में शासकीय वाहनों को छूट है. यदि ड्राइवर की गलती होती है तो फिर क्लेम ड्राइवर को देना होगा. वाहनों का बीमा कराने वाले मामले में शासन का व्यय ज्यादा होता था इसलिए करते नहीं.
हालांकि रिटायर्ड डीजीपी एस सी त्रिपाठी का मत इस मामले में थोड़ा अलग है.
पुलिस की गाड़ियों की रिपेयरिंग के अपने गेराज हैं. एक्सीडेंट होने पर उनकी गाड़ी अपने गेराज में ठीक हो जाती है उनकी सोच वहीं तक है पर गाड़ी का बीमा होना चाहिए.कोर्ट ने कुछ मामलों में अच्छा कंपनसेशन दिया है. थर्ड पार्टी का बीमा सबको कंपलसरी है तो फिर शासन को क्यों नहीं.
बीमा न होना सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं है
दरअसल बीमा न होने की समस्या केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं है,इसका वास्तविक प्रभाव भी है. पिछले एक साल में ही, राज्यभर में सरकारी वाहनों से दर्जनों सड़क दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. पीड़ितों को मुआवजा पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है, और फिर भी, सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से बचती रहती है. कहते हैं पुलिस से दूर रहना हमेशा बेहतर होता है, लेकिन आजकल पुलिस की गाड़ियों से भी काफी बचकर रहने की जरूरत है.खुदा न खास्ता आप अगर पुलिस की गाड़ी की चपेट में आ गए तो न क्लेम मिलेगा, न कोई मुआवजा.
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