Arun Pandey news: जबलपुर में आम दिनों नर्मदा तट पर स्थित गौरी घाट का श्मशान घाट गहन शांति और गंभीर वातावरण के लिए जाना जाता है, जहां अंतिम संस्कार परंपरागत रीति-रिवाजों से सम्पन्न होते हैं. लेकिन रविवार को यह घाट अपने सामान्य रूप से बिल्कुल अलग नजर आया. यहां मातम नहीं, बल्कि एक मृत्यु महोत्सव मनाया जा रहा था. मध्यप्रदेश के ख्यातिलब्ध नाटककार,निर्देशक, लेखक और पत्रकार अरुण पांडे का निधन हो गया. अपने जीवनकाल में उन्होंने स्पष्ट रूप से अपने शिष्यों और अनुयायियों से कहा था कि उनकी मृत्यु को किसी शोकसभा के रूप में नहीं, बल्कि महोत्सव की तरह मनाया जाए. गुरु की अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनके सैकड़ों शिष्य, मित्र और प्रशंसक गौरी घाट पहुंचे और उन्हें विदाई देने के लिए न केवल आँसू बहाए बल्कि ढोल-नगाड़ों की धुन पर गाते हुए श्रद्धांजलि भी अर्पित की.
श्मशान घाट में एक ओर गुरु के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार चल रहा था तो वहीं दूसरी ओर उनके चाहने वाले जीवन का उत्सव मनाने के संदेश को आत्मसात करते हुए गीत-संगीत में शामिल हो रहे थे. किसी ने आँखों में आंसू लिए स्मृतियों को साझा किया, तो कोई उनकी शिक्षाओं और कला की विरासत को याद करते हुए झूम उठा.अरुण पांडे ने न केवल रंगमंच और पत्रकारिता की दुनिया में अपनी गहरी छाप छोड़ी थी, बल्कि उन्होंने अपने जीवन दर्शन से भी लोगों को प्रेरित किया. उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ी भीड़ और असामान्य विदाई इस बात का प्रतीक रही कि वे केवल एक कलाकार नहीं बल्कि एक ऐसे गुरु थे, जिन्होंने जीते जी और मृत्यु के बाद भी समाज को जीवन का सकारात्मक दृष्टिकोण सिखाया.
श्मशान घाट पर पहली बार देखने को मिला यह दृश्य जब मौत को मातम नहीं बल्कि महोत्सव के रूप में मनाया गया.विख्यात कलाकार और निर्देशक आशुतोष द्विवेदी कहते हैं कि अरुण पांडे में हबीब तनवीर के जनाजे के समय उनसे कहा था की इसी तरह मृत्यु महोत्सव होना चाहिए जिसे हम सब लोगों ने आज पूरा किया. सुविख्यात पेंटर कलाकार विनय अंबर कहते हैं कि एक कलाकार को यह सच्ची श्रद्धांजलि है.मुंबई से आई फिल्म कलाकार नरोत्तम बेन ने कहा कि हमारे गुरु चले गए लेकिन उनकी शिक्षा हम सबको सदैव याद रहेगी.
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