MP High Court ने नर्सिंग स्टूडेंट्स के पक्ष में लिया ये बड़ा फैसला, डिफिशिएंट कॉलेज के 45 हजार छात्रों को दी राहत

Nursing Scam Case: नर्सिंग फर्जीवाड़े मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने डिफिशिएंट कॉलेज के करीब 45 हजार छात्रों के पक्ष में फैसला लिया है. जिसके बाद ये छात्र राहत की सांस ले रहे हैं.

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Madhya Pradesh Nursing College Scam

MP High Court Verdict on Nursing Scam: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने सोमवार को फर्जी नर्सिंग कॉलेज (Nursing College Scam) से जुड़े हुए मामले की सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला लिया. हाईकोर्ट (Jabalpur High Court) ने अपने पिछले आदेश को संशोधित करते हुए अपात्र और डिफिशिएंट कॉलेज (Deficient Nursing College) के छात्रों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने डिफिशिएंट कॉलेज के छात्रों को परीक्षा देने की अनुमति दी है. इस फैसले के बाद अब प्रदेश के करीब 45 हजार नर्सिंग के छात्र-छात्राएं परीक्षा (Nursing Exam) में बैठ सकेंगे. 

बता दें कि नर्सिंग फर्जीवाड़े कॉलेज के चलते मध्य प्रदेश में पिछले 3 साल से नर्सिंग की परीक्षाएं नहीं हो पा रही थीं. जिसके चलते प्रदेश के हजारों छात्रों का भविष्य अधर में अटका हुआ था. इस फर्जीवाड़े से प्रभावित छात्र कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं. वहीं हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद एनएसयूआई ने इसे छात्रों की और खुद की जीत बताया. NSUI नेता रवि परमार ने कहा कि NSUI ने नर्सिंग छात्रों की तकलीफ को उठाया था. हाईकोर्ट ने जो फैसला दिया वो बच्चों के हित में है. जिन कॉलेजों के फर्जीवाड़े के कारण छात्र परेशान हुए, उन दोषियों को सजा मिलना चाहिए.

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वर्ष 2020-21 से नहीं हुई परीक्षाएं

आपको बता दें कि इस फर्जीवाड़े की वजह से 2020-21 से नर्सिंग की परीक्षाएं नहीं हो पा रही थीं. जिसके चलते हजारों छात्रों का भविष्य अंधकार में है. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही है. पिछले दिनों आई सीबीआई की रिपोर्ट के बाद यह खुलासा हुआ था कि 2020 में नर्सिंग काउंसिल द्वारा खोले गए 670 कॉलेज में से कई कॉलेज की स्थिति बेहद खराब है और ये कॉलेज गलत तरीके से खोले गए.

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सीबीआई जांच के बाद कोर्ट ने दिया था फैसला

बता दें कि यह फैसला हाईकोर्ट की युगल पीठ ने लिया है. जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले में संशोधन किया है. बता दें कि कोर्ट के आदेश पर हुई सीबीआई जांच के बाद 74 एवं 66 नर्सिंग कॉलेजों को एफिशिएंट और अनसूटेबल पाया गया था. अब इन कॉलेज के छात्रों को भी परीक्षा में बैठने के निर्देश हाईकोर्ट ने दिए हैं. हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद प्रदेश में तीन वर्ष से इंतजार कर रहे नर्सिंग छात्रों की परीक्षाओं के रास्ते खुल गए हैं. 

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याचिका में की गई थी यह मांग

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने अपने पूर्व आदेश में सीबीआई जांच में अनसूटेबल पाये गये कॉलेजों के छात्रों को भी अपात्र घोषित किया था. हाईकोर्ट ने अपने उस आदेश में संशोधन करते हुए नवीन निर्देश जारी किए हैं. बता दें कि कुछ छात्र-छात्राओं एवं कॉलेजों की ओर से आवेदन पेश कर कोर्ट से मांग की गई थी कि छात्रों के भविष्य को देखते हुए और कोरोना काल में नर्सिंग छात्रों द्वारा दी गई सेवाओं को ध्यान में रखते हुए सभी छात्रों को परीक्षा में सम्मिलित किया जाए.

लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने एक आवेदन पेश कर हाईकोर्ट को बताया कि मध्यप्रदेश सरकार ने नर्सिंग शिक्षण संस्था मान्यता नियमों में बड़ा फेरबदल करते हुए नए नियम बना दिए हैं जो कि आईएनसी के मापदंडों को भी पूर्ति नहीं करते हैं, ये नियम अपात्र कॉलेजों को लाभ पहुंचाने हेतु बनाये गये हैं. इस तर्क के आधार पर हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को याचिका संशोधित करने की अनुमति दे दी है.

कोर्ट ने नए आदेश में ये कहा

बता दें कि हाईकोर्ट के पूर्व आदेश पर मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी ने सीबीआई जांच में सूटेबल पाए गए 167 नर्सिंग कॉलेजों की परीक्षाओं के लिए टाइमटेबल जारी कर दिया था. उसी समय से बच्चों के भविष्य को लेकर चिंताएं जताई जा रही थी. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है परीक्षा में बैठने की सशर्त अनुमति दी जा रही है, जिन छात्रों ने कॉलेजों में पढ़ाई किया है या उन्होंने प्रशिक्षण लिया है, अगर वो परीक्षा में पास होते हैं तो ही उन्हें आगे के लाभ मिलेंगे, अन्य स्थिति में छात्र अपात्र हो जाएंगे. 

अब गेंद सरकार के पाले में

हाईकोर्ट ने प्राइवेट कॉलेजों की ओर से प्रस्तुत आवेदन जिसमें सत्र 2023-24 की प्रवेश एवं मान्यता प्रक्रिया करने के निर्देश मांगे गए थे, उक्त आवेदन पर निर्णय करते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि चूंकि मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी जबलपुर द्वारा सत्र 2023-24 को शून्य घोषित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जो कि अभी लंबित है. चूंकि हाईकोर्ट ने इस प्रकार सत्र 2023-24 की प्रवेश प्रक्रिया एवं मान्यता प्रक्रिया के संबंध में निर्णय हेतु गेंद सरकार के पाले में भेज दी है.

कमेटी को दिए ये आदेश

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि डिफिशिएंट कॉलेजों के छात्र भी अभी परीक्षा में सम्मिलित होंगे. इस दौरान कमेटी उन कॉलेजों की कमियों की पूर्ति के संबंध में विचार कर यह निर्णय लेगी कि उक्त कॉलेज आगामी मान्यता और संबद्धता हेतु पात्रता रखते हैं अथवा नहीं? वहीं सीबीआई ने हाईकोर्ट में आवेदन पेश कर मध्य प्रदेश शासन से जांच हेतु स्टाफ अटैचमेंट के स्थान पर प्रतिनियुक्ति पर देने की प्रार्थना की थी, हाईकोर्ट ने राज्य शासन के कर्मियों को प्रतिनियुक्ति पर सीबीआई को सौंपने में आने वाली तकनीकी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए आवेदन खारिज कर दिया.

सरकार ने बदले नियम

वहीं सरकार ने इस फर्जीवाड़े में फंसे नर्सिंग कॉलेज को बचाने के लिए नियम में बदलाव किए हैं. नए नियम के अनुसार नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए अब 24 हजार स्क्वायर फीट जमीन की जगह सिर्फ 8 हजार स्क्वायर फीट की जमीन में कॉलेज खोले जा सकते हैं. जानकारों के मुताबिक, सरकार के इस कदम से लगभग सभी कॉलेज जांच के दायरे से बाहर हो जाएंगे. नियम अनुसार नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए 24 हज़ार स्क्वायर फीट जमीन की जरूरत होती है जबकि प्रदेश में कई कॉलेज ऐसे है जो एक दो कमरे में संचालित हो रहे थे, वहीं कई कॉलेज कागजों पर ही संचालित हो रहे थे.

इन्होंने की पैरवी

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने पैरवी की. वहीं राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह और अतिरिक्त महाधिवक्ता भारत सिंह, नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी की ओर से अभिजीत अवस्थी, प्राइवेट कॉलेजों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नमन नागरथ, हेमंत श्रीवास्तव एवं रीवा एवं जबलपुर के शासकीय नर्सिंग कॉलेजों की ओर से कपिल दुग्गल ने पैरवी की.

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