इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं से होगा विसर्जन... पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान

दीपक पौराणिक बताते हैं कि वह हर साल 500 इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बनाते हैं. जिससे पीओपी की मूर्तियां कम हो जाए और इस तरह की इको फ्रेंडली मूर्तियों का श्रद्धालू अधिक से अधिक संख्या में विसर्जन कर सके. क्योंकि पीओपी की मूर्तियां अक्सर नदियों में तैरते हुए या किनारों पर दिखाई पड़ती हैं. गोबर और मिट्टी से बनी प्रतिमाएं एक तो पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती हैं, दूसरा इन प्रतिमाओं का पूजन अर्चन करना भी शुभ माना जाता है.

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प्रतिमाएं तैयार करने के बाद उन्हें चूना लगाकर सुखाया जा रहा है इसके बाद उन पर कलर भी किया जाएगा. दीपक बताते है कि विसर्जन के बाद नदी-नहरों में तैरती हुई मूर्ति को देखकर उनके मन में ये विचार आया
सागर:

देश में 19 सितम्बर से शुरू हो रहे प्रथम पूज्य गणेश उत्सव की तैयारी हो रही है. इस उत्सव के दौरान लोग घर-घर श्री गणेश को विराजमान करते हैं फिर गणेश जी का विसर्जन कर देते हैं. सागर के रहने वाले दीपक ने इसलिए मिट्टी और गोबर के इको फ्रेंडली गणेश जी की मूर्तियां बनाई है जिससे पर्यावरण को भी बचाया जा सके. पेशे से अधिवक्ता दीपक पिछले 11 साल से इको फ्रेंडली श्री गणेश जी की मूर्तियां बनाकर, निशुल्क वितरण कर रहे हैं.

अब तक कर चुके हैं 5000 प्रतिमाओं का वितरण

दीपक पौराणिक अब तक 5000 मिट्टी और गोबर से बनी गणेश पार्थिव प्रतिमाओं का वितरण कर चुके हैं. दीपक की सोच को सलाम करना चाहिए इन्होंने अपने इस आईडिया से आस्था के साथ-साथ पर्यावरण को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. दीपक न्यायालय के काम बाद समय निकालकर पंचगव्य से गणेश पार्थिव प्रतिमाएं तैयार करते हैं. इन गणेश प्रतिमाओं की खासियत यह है कि इन्हें पंचगव्य से बनाया गया है जिसमें शुद्ध मिट्टी, गाय का गोबर,गोमूत्र के साथ नर्मदा, गंगा और बेबस नदियों का जल मिलाकर तैयार किया जाता है.

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पवित्र विचार ने बनाई इको फ्रेंडली मूर्तियां

प्रतिमाएं तैयार करने के बाद उन्हें चूना लगाकर सुखाया जा रहा है इसके बाद उन पर कलर भी किया जाएगा. दीपक बताते है कि विसर्जन के बाद नदी-नहरों में तैरती हुई मूर्ति को देखकर उनके मन में ये विचार आया कि इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जाएं.

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हर साल बनाते हैं 500 मूर्तियां

दीपक पौराणिक बताते हैं कि वह हर साल 500 इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बनाते हैं. जिससे पीओपी की मूर्तियां कम हो जाए और इस तरह की इको फ्रेंडली मूर्तियों का श्रद्धालू अधिक से अधिक संख्या में विसर्जन कर सके. क्योंकि पीओपी की मूर्तियां अक्सर नदियों में तैरते हुए या किनारों पर दिखाई पड़ती हैं. गोबर और मिट्टी से बनी प्रतिमाएं एक तो पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती हैं, दूसरा इन प्रतिमाओं का पूजन अर्चन करना भी शुभ माना जाता है.

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