Unemployment in MP: सुनो...सुनो...सुनो...मध्य प्रदेश में अब बेरोजगार युवा "आकांक्षी युवा" कहलाएंगे...सुनो...सुनो.
ये मुनादी इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश सरकार की नामकरण नीति ने अब एक नया मोड़ ले लिया है. मोहन यादव सरकार ने पहले सड़कों के नाम बदले, फिर स्टेशनों के, फिर जिलों के—और अब बेरोज़गारी का भी रीब्रांडिंग कर दिया है. अब राज्य में बेरोज़गार नहीं, "आकांक्षी युवा" कहे जाएंगे. चौंकिए नहीं, सरकार ने बाकायदा इसकी जानकारी जारी कर दी है. अब इसके पीछे की असल वजह क्या है ये तो नाम बदलने की कवायद करने वाले अधिकारी-मंत्री ही बता पाएंगे लेकिन हम आपको कुछ सरकारी आंकड़े बता सकते हैं. जिससे कहीं न कहीं ये लगता है कि जब नौकरी देने की हिम्मत न हो तो कम से कम रचनात्मक नामकरण करके वाहवाही तो लूटी ही जा सकती है. आप आंकड़ों पर गौर करिए.
अब इसी मसले पर सरकार का स्पष्टीकरण भी जान लीजिए. राज्य के कौशल विकास मंत्री गौतम टेटवाल का कहना है कि रोजगार कार्यालय में बेरोजगारों की पंजीयन की जो संख्या है वो बेरोजगारों की संख्या अलग है.मंत्री जी ने इसे फिर इस तरह से समझाया- "अगर बेटा अपने पिता की दुकान पर काम करता है और रोजगार कार्यालय में उसका रजिस्ट्रेशन है तो वह बेरोजगार नहीं हुआ.जो युवा अपने और अपने परिवार के 12 हज़ार 646 रुपये की आय से कम कमाता हो उसे कोई काम न मिल रहा है तो वह बेरोजगार हो सकता है. उन्होंने ये भी दावा किया कि कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में ऐसी स्थिति नहीं है.
बहरहाल मंत्री जी के द्वारा दी गई इस अहम जानकारी के बाद हमने आकांक्षी युवाओं से उनकी आकांक्षाओं की उड़ान के बारे में जानने की कोशिश की. सबसे पहले हम मिले भोपाल के प्रकाश सेन से...उन्होंने Bsc कंप्यूटर साइंस किया है. वे कहते हैं- "मैंने सोचा था कंप्यूटर और आईटी के फील्ड में जॉब मिल जाएगा लेकिन इस फील्ड में बहुत कंपटीशन भी था. इसके अलावा लॉकडाउन में कई लोगों की नौकरियां भी चलीं गई. लिहाजा मुझे भी नौकरी नहीं मिली". अब प्रकाश किसी कंपनी में कोडिंग की जगह पर टी-स्टॉल पर ऑर्डर प्रोसेस यानी चाय बेच रहे हैं.
इसी तरह हम मिले एक और आकांक्षी युवा—आर्यन श्रीवास्तव. उन्होंने Bsc एग्रीकल्चर किया हुआ है. सरकारी नौकरी का सपना उनका भी था. सोचा था कि खेती-किसानी में क्रांति लाएंगे, लेकिन प्लेसमेंट आया ही नहीं. वे बतातें हैं कि घर वाले रोज पूछते हैं- कब नौकरी मिलेंगी और उनके पास कोई जवाब नहीं होता. वे बताते हैं कि पहले प्लेसमेंट नहीं आया और बाद परीक्षाएं दीं तो पेपर लीक हो गया.
भोपाल: परीक्षा फीस के तौर पर 30 हज़ार खर्च कर चुके शैलेंद्र , छोटे से कमरे में पढ़ाई करते हैं
इसी तरह से एक और आकांक्षी युवा शैलेन्द्र मिश्रा से भी हम मिले. वे बताते हैं कि नौकरी के लिए फॉर्म भरते-भरते वे घर वालों के 36 हजार फूंक चुके हैं. फिलहाल वे भोपाल में 10 बाय 10 के कमरे में किताबें,चूल्हा,कपड़े और सपने के साथ जी रहे हैं. इसी तरह से एक युवती हैं सोनली पटेल. वे साल 2019 से पुलिस भर्ती का पीछा कर रही हैं, लेकिन रिजल्ट उनसे लुका-छुपी खेल रहा है.
सरकार के इस नाम बदलू मिशन ने कांग्रेस को भी सवाल उठाने का मौका दे दिया है. कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के मुताबिक सरकार बढ़ती बेरोजगारी से घबराकर अपने आंकड़े छुपाना चाहती है. इसलिए उसने नाम बदला है. वे तंज कसते हैं कि अब शायद मध्यप्रदेश के युवाओं को आकांक्षी युवाओं के नाम से जाना जाएगा. तो कुल मिलाकर, बेरोज़गारी वही है, लेकिन नाम स्टाइलिश हो गया है! जैसे हबीबगंज स्टेशन को रानी कमलापति बना देने से ट्रेनें जल्दी नहीं चलतीं, वैसे ही बेरोज़गार को आकांक्षी कहने से नौकरी नहीं आती! लेकिन एक सवाल है—अब अगला नामकरण किसका होगा? गरीबों को ‘अर्ध-धनवान' और भिखारियों को ‘सड़क के स्टार्टअप फाउंडर' तो नहीं कह दिया जाएगा?
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