Conversion in MP: धर्मांतरण विरोधी कानून के 5 वर्ष बाद ये आंकड़े आए सामने,  86 में से सिर्फ 7 मामलों में सजा

Conversion in Madhya Pradesh: विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने जो आंकड़े रखे, वह चौंकाने वाले हैं. इस कानून के तहत प्रदेश भर में कुल 283 मामले दर्ज हुए, इनमें से 197 मामले, यानी लगभग 70%, अब भी अदालतों में लंबित हैं. बाकी 86 मामलों में पुलिस जांच पूरी हो चुकी है और या तो अदालत ने फ़ैसला सुना दिया है, या दोनों पक्षों में समझौता हो गया है.

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Madhya Pradesh Religious Freedom Ordinance 2020: मध्य प्रदेश में धर्मांतरण पर रोक लगाने वाले सख़्त क़ानून जिसे राजनीतिक हलकों में अक्सर ‘लव जिहाद' क़ानून कहा जाता है. इससे पहले के साढ़े पांच साल का लेखा-जोखा चौंकाने वाला है. जनवरी 2020 में लागू हुए मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 और उसके बाद बने मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021 को आए साढ़े पांच साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन इन सालों में सज़ा से ज़्यादा बरी होने के मामले सामने आए हैं.

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव विधानसभा में रखे ये आंकड़े

विधानसभा में मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सरकार ने जो आंकड़े रखे, वह चौंकाने वाले हैं. इस कानून के तहत प्रदेश भर में कुल 283 मामले दर्ज हुए, इनमें से 197 मामले, यानी लगभग 70%, अब भी अदालतों में लंबित हैं. बाकी 86 मामलों में पुलिस जांच पूरी हो चुकी है और या तो अदालत ने फ़ैसला सुना दिया है, या दोनों पक्षों में समझौता हो गया है.

 86 में से सिर्फ  7 मामलों में हुई सजा

असली कहानी यहां शुरू होती है कि इन 86 मामलों में से 50 मामलों में आरोपियों को बरी कर दिया गया. सज़ा सिर्फ़ 7 मामलों में हुई. एक मामला ऐसा भी था, जो दोनों पक्षों के ‘राज़ीनामे' के साथ खत्म हो गया. सज़ा वाले सात मामलों में अगर-मालवा के नलखेड़ा थाने का एक मामला ऐसा था, जिसमें अदालत ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई, जबकि मंदसौर जिले का एक मामला, जिसमें बलात्कार की धारा भी लगी थी, आरोपी को 10 साल जेल हुई. बाकी पांच मामलों में दो धार जिले से, एक-एक बुरहानपुर और रीवा जिले से जुड़े थे.

इस वजह से खारिज हो रहे हैं मामले

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, इन मामलों में बरी होने की सबसे बड़ी वजह सबूतों की कमी और पीड़िताओं का गवाही के दौरान पलट जाना रहा है. कई बार महिलाएं अदालत में कहती हैं कि उन्होंने दूसरी धर्म के व्यक्ति से अपनी मर्ज़ी से रिश्ता बनाया, शादी की और वे बिना किसी डर, दबाव या लालच के उनके साथ रह रही हैं. नाबालिग पीड़िताओं से जुड़े कई मामलों में यह भी सामने आया कि परिवार ने समाज के दबाव में आकर एफआईआर दर्ज कराई थी, लेकिन बाद में पीड़िता और परिजन बयान बदल देते थे, जिससे आरोपी बरी हो जाता था. दर्ज हुए 283 मामलों में 71 पीड़िताएं 18 साल से कम उम्र की थीं. सबसे ज़्यादा मामले पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ क्षेत्र से आए, जो आदिवासी बहुल और सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील इलाका है. अकेले इंदौर जिले में 74 मामले दर्ज हुए, जो कुल मामलों का 26 प्रतिशत है. भोपाल में 33 मामले आए, जबकि धार में 13, मुख्यमंत्री के गृह जिले उज्जैन और खंडवा में 12-12, छतरपुर में 11 और खरगोन में 10 मामले दर्ज हुए.

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ऐसा है मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2021

दरअसल, इस कानून के तहत किसी भी धर्मांतरण के लिए 60 दिन पहले जिला कलेक्टर को सूचना देना अनिवार्य है और ज़बरदस्ती, धोखे, लालच, दबाव या विवाह के माध्यम से धर्मांतरण कराना अपराध है, जिसके लिए सख्त सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है. इस कानून के तहत जबरन धर्मांतरण पर 1 से 5 साल की सजा और 25 हजार रुपए तक जुर्माना है. नाबालिग, महिला या एससी/एसटी के मामलों में सजा 2 से 10 साल और जुर्माना 50 हजार रु. तक हो सकता है. यदि कोई अपना धर्म छिपाकर विवाह करता है, तो उसे 3 से 10 साल की सजा और 50 हजार रुपए जुर्माना हो सकता है. सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में 5 से 10 साल की सजा और 1 लाख रुपए जुर्माना हो सकता है.

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सरकार ने विधानसभा को यह भी बताया कि मई 2025 में एक राज्य स्तरीय विशेष जांच दल (SIT) गठित की गई थी, जो अब तक दर्ज सभी मामलों की गहन जांच कर रही है. आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा था कि सरकार मप्र धार्मिक स्वतंत्रता कानून में लव जिहाद पर अब फांसी की सजा का प्रावधान करेंगे.

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