35 चीता ट्रैकर्स ने छोड़ा काम, मांस कटवाने पर हड़ताल, कूनो में क्यों मच गया बवाल? देखिए NDTV पड़ताल

Kuno Wildlife Sanctuary: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) चीतों को बाड़े में छोड़ने के लिए यहां पहुंचे थे तब यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस क्षेत्र का विकास होगा, स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और इलाके की तस्वीर बदलेगी, लेकिन 2 साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी स्थिति जस की तस है. वहीं अब चिंता की बड़ी वजह यह है कि जिस चीता मित्रों और चीता ट्रैकर्स का जिक्र खुद पीएम मोदी ने किया था, वे अब हड़ताल पर हैं.

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Kuno National Park: कई दशक बाद एक भी बार भारत की धरती में चीते चौकड़ी भर रहे हैं. लेकिन मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में जिस तरह से चीतों का रहन-सहन है उसको लेकर कई बार सवाल भी उठ चुके हैं. नामीबिया से भारत लाए गए चीतों (Cheetah) को लेकर यहां जिस तरह से रखा गया है उसको लेकर जर्मन शोधकर्ता पहले ही कूनो नेशनल पार्क की क्षमता को लेकर चिंता व्यक्त कर चुके हैं. वहीं अब एक बार फिर प्रोजेक्ट चीता (Project Cheetah) चर्चा में है. इस बार यहां काम कर रहे चीता ट्रैकर्स (Cheetah Trackers) ने प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हुए. हड़लात शुरु कर दी है. इसी हड़ताल की पड़ताल करने के लिए NDTV की टीम जा पहुंची सीधे ग्राउंड जीरो (NDTV Ground Report) पर और आपके लिए लेकर आयी है खास स्टोरी. 

हड़ताल की पड़ताल : चीता ट्रैकर्स ने कहा हम मांस नहीं काटेंगे

यहां चीता ट्रैकर्स ने अपना काम छोड़ हड़ताल कर दी है. चीता ट्रैक्टर्स का कहना है कि उनसे मांस कटवाया जा रहा है. जीव हत्या करवाई जा रही है जो कि मंजूर नहीं, वहीं नेशनल पार्क प्रबंधन का कहना है कि हम इन लोगों को जानते तक नहीं कि यह कौन लोग हैं? इस मामले की गूंज मुख्यमंत्री कार्यालय (CM Office) तक पहुंची है, यकीनन यह बात दूर तक जाएगी.

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गांव वालों का कहना है कि इन लोगों को हटाया गया तो विवाद की स्थिति पैदा होगी और अगर विवाद ज्यादा बढ़ा तो चीता का भी विरोध होने लगेगा.

Kuno National Park: चीतों गुलजार नहीं हुआ गांव

विकास की थी उम्मीद, पर हालत जस की तस

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) चीतों को बाड़े में छोड़ने के लिए यहां पहुंचे थे तब यह उम्मीद जताई जा रही थी कि इस क्षेत्र का विकास होगा, स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और इलाके की तस्वीर बदलेगी, लेकिन 2 साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद भी स्थिति जस की तस है. वहीं अब चिंता की बड़ी वजह यह है कि जिस चीता मित्रों और चीता ट्रैकर्स का जिक्र खुद पीएम मोदी ने किया था, वे अब हड़ताल पर हैं.

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अगर आज आप इस क्षेत्र में जाकर देखेंगे तो वही पहले जैसा बदहाल रास्ता, वही कच्चे मकान, झोपड़ी में रहते लोग और उनकी वही परेशानी दिखेगी. स्थानीय लोग कहते हैं कि पर्यटन क्षेत्र में भी ज्यादा कुछ विकास नहीं हुआ जबकि देश दुनिया से पहुंची मीडिया ने इस बात की उम्मीद जताई थी कि इस क्षेत्र को अब से कुछ साल बाद पहचाना नहीं जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

Kuno National Park: पार्क के सामने हड़ताल

चीता ट्रैकर्स क्या कह रहे हैं?

पिछले 7 दिनों से चीता ट्रैकर्स कूनो नेशनल पार्क में हंगामा कर रहे हैं. 35 से ज्यादा नौजवान जंगल में नेशनल पार्क के टिटौली गेट के बाहर बैठकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं, नारेबाजी कर रहे हैं. इनका कहना है कि वह कसाई नहीं हैं. NDTV ने जब उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि हम जीव हत्या नहीं कर सकते. नेशनल पार्क प्रबंधन हमसे जीव हत्या करवाता है, जिंदा बकरों को काटने के लिए कहता है. मांस के टुकड़े काटने की कहता है. हम ये काम नहीं करेंगे. हमारा काम कांटेक्ट के मुताबिक चीता ट्रैकिंग करना था. हमें चीता ट्रैकिंग के अलावा और कोई काम दिया जाता है तो यह कांटेक्ट का उल्लंघन है.

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35 से ज्यादा यह नौजवान मुख्यमंत्री मोहन यादव के कार्यालय पहुंचकर उनसे मिलने की भी कोशिश कर चुके हैं, फिलहाल उनके काम छोड़ देने के कारण चीता ट्रैकिंग का काम प्रभावित हो रहा है और चीता को बाड़े में रखने के लिए प्रशासन और प्रबंधन मजबूर है. ऐसे में चीता संवर्धन पर सवाल उठना लाजिमी है.

फिलहाल कितने चीते हैं कूनो पार्क में?

कूनो नेशनल पार्क में जब से चीतों को लाया गया है, तब से इनकी संख्या को लेकर आंकड़े ऊपर-नीचे होते रहते हैं. कुछ चीतों ने इस इलाके को कबूल कर लिया तो वह अब तक जिंदा है और कुछ दम तोड़ चुके हैं. अब इस नेशनल पार्क में लगभग 26 चीता मौजूद हैं, जिनमें ज्यादातर शावक हैं. ऐसे में इनकी देखरेख और उनके संवर्धन की दिशा में हो रहे कार्यक्रम को बहुत संवेदनशीलता से लेने की जरूरत है.

नेशनल पार्क के आसपास हैं लगभग 80 गांव

80 गांव में आदिवासी यादव और गुर्जर जाति के लोगों की बहुल्यता है. नेशनल पार्क प्रबंधन ने इन्हीं गांवों में रहने वाले 80 गांव से कुछ युवकों की चीता ट्रैक्टर्स के रूप में नियुक्ति की थी. सारे गांव वाले इनका सहयोग करते हैं और चीता की इनफार्मेशन दी जाती है. लेकिन अब इन 35 से ज्यादा युवाओं के हड़ताल पर चले जाने और इनको हटाए जाने की बात शुरू होने के बाद गांव में रहने वाले रंजीत सीताराम और कौशल आदिवासी जैसे लोग कहते हैं कि विरोध शुरू हो जाएगा और न केवल विरोध होगा बल्कि बवाल की स्थिति हर रोज बनने लगेगी और अगर यही हालात रहे तो गांव वाले चीता का विरोध करना शुरू कर देंगे.

जर्मन शोधकर्ता उठा चुके हैं सवाल

हाल ही में चीता गामिनी ने पांच शावकों को जन्म देकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जिससे भारत में जन्मे चीतों की कुल संख्या 13 पहुंच गई है. गामिनी के शावकों से पहले नामीबिया की ज्वाला ने तीन शावकों को सफलतापूर्वक जन्म दिया था. इसके अलावा चीता आशा ने तीन शावकों का योगदान दिया था. सितंबर 2022 में नामीबिया से चीतों के प्रारंभिक स्थानांतरण के बाद से दस चीतों की मौत हो चुकी है. भीषण गर्मी में तापमान 46-47 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के कारण मई 2023 में ज्वाला के पैदा हुए तीन शावकों की मृत्यु हो गई थी. जर्मन शोधकर्ताओं ने कूनो की चीता धारण क्षमता को लेकर चिंता व्यक्त की है इसे निर्धारित करने के लिए आगे के अध्ययन की आवश्यकता होगी क्योंकि चीते अपनी घरेलू सीमाएं स्थापित करते हैं.

Kuno National Park: पार्क डायरेक्टर
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

कूनो पार्क प्रबंधन का कहना है-  हम नहीं जानते यह लोग कौन हैं? क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?

कूनो नेशनल पार्क के डायरेक्टर उत्तम कुमार शर्मा ने साफ तौर पर इन प्रदर्शनकारी युवाओं को जो खुद को चीता ट्रैकर्स बताकर प्रदर्शन कर हड़ताल करने की बात कर रहे हैं, उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. उत्तम कुमार शर्मा का यह कहना है कि हमने इन्हें कभी चीता ट्रैकर्स के रूप में नियुक्त किया ही नहीं और चीता ट्रैकर्स कि हमारी अलग टीम है. हम उस टीम के साथ बाकायदा चीता ट्रैकिंग का काम कर रहे हैं. जहां तक बात बड़े स्तर पर चीता की ट्रैकिंग की है तो पिछले 1 साल से ट्रैकिंग बंद है. इसलिए इन लोगों का कहना पूरी तरह से निराधार और किसी तरह से कूनो नेशनल पार्क को बदनाम करने की साजिश है. उनके काम छोड़ देने से या हड़ताल करने से चीता संवर्धन की दिशा में हो रहे कामों पर किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.

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