विलुप्त हो गए खरमोर, बढ़ गईं पवन चक्कियां, फंड को लेकर बर्ड सेंचुरी पर लगे बड़े आरोप, निष्पक्ष जांच की मांग

Sailana Kharmor Sanctuary: पानपुरा के खरमोर अभ्‍यारण्य में कई सालों से खरमोर पक्षी नहीं आया है, आमतौर पर अगस्‍त में यह पक्षी यहां पहुंच जाता है. मौसम के बदलते हाल और अन्‍य परिस्थितियों के चलते हर साल यह स्थिति बनती है. खरमोर पक्षी भारत में लुप्‍त प्रजाति की क्षेणी में आता है, इसकी संख्‍या बहुत ही कम बची है इसे बचाने के लिए सरकार द्वारा बड़ा संघर्ष किया जा रहा है. दूसरी ओर इस क्षेत्र में पवन चक्कियों की भी स्‍थापना की जा रही है.

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Kharmour Bird Sanctuary: धार जिले के सरदारपुर स्थित पानपुरा क्षेत्र की खरमोर बर्ड सेंचुरी (Sailana Kharmor Sanctuary) में दुर्लभ पक्षी खरमोर (Lesser florican) के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए आवंटित हुई धनराशि (Fund) को लेकर गंभीर आरोप लग रहे हैं. सवाल उठाए जा रहे हैं कि किन-किन मदों पर कितना खर्च किया गया है. फंड की गड़बड़ी की आशंका को लेकर राजगढ़ के सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय भंडारी ने खरमोर अभ्‍यारण्य के अनेक विषयों पर राज्‍यपाल को एक पत्र लिखा है. भंडारी को सूचना के अधिकार (RTI) में जानकारी मिली है कि खरमोर अभ्‍यारण्य के लिए प्रचार और प्रसार के साथ जागरुकता के लिए विभाग को 50 हजार रुपए का बजट आंवटित बताया गया है. उन्‍होंने आशंका जताई है कि जितनी भी राशि आवंटित हुई है वह किस मद में खर्च की जाती है, कहीं पर इसका हिसाब किताब नहीं मिला है. कहीं कागजों पर तो इस धनराशि को खर्च नहीं कर दिया गया है. उन्‍होंने राज्‍यपाल को पत्र लिखकर निष्‍पक्ष जांच की मांग की है.

क्या कहना शिकायतकर्ता का?

अक्षय भंडारी बताते है कि वर्षों से खरमोर पक्षी को विदेशी मानते आए हैं, लेकिन उन्‍होंने वन विभाग को अनेकों बार पत्र दिए गए, लेकिन विभाग ने उनके भ्रम को दूर करने का प्रयास नहीं किया. गौरतलब है कि 4 जून 1983 को तत्‍कालीन सरकार ने धार जिले के सरदारपुर के पानपुरा में खरमोर अभ्‍यारण्य की घोषणा करते हुए उससे लगे 14 गांवों को अधिसूचित किया था, जिसके पीछे सरकार का उद्देश्‍य दुर्लभ पक्षी खरमोर की प्रजाति का सरंक्षण था.

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किसान भी हो रहे हैं परेशान

खरमोर अभ्‍यारण्य की घोषणा को करीब चार दशक से अधिक समय बीत चुका है. अभ्‍यारण्य के 14 अध‍िसूचित गांवों के किसानों की कई समस्‍याएं हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वह अपनी निजी कृषि भूम‍ि का क्रय-विक्रय नहीं कर पा रहे हैं. जिससे उनकी आर्थ‍िक स्‍थ‍िति खराब हो रही है. वह अपनी जमीनों पर निर्माण भी नहीं कर सकते हैं. क्षेत्र में खरमोर अभ्‍यारण्य होने से विकास के कार्य भी रुके हुए हैं. यहां कोई भी बड़ी परियोजना दशकों से नहीं आयी है. खरमोर अभ्‍यारण्य के अधिसूचित गांवों में विकास कार्यो में भी कई बाधाएं आ रही हैं.

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खरमोर गायब, लेकिन बढ़ती रहीं पवन चक्कियों की संख्‍या

पानपुरा के खरमोर अभ्‍यारण्य में कई सालों से खरमोर पक्षी नहीं आया है, आमतौर पर अगस्‍त में यह पक्षी यहां पहुंच जाता है. मौसम के बदलते हाल और अन्‍य परिस्थितियों के चलते हर साल यह स्थिति बनती है. खरमोर पक्षी भारत में लुप्‍त प्रजाति की क्षेणी में आता है, इसकी संख्‍या बहुत ही कम बची है इसे बचाने के लिए सरकार द्वारा बड़ा संघर्ष किया जा रहा है. दूसरी ओर इस क्षेत्र में पवन चक्कियों की भी स्‍थापना की जा रही है. यह पवन चक्कियां खरमोर के जीवन में अभिशाप साबित हो सकती है. विगत दिनों पवन चक्कियों की स्‍थापना को लेकर अपर प्रधान मुख्‍य वन सरंक्षक ने पवन चक्कियों पर रोक लगाने के साथ जांच के आदेश दिए थे.

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दुर्लभ पक्षी है खरमोर

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के लिए कार्य करने वाले विशेषज्ञों ने अपने शोध में यह पाया कि यह पक्षी बहुत ही दुर्लभ है. इसे बचाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जा रहे हैं. मध्‍यप्रदेश के सरदारपुर, सैलाना व पेटलावद ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर खरमोर पक्षी नियमित रूप से अपने सीजन पर आते थे. प्रजनन काल में यहां रहकर अपनी संतति की वृद्धि करते हुए यहां से फिर से पलायन कर जाते हैं.

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