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MP गजब है: क्या कागजी नर्स से इलाज कराएंगे आप ? तीन कमरों में 100 बिस्तर वाला नर्सिंग कॉलेज देखा है आपने

अजब मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेज की गजब ही कहानी है..ये कहानी ऐसी है जिसको जानने के बाद आपके माथे पर बल पड़ना लाजिमी है. राज्य में मध्यप्रदेश के डेढ़ लाख से ज्यादा नर्सिंग स्टूडेंट्स के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है. हालत ये है कि जिन स्टूडेंट्स को अब तक डिग्री मिल जानी चाहिए थी,वे पहले साल की परीक्षा का ही इंतजार कर रहे हैं. आलम ये है कि कई कॉलेज सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं

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Nursing Colleges in Madhya Pradesh :अजब मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेज की गजब ही कहानी है..ये कहानी ऐसी है जिसको जानने के बाद आपके माथे पर बल पड़ना लाजिमी है. राज्य में मध्यप्रदेश के डेढ़ लाख से ज्यादा नर्सिंग स्टूडेंट्स (Nursing Students) के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है. हालत ये है कि जिन स्टूडेंट्स को अब तक डिग्री मिल जानी चाहिए थी,वे पहले साल  की परीक्षा का ही इंतजार कर रहे हैं. आलम ये है कि कई कॉलेज सिर्फ कागजों पर चल रहे हैं...कुछ हैं भी तो वो सिस्टम को मुंह चिढ़ा रहे हैं, मसलन- तीन कमरों में 100 बिस्तर वाला नर्सिंग कॉलेज आपने कभी देखा है? नहीं न...तो चलिए हम आपको बताते हैं इस फर्जीवाड़े की पूरी कहानी. 

ऐसा फर्जीवाड़ा नहीं देखा होगा

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में एयरपोर्ट की तरफ जाते हुए एक रास्ता दाता कॉलोनी की तरफ मुड़ता है,थोड़ी दूर पक्की सड़क फिर थोड़ी धूल के साथ आप आगे बढ़ेंगे तो आपको तीन मंजिला एक अपार्टमेंट मिलेगा. यहां पहले माले पर कुछ लोग रहते हैं दूसरे पर लिखा है सविता इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ साइंस.ये कॉलेज कथित तौर पर पूर्व निदेशक चिकित्सा शिक्षा एन.एम श्रीवास्तव (N.M Srivastava) और उनके परिजनों के नाम पर है. जिसमें तीन कमरे हैं. यहां न बिल्डिंग,ना लैब,ना अस्पताल ना ट्रेनिंग जैसा ही हमें कुछ भी मिला. हद ये है कि सविता इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ साइंस (Savita Institute of Health Science) से 4 बैच पढ़कर निकल चुके हैं. थोड़ी दूर  करौंद इलाके में जाने पर पता लगा कि केयर नर्सिंग कॉलेज (Care Nursing College) है,हम ढूंढने निकले बहुत खोजा लेकिन कॉलेज नहीं मिला...शायद गायब हो गया था. आगे बढ़ने से पहले जान लेते हैं आखिर नियम क्या कहते हैं?  

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आपदा में अवसर ढूंढा और हो गया फर्जीवाड़ा

दरअसल नर्सिंग कॉलेजों का ये फर्जीवाड़ा कोरोना के समय आपदा में अवसर ढूंढने जैसा है. यही वजह थी कि 2019-20 में 450 नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता मिली तो 2020-21 में 670 नर्सिंग कॉलेज खुल गये. फर्जीवाड़े का खुलासा तब हुआ जब  कोरोना काल में इन कागजी कॉलेजों से बेड-अस्पताल मांगे गये. इसके बाद तुरंत ही 34 कॉलेजों ने खुद कहा कि उनकी मान्यता निरस्त की जाए. इसके बाद सबसे पहले ग्वालियर में 70 ऐसे ही कॉलेज बंद हुए. उसके बाद कॉलेजों की संख्या भी गिरती गई 2021-22 में 591, तो 2022-23 में प्रदेश में 491 नर्सिंग कॉलेजों ने मान्यता मांगी.

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भोपाल: एक ही इमारत में चल रहा है नर्सिंग कॉलेज. ऐसे में छात्रों का भविष्य क्या होगा?

आज राज्य में 695 नर्सिंग कॉलेज हैं जिसमें सिर्फ 25 सरकारी जबकि 670 निजी हैं. इस फर्जीवाड़े को कोर्ट की दहलीज तक लॉ स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष विशाल बघेल लेकर गये थे.सवाल ये है कि कॉलेज बनने के बाद स्थानीय शासन से लेकर,नर्सिंग काउंसिल तक निरीक्षण कराता है,सब कुछ सत्यापित होता है फिर मेडिकल यूनिवर्सिटी में आवेदन करते हैं.तब जाकर वहां से मान्यता मिलती है.ऐसे में सवाल ये है कि इतना बड़ा फर्जीवाड़ा कैसे हुआ? अब कुछ भुक्तभोगियों का भी उदाहरण ले लेते हैं. 

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छात्र नर्सिंग के, काम- पेट्रोल पंप पर !

मसलन- जैकी मलिक. वे उत्तर प्रदेश के रहने वाले है, इनके पिता एक किसान हैं , परिवार में माँ और आठ भाई बहन है…जैकी मध्यप्रदेश नर्सिंग की पढ़ाई करने आए थे. लोन लेकर फीस भी भर दिया. अब वे कहते हैं मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो चुका हूं कुछ कहने के लायक मैं बचा नहीं हूँ.किसी से आँख से आँख मिलाकर बात नहीं कर सकता. बैंक वाले फ़ोन करते हैं.किसके पास जाएं कोई कुछ करता क्यों नहीं है.

जैकी जैसे लाखों छात्र परेशान हैं, इनकी परेशानी परेशान करने वाली है,पिछले तीन साल से ये एक ही क्लास में पढ़ रहे है,क्योंकि इन छात्रों की परीक्षा पिछले तीन सालों में एक भी बार नहीं हुई.

प्रदर्शन करने निकलते है तो अगले दिन कॉलेज के बाहर खड़ा कर दिया जाता और सवाल जवाब किए जाते हैं.कई तो अपनी आवाज़ उठाने के लिए जेल तक जा चुके हैं.कई रात में पेट्रोल पंप और कॉल सेंटर पर जॉब करने लगे हैं,हमसे पूछते हैं ऐसी पढ़ाई का क्या करें जिसमें तीन साल से कोई परीक्षा नहीं हुई.

गजब का फर्जीवाड़ा: एक इमारत के अहाते में नर्सिंग कॉलेज.

एक शिक्षक -18 कॉलेज ये भी अजूबा!

बता दें कि गड़बड़ी सिर्फ बिल्डिंग में नहीं है - जेम्स थॉमस भोपाल,ग्वालियर और जबलपुर के 10 कॉलेज में पढ़ा रहे हैं. वे कहीं प्रिंसिपल हैं तो कहीं एसोसिएट प्रोफेसर. ऐसा ही लीना के साथ भी है. वे कहीं सिर्फ लीना हैं तो कहीं कुमारी लीना. वे 18 जगहों पर पढ़ा रही हैं,वो भी कहीं प्रिंसिपल,कहीं वाइस प्रिंसिपल तो कहीं प्रोफेसर हैं.

इसी तरह से विष्णु कुमार स्वर्णकार -मंडला,भोपाल और रायसेन जैसे जिलों के 15 कॉलजों में पढ़ा रहे हैं.ऐसे 1-2 नहीं बल्कि 600 से ज्यादा शिक्षकों के नाम फर्जीवाड़े में सामने आए हैं जिनके माइग्रेशन या रजिस्ट्रेशन नंबर को कई तरीकों से बदलकर एक से ज्यादा बार इस्तेमाल किया गया है.

इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शशांक शेखर ने डीएमई की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट को बताया कि कुल 364 में से 284 नर्सिंग कॉलेज ऐसे हैं, जिनमें माइग्रेटेड फैकल्टी पाई गईं थीं. इसके अलावा 227 कॉलेजों में डुप्लिकेट फैकल्टी कार्यरत हैं.ये हालात तब हैं जब इन छात्रों से ये कॉलेज 1.80 लाख से लेकर 2.40 लाख तक की फीस वसूलते हैं.

देखा जाए तो पूरी दाल ही काली है.इस मामले की जांच के बाद कई सवाल उठे हैं. मसलन- 


सरकार के पास एक ही जवाब -मामला कोर्ट में

इनके सवालों को लेकर सरकार में हमने चिकित्सा शिक्षा मंत्री से लेकर स्वास्थ्य मंत्री तक से जवाब मांगा लेकिन सबके पास एक ही जवाब है-मामला कोर्ट में है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ प्रभुराम चौधरी ने कहा -लगातार हमारा प्रयास चल रहा है,हमने 52 प्रतिशत मानव संसाधन बढ़ाए हैं, चाहे डॉक्टर हों या नर्स या पैरामेडिकल. एनडीटीवी ने याद दिलाया सवाल नर्सिंग कॉलेज के फर्जीवाड़े को लेकर है तो उन्होंने कहा मामला कोर्ट में है कोर्ट जो कहेगा, हम उसे मानेंगे.. वहीं चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा माननीय न्यायालय में ये अभी प्रकरण है इसलिए इस विषय पर अभी टिप्पणी करना कुछ भी उचित नहीं रहेगा. ये पूरा मामला न्यायालय की परिधि में है इस विषय में बोला कुछ उचित नहीं है. ऐसे में जरा सोचिये 1.80 लाख से 2.40 लाख की फीस भरकर नर्स बने इन बच्चों से आप अपनी तीमारदारी करवाएंगे जिन्होंने पूरी पढ़ाई में कभी एक ड्रिप तक ना चढ़ाई हो तो ये मजाक नहीं  बल्कि आपराधिक लापरवाही है

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