Kartik Purnima 2024: यहां है देश का सबसे प्राचीन 400 वर्ष पुराना भगवान कार्तिकेय का मंदिर, कार्तिक पूर्णिमा के दिन आते हैं पूरे देश से श्रद्धालु

Kartik Mandir in India: भगवान कार्तिकेय के भारत में बहुत सीमित मंदिर बने हुए हैं. इनमें से एक जरूरी और सबसे पुराना मंदिर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है. 400 साल पुराने इस मंदिर में साल में एक बार भक्तों की खास भीड़ देखने को मिलती है.

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400 साल पुराना भगवान कार्तिकेय का मंदिर ग्वालियर में

Kartik Mandir in Gwalior: पूरा देश 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2024) मना रहा है. प्रथम आराध्य भगवान श्री गणेश के भाई और भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय (Lord Kartikaya) की पूजा इसी दिन होती है. मान्यता है कि कार्तिकेय के दर्शन से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. हालांकि, ऐसा करना आसान नहीं है. श्रद्धालुओं को उनके दर्शन वर्ष में सिर्फ एक दिन, यानी कार्तिक पूर्णिमा पर ही हो सकते हैं. साथ ही उनकी प्रतिमाएं और मंदिर भी ज्यादा नहीं है. देश का सबसे प्राचीन और संभवतः सम्पूर्ण उत्तर भारत का इकलौता मंदिर ग्वालियर (Gwalior) में है. इस मंदिर के दरवाजे भी वर्ष में सिर्फ एक बार ही, वह भी मात्र 24 घंटे के लिए ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन खुलते है. ऐसा देश के किसी भी मंदिर में नहीं होता है. इसलिए इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आधी रात के बाद से ही भीड़ लगना शुरू हो जाती है. 

भक्तों की लगती है लंबी कतार

400 वर्ष प्राचीन है ग्वालियर का कार्तिकेय मंदिर

ग्वालियर के जीवाजी गंज क्षेत्र में मौजूद भगवान कार्तिकेय का यह मंदिर देश में सबसे प्राचीन और इकलौता माना जाता है. इस मंदिर के लगभग अस्सी वर्षीय पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा का कहना है कि यह मंदिर लगभग 400 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है. हालांकि, स्थापना कब हुई इसका कोई लेख मौजूद नहीं है. लेकिन, पुजारी बताते है कि जब ग्वालियर में सिंधिया राजाओं का शासन हुआ और उन्होंने इसे अपनी राजधानी बनाया, तो तत्कालीन सिंन्धिया शासकों ने ही इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. तब से लागातार यहां पूजा-अर्चना चल रही है.

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साल में केवल एक बार होते हैं दर्शन

भगवान कार्तिकेय मंदिर के पट हर साल सिर्फ एक बार कार्तिक पूर्णिमा को ही खुलते है. खास बात ये भी है कि सामान्यतः सभी मंदिरों के पट अलसुबह खुलते हैं और पूजा-अर्चना और दर्शन शुरू होती है. लेकिन, भगवान कार्तिकेय के ग्वालियर स्थित इस मंदिर के पट कार्तिक पूर्णिमा को मध्यरात्रि ठीक बारह बजे खुल जाते है और इसी के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं. इस बार रविवार को रात्रि बारह बजे से ही विशेष पूजा अर्चना के सात परंपरानुसार पट खोले गए और पहले से ही कतार में लगे श्रद्धालुओं ने भगवान के दर्शन करके अपनी मनोकामना उनके समक्ष रखी. 

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ग्वालियर में है 400 साल पुराना कार्तिकेय भगवान का मंदिर

देश के कोने -कोने से पहुंचते हैं श्रद्धालु

इस मंदिर पर दर्शन करने के लिए मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा  महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली के साथ देश के दूरस्थ राज्यों से भी श्रद्धालु ग्वालियर पहुंचते है और भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना और दर्शन का सुख-सौभाग्य प्राप्त करते हैं. भक्तों की मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. इस मंदिर में प्रसाद बांटने वाले राजेन्द्र शिवहरे का कहना है कि वे दो दशकों से यहां प्रसाद का वितरण करते हैं. 21 साल पहले जब उनकी मनोकामना पूरी हुई तो उन्होंने पांच किलो प्रसाद वितरित किया था. लेकिन, मेरे परिवार में खुशियां आती गईं और मात्रा बढ़ती गई. इस वर्ष वे एक कुंटल 11 किलो का प्रसाद वितरित कर रहे हैं.

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क्यों साल में एक बार होते हैं दर्शन

इसकी कथा मंदिर के पुजारी जमुना प्रसाद शर्मा पौराणिक आख्यानों के उध्दरण के माध्यम से बताते हैं. उनका कहना है कि महादेव शिव और माता पार्वती ने जब अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के विवाह करने को लेकर विचार किया, तो दोनों के सामने यह शर्त रखी कि जो ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले उनके पास लौटेगा, उसका विवाह वे सबसे पहले करेंगी. इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन गरुण पर सवार होकर ब्रह्मांड परिक्रमा करने के लिए निकल गए. गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की और थोड़ी ही देर में माता के सामने आकर बैठ गए.

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उनका विवाह भी सम्पन्न करा दिया गया. यह बात नारदमुनि के माध्यम से ब्रह्मण्ड परिक्रमा में जुटे भगवान कार्तिकेय को पता चली, तो वे क्रोधित हो गए. जब उनके गुस्से का पता चला, तो शिव पार्वती उन्हें मनाने पहुंचे. लेकिन, कार्तिकेय गुस्से के इतने वशीभूत थे कि उन्होंने शाप दे दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा वह सात जन्मों तक नरक भोगेगा. माता -पिता के बहुत मनाने पर वे अपने शाप को थोड़ा परिवर्तन करने को राजी हुए. उन्होंने वरदान दिया कि उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा पर जो भी भक्त उनके दर्शन देगा उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी. तभी से उनके वर्ष में एके बार दर्शन की प्रथा शुरू हुई.

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