Janmashtami Special: बालाघाट जिले से करीब 45 किलोमीटर दूर चंदन नदी के किनारे बसे एक गांव जराहमोहगांव में एक अनोखा मंदिर है. जराहमोहगांव को कई वर्षों पूर्व घटित घटनाओं ने इस मंदिर को पवित्र व धार्मिक स्थल के रूप में प्रचलित कर दिया है. ग्रामीणों के अनुसार यहां सलिला चन्द्रभाग तट पर "महाविष्णु यज्ञ की पावन धरा" पर स्वयं भगवान कृष्ण ने अपना मंदिर बनवाया था, ऐसी मान्यता है. यहां विगत वर्षों से कार्तिक पूर्णिमा में मेले का आयोजन होता आ रहा है. इसी तरह इस वर्ष भी मेले के आयोजन में ग्रामीणों सहित आस पास के सैकड़ों लोग यहां पहुंचकर श्रद्धा प्रकट करते हैं.
क्या है धार्मिक मान्यता?
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि लगभग 500 वर्ष पूर्व लालबर्रा अंतर्गत रामजी टोला के मरार जाति के निर्धन व्यक्ति बंग महाजन पंचेश्वर को भगवान ने स्वप्न में उपदेश दिये थे कि तू मेरा मंदिर जराहमोहगंव और अपने गाँव में बना, और स्वप्न में ही महाजन ने भगवान से कहा- हे प्रभु! मैं गरीब आदमी हूं. प्रतिदिन रोजी-रोटी कमाकर, पत्नी और पुत्र का पालन-पोषण करता हूं. मेरे पास मंदिर बनवाने के लिए धन सामग्री नहीं है. भगवान ने उससे कहा कि तू मंदिर कार्य शुरू कर मैं पैसा दूँगा. उस व्यक्ति ने सुबह उठकर ग्राम के पटेल व वरिष्ठ महाजनों से अपने स्वप्न की चर्चा की, परंतु उसकी बात सुनकर सभी लोग आश्चर्य चकित होकर अविश्वास जताकर मजाक समझने लगे.
प्रतिदिन मजदूर कार्य करते और मजदूरी लेते.
मंदिर का कुआं क्यों खास है?
जब भगवान का मंदिर बनकर तैयार हो गया तब उस व्यक्ति को भगवान ने स्वप्न दिया कि तू अपना भी एक मंदिर बना जो निर्माणकर्ता भक्त के नाम से रहेगा, इसी तरह उसने दूसरे मंदिर का भी निर्माण किया और भगवान की प्रेरणा से दोनों मंदिर के बीच एक कुआं भी बनवाया.
मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित की. फिर भी उसके पास शेष राशि बच गई जिसे उसने कुएं में डाल दिया. मान्यता यह भी है कि वह पैसा वर्तमान में शेषनाग बनकर मंदिर व ग्राम की रक्षा करता है. तब से लेकर जराहमोहगांव आस्था व श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है. यहां पहुँचने वाले लाखों श्रद्धालुओं की इच्छायें पूरी होती है. ऐसी ही चमत्कारिक घटना विगत्त वर्ष 2009 में 28 मई को घटित हुई इस दिन दोपहर 2.30 बजे बैशाख पूर्णिमा के दिन स्वयं कृष्ण भगवान की मुरली की धुन ग्रामवासियों ने सुनी तथा इस दिन भयंकर तूफान बादलों की गड़गड़ाहट भी हुई अपितु इससे किसी प्रकार की हानि नहीं हुई. स्थानीय बताते है कि इस मंदिर के निर्माण में पत्थर, चने और गुड़ का इस्तेमाल किया गया है. ऐसे में इस मंदिर की इमारत काफी मजबूत मानी जाती है. लेकिन समय के साथ इस मंदिर का सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार कराया गया है.
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